Increasing Trend Towards Clay Pots : फ्रीज-वाटर कूलर के पानी में वो स्वाद कहां जो मिट्टी से बने मटके के पानी की सौंधी खुशबू में है

0
120
Increasing Trend Towards Clay Pots
  • फ्रीज व वाटर कूलरों से कतराने लगे लोग, बढ़ा मटकों की तरफ रुझान

 

Aaj Samaj (आज समाज),, पानीपत : आधुनिकता की चकाचौंध में इंसान चाहे कितना ही रहे जाए, लेकिन जब तक अतीत में नहीं झांकता तब उसे सुकून नहीं मिलता। ऐसा ही कुछ देखने को मिलता है जब गर्मी में लू चल रही हो और गले सूखे हुए तो उस समय उसे किसी फ्रिज की नहीं बल्कि मिट्टी से बने मटके की याद आती है और उसका निर्मल पानी पीकर अपनी प्यास बुझाता है तो उसे समय अहसास होता है कि फ्रिज जैसी आधुनिक तकनीक से बनी इस आइटम से कितना बेहतर है मटके में का पानी। फ्रिज और वाटर कूलर के दौर में भी मटका यानि देशी फ्रिज का उपयोग कम नहीं हुआ है। आज भी लोग ठंडे पानी के लिए मटके का उपयोग करते नजर आते है।

लोग मटका दुकानों में पहुंच पसंदीदा मटके खरीद रहे हैं

एक ओर जहां संपन्न लोग फ्रिज और वाटर कूलर से ठंडा पानी प्राप्त करते हैं, वहीं मध्यम और गरीब तबके के लोग मिट्टी से बने मटके का उपयोग कर प्यास बुझाते हैं। लोगों का मानना है कि इसमें प्राकृतिक रूप से पानी ठंडा होता है, जो शरीर को नुकसान नहीं है। गर्मी ने अपना रूप दिखाना शुरू कर दिया। लोग मटका दुकानों में पहुंच पसंदीदा मटके खरीद रहे हैं। इस साल पारंपरिक मटकों के साथ ही टोंटी वाले मटके और रंगों की कलाकारी से सजे मटके भी आए हैं, जो लोगों को खूब भा रहे हैं। कभी-कभी हम गुजरे जमाने में जाकर उन बातों को याद करने लग जाते हैं, जो शायद इस भागदौड़ भरी जिन्दगी में कहीं गुम सी हो गई है। इस अतीत की एक झलक से आधुनिक समय के साथ धुंधली होती मिट्टी के बर्तनों की खुशबू से आपको रू-ब-रू करवा रहे हैं।
Increasing Trend Towards Clay Pots

मिट्टी के बर्तनों को बढ़ावा देने के सरकार उठाए कोई कदम : गोपी प्रजापत

भलौर गांव निवासी व प्रजापत सभा के जिला प्रधान गोपी राम प्रजापत ने बताया कि आधुनिकता की चपेट में परंपरागत मिट्टी के बर्तन अस्तित्व धीरे-धीरे खत्म हो गया। जिससे वहां बीमारियां बड़ी, कुम्हार जाति जो कि इस परंपरागत से जुड़े हुए थे वो भी आर्थिक रूप से कमजोर होते जा रहे हैं। चिकनी मिट्टी से बने बर्तन स्वास्थ्य के लिए बहुत ही लाभकारी होते थें। परंतु अब एक बार फिर धीरे-धीरे इनकी तरफ लोगों का रुझान बनने लगा है। वहीं सरकार को भी मिट्टी के बर्तनों को बढ़ावा देने के लिए कोई योजना शुरू करनी चाहिए जिससे कुम्हार समाज को रोजगार और समाज को हेल्दी राहत मिल सके।

सेहत के लिए लाभदायक मटके का पानी : रतन सिंह रावल

जलालपुर प्रथम गांव के पूर्व सरपंच रतन सिंह रावल ने बताया कि  पुराने समय से ही बुजुर्गों द्वारा मटके का ही प्रयोग किया जाता था परंतु आधुनिकता की चकाचौंध में इन्हें भुला दिया और फ्रिज और वाटर कूलर का पानी पीने लगे परंतु कोरोना महामारी के के बाद लोगों का रुझान अब एक बार फिर से मटके व घड़ो की और होने लगा है। मटकों को पानी सेहत के लिए तो है ही साथ ही वाटर कूलर पर आने वाले खर्च से भी कम है।

बंद होता जा रहा पुश्तैनी कारोबार : करेशन

जलालपुर प्रथम गांव निवासी करेशन कुम्हार ने बताया कि पिछले 45 वर्षो से मिट्टी के घड़े बनाने का कार्य कर रहे हैं पुराने समय में विवाह शादियों में हर घर में 20 से 25 तक के घड़ों की सप्लाई होती थी वहीं अब समय बदलने के अनुरूप प्लास्टिक के कैंपर विवाह शादी में पहुंचने के कारण है, अब बड़ों की बिक्री न के बराबर हो गई है। उन्होंने बताया कि उनका कारोबार ठप होने के बाद भी सरकार का हमारी ओर कोई ध्यान नहीं है अब इस पुश्तैनी धंधे से भी ऊब चुके हैं, जिससे घर का खर्चा भी निकलना मुश्किल हो रहा है।
पहले मिट्टी के बर्तनों का होता था इस्तेमाल : आजाद नम्बरदार
पसीना गांव निवासी आजाद नम्बरदार ने बताया कि हमारे बुजुर्ग मिट्टी के बर्तन का ही प्रयोग करते थे। दूध उबालने के लिए, दही और लस्सी को रखने के लिए, दूध को जमाने के लिए ही मिट्टी के बर्तन का प्रयोग करते थे। वही बनी हुई सब्जी को रखने के लिए भी मिट्टी का बर्तन उपयोग में लाते थे और अब भी यही परंपरा हमारी सदियों से चली आ रही थी जो कि स्वास्थ्य के लिए बहुत ही लाभकारी है। हालांकि कुछ लोग जागरूकता न होने के कारण एल्यूमीनियम प्लास्टिक के बर्तनों का प्रयोग कर रहे हैं जो कैंसर ऐसी भयानक बीमारियों को जन्म दे रहे है। इसलिए मिट्टी के बर्तनों को प्रयोग आग बेहद जरूरी है।