सुरेन्द्र दुआ,नूंह:
क्षेत्र के प्रमुख ज्योतिषाचार्य पं0 रमेश शास्त्री ने जानकारी दी कि वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि अत्यंत ही शुभ मानी जाती है। जिसे अक्षय तृतीया के नाम से जाना जाता है। इस दिन कोई भी शुभ काम करने के लिए मुहूर्त देखने की जरूरत नहीं पड़ती। मान्यता है कि भगवान विष्णु के छठे अवतार श्री परशुराम का जन्म भी अक्षय तृतीया को ही हुआ था। सतयुग और त्रेतायुग का प्रारंभ भी इसी दिन हुआ था। भगवान विष्णु के अवतार नर-नारायण और हयग्रीव का अवतरण भी इसी तिथि में हुआ माना जाता है। मान्यता है कि वेद व्यास एवं श्रीगणेश द्वारा महाभारत ग्रन्थ के लेखन का प्रारंभ भी इसी तिथि से हुआ था।
महाभारत के युद्ध का समापन दिन भी माना जाता
ये महाभारत के युद्ध का समापन दिन भी माना जाता है। द्वापर युग का समापन भी अक्षय तृतीया पर हुआ माना गया है। मान्यताओं के अनुसार माँ गंगा का धरती पर आगमन इस शुभ तिथि पर ही हुआ था। भक्तों के लिए तीर्थस्थल श्री बद्रीनाथ के कपाट भी इसी तिथि को खोले जाते हैं। साल में केवल एक बार वृन्दावन के श्री बांके बिहारी जी मंदिर में श्री विग्रह के चरणों के दर्शन होते हैं। ये एक ऐसी तिथि है जिसमें कोई भी शुभ कार्य करने के लिए या कोई नयी वस्तु की खरीदारी के लिए पंचांग देखकर शुभ मुहूर्त निकालने की जरूरत नहीं पड़ती है। इस दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की आराधना की जाती है।
इस दिन अपने परिवार की समृद्धि के लिए व्रत भी रखती हैं स्त्रियाँ
कई स्त्रियाँ अपने परिवार की समृद्धि के लिए इस दिन व्रत भी रखती हैं। इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर नहाने के पानी में गंगा जल मिलाकर स्नान करना चाहिए। इसके बाद श्री विष्णुजी और माँ लक्ष्मी की प्रतिमा पर अक्षत चढाना चाहिए। फूल या श्वेत गुलाब, धुपबत्ती इत्यादि से इनकी पूजा अर्चना करनी चाहिए। नैवेद्य स्वरूप जौ, गेंहू या फिर सत्तू, ककडी, चने की दाल आदि का चढावा चढ़ाना चाहिए। हो सके तो इस दिन ब्राह्मणों को भोजन जरूर कराएं। इस खास दिन पर इन चीजों का दान करना बेहद ही फलदायी माना गया है। वहीं, अक्षय तृतीय पर्व 3 मई को मनाया जा रहा है और जिला के मंदिरों में अभी से ही तैयारियां शुरू कर दी है।
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