Trolling ‘Mahatma’ is a sign of mental disorder! ‘महात्मा’ को ट्रोल करना मानसिक विकृति का संकेत!

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राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की 150वीं जयंती पर श्रद्धांजलि देते हुए कहा कि गांधीजी स्वदेशी आंदोलन और सामाजिक सद्भाव के लिए अडिग खड़े थे। हमें उनके दिखाये मार्ग को अपनाना चाहिए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राजघाट और साबरमती आश्रम पहुंचकर गांधीजी को नमन किया। उन्होंने कहा कि गांधीजी ने सत्य, अहिंसा, सत्याग्रह, स्वावलंबन के विचारों से देश को रास्ता दिखाया था। आज हम उसी रास्ते पर चलकर स्वच्छ, स्वस्थ, समृद्ध और सशक्त न्यू इंडिया के निर्माण में लगे हैं। गांधीजी की 150वीं जयंती को राष्ट्रीय स्तर पर स्वच्छता दिवस के रूप में मनाया गया। संघ के विचारक राज्यसभा सदस्य राकेश सिन्हा ने कहा कि आज अगर गांधी जीवित होते तो आरएसएस में होते। जहां एक तरफ संघ और पार्टी के शीर्ष पर बैठे लोग गांधी के चरणों में पुष्प अर्पित कर रहे, वहीं उनके कुछ अनुयायी उन्हें ट्रोल कर रहे हैं। गांधीजी को ट्रोल कर उनके हत्यारे नाथूराम गोडसे का महिमामंडन करने वालों के मुंह पर भागवत और मोदी दोनों ने सकारात्मक तरीके से तमाचा लगाया है। यह एक अच्छी पहल है, जो एतिहासिक गलती को सुधारने की दिशा में कदम माना जाएगा। नरेंद्र मोदी ने तो एक कदम आगे बढ़कर न्यूयॉर्क टाइम्स में गांधीजी के जीवन पर लेख लिख अपने श्रद्धासुमन अर्पित किये। जो निश्चित रूप से एक सराहनीय कदम है।
हाल के दिनों में संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि हमें जाति व्यवस्था से ऊपर उठने की जरूरत है। उन्होंने बिल्कुल सही कहा, मगर सिर्फ जाति व्यवस्था से ही नहीं, धार्मिक भेदभाव से भी ऊपर उठने की जरूरत है। वास्तव में हमें अपने वैदिक सिद्धांतों के अनुकूल प्राकृत मानवता का धर्म अपनाने की आवश्यकता है। जहां संघ प्रमुख और प्रधानमंत्री, गांधी के सिद्धांतों को नमन कर रहे हैं, वहीं उनके आचरण के विपरीत गृह मंत्री अमित शाह ने कोलकाता में शरणार्थियों को लेकर दिये बयान से भेदभाव और घृणा दर्शा दी। शायद यह दोहरी नीति का फल है। गांधीजी ने अपनी मृत्यु से कुछ पहले जन्मदिवस पर दुखी मन से कहा था कि ‘तुम चाहते हो कि भारत में हिंदू रहें। आज तुम मुसलमानों को मार सकते हो मगर कल क्या करोगे?’ गांधी ने यह इसलिए कहा था क्योंकि देश में सांप्रदायिक भावनाओं के चलते मुस्लिमों को मार कर भगाया जा रहा था। बहराल, कट्टरपंथी सोच से ग्रसित लोग उनको बर्दास्त नहीं कर सके। देश के पहले गृहमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल ने स्पष्ट कहा था कि हिंदू महासभा गांधीजी की हत्या में शामिल है। उन्होंने एमएस गोलवलकर को चिट्ठी में लिखा था कि वह लोग सांप्रदायिक जहर उगल कर माहौल बिगाड़ रहे हैं। दुखद है कि आज भी वही दोहराया जा रहा है। बुजुर्ग महात्मा के हत्यारे नाथूराम गोडसे की वकालत चल रही है।
महात्मा गांधी की 150वीं जयंती पर पूरे विश्व ने श्रद्धांजलि कार्यक्रम आयोजित कर उनके विचारों को नमन किया है। वहीं भारत के कुछ लोग गांधी का अपमान करने में अपनी उर्जा लगा रहे हैं। उस देश में उनके कातिल की जयकार करने वाले खड़े हैं, जहां के लिए गांधी ने अपना सर्वस्व बलिदान कर दिया था। गांधी वह शख्सियत थे, जिसने बांस की एक लाठी से वैचारिक क्रांति करके परमाणु संपन्न देशों को झुका दिया था। ह्यूस्टन में ‘हाउडी मोदी’ के मंच पर यूएस संसद के बहुमत वाले नेता स्टेने हायर ने कहा कि हम आपका इसलिए सम्मान करते हैं क्योंकि आप गांधी-नेहरू के देश से हैं। इससे स्पष्ट है कि गांधी की सोच और विचारों को वैश्विक स्तर पर सम्मान मिलता है, न कि सिर्फ संकुचित राष्ट्रवादी विचारधारा के बीच। गांधीजी को लेकर किसके क्या विचार हैं? यह हर व्यक्ति की सोच और उसके ज्ञान पर आधारित होता है। यह प्रमाणित है कि गांधीजी न केवल महान व्यक्तित्व थे बल्कि निजी हितों-विचारों से बहुत ऊपर उठकर देश, समाज और दुनिया में शांति सद्भाव स्थापित करने की सोच रखते थे।
उनकी इसी सोच ने अब आरएसएस को भी महात्मा गांधी के सामने झुकने को मजबूर किया है। जब गांधीजी के प्रति उस संगठन के लोगों ने शीश नवा दिया है, जो कभी उनके विरोधी थे, तब पुछल्लों को शांति से उनकी सोच और समझ का दायरा समझना चाहिए। गांधी, इतना बड़ा व्यक्तित्व या कहें संस्था हैं कि उनको पढ़ने, समझने और जानने के बाद कभी कोई व्यक्ति नतमस्तक हुए बिना नहीं रह सकता। गांधी से घृणा करने वाले कभी भी समाज से प्रेम नहीं कर सकते, क्योंकि ऐसे व्यक्ति के मन में जहर होगा। यही कारण है कि गांधी के हत्यारे गोडसे के हिमायती अज्ञानी और कायर होते हैं। असल में उनको यह मक्कारी गुणसूत्र में मिली है।
1945 में ‘अग्रणी’ नामक पत्रिका में एक कार्टून छपा था, जिसमें महात्मा गांधी को रावण बना, उनके जो 10 सिर दिखाये गये, उनमें सुभाष चंद्र बोस, सरदार पटेल सहित स्वतंत्रता आंदोलन के बड़े अगुआओं के चेहरे थे। उन्हें तीर मारते राम-लक्ष्मण की भूमिका में हिंदू महासभा के नेता थे। इस पत्रिका का प्रकाशक नारायण आप्टे और संपादक नाथूराम गोडसे था। इससे स्पष्ट है कि इनके मन में अंग्रेजों और अंग्रेजी हुकूमत से नहीं, गांधी और उनके विचारों से नफरत थी। यह नफरत देश के बंटवारे या किसी के हक को लेकर नहीं बल्कि गांधी की सच्ची सोच के प्रति थी। हत्यारी सोच रखने वाले अच्छी तरह जानते थे कि गांधी के विचारों पर चलकर वह अपने स्वार्थी एजेंडे पूरे नहीं कर सकते। अब वही लोग दोहरे चेहरों में दिख रहे हैं। एक तरफ गांधी को फूल अर्पित करते हैं, तो दूसरी तरफ उन्हें ट्रोल कराते हैं। धोखे से वार करने की आदत जो इनके गुणसूत्र में रही है।
गांधी की पवित्र जयंती पर हम घृणा करने वालों पर चर्चा ही क्यों करें? यह सवाल स्वयं से पूछा तो जवाब था। हमने सोशल मीडिया पर गांधी को नमन किया तो कुछ संकुचित और मानसिक विकारों की जमात हमारी वाल पर अतिक्रमण करके उनके लिए अभद्र शब्दों का प्रयोग करती दिखी। दुख हुआ, जिस गांधी ने देश, समाज और मानवता को सिर्फ दिया, लिया कुछ नहीं, उनके लिए भी लोग घृणित शब्द कैसे उच्चारित कर लेते हैं? घृणा की पराकाष्ठा ही है कि ऐसे लोग गांधी के सामने उनकी चरणरज लेने वाले शास्त्री को रखते हैं। वहां भी चैन नहीं, तो उस सुभाष को ले आते हैं, जिसने सबसे पहले गांधी को महात्मा बनाया था। भगत सिंह से तुलना करके गांधी को कमतर दिखाने की नाकाम कोशिश करने वाले भूल जाते हैं कि अदालत में शपथपत्र देकर भगत सिंह ने खुद गांधी के विचारों को मानने की बात कही थी। ऐसे लोग जब पटेल का गुणगान करते हैं, तो उन्हें याद नहीं रहता कि पटेल ने गांधी के चरणों में ही जीवन माना था। हम यही प्रार्थना कर सकते हैं कि ईश्वर इनको माफ करना, शायद यह लोग नादान हैं। ऐसे लोग सच्चे संत-महात्माओं को नहीं जानते क्योंकि उनकी आंखों में ढोंगियों की भक्ति का पर्दा है। ढोंगियों से भ्रमित होकर ऐसे लोग ही मानवता की हत्या करने लगते हैं। जरूरत गांधी का मनन-चिंतन करने की है। उनके आदर्शों और विचारों को जीने की है। सही ही कहा गया है ‘गांधी के हत्यारे गोडसे की चाहे जितनी मूर्तियां लगा लें, उसमें प्राण नहीं डाल सकते और गांधी को चाहे जितनी गोली मार लें, उन्हें मार नहीं सकते।’
जयहिंद

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(लेखक आईटीवी नेटवर्क के प्रधान संपादक हैं)