‘Treason’ on Kanhaiya Kumar after four years: चार वर्ष बाद कन्हैया कुमार पर ‘देशद्रोह’ के मायने

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राजनीति में कैसे-कैसे दिन देखने पड़ते हैं, यह अब कोई जेएनयू छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष कन्हैया कुमार से पूछे, जिस केजरीवाल पर उन्हें भरोसा था कि वे उनके खिलाफ किसी भी कार्रवाई की अनुमति नहीं देंगे, लेकिन आज कहानी बदल गई है। दिल्ली की केजरीवाल सरकार ने साल 2016 में जेएनयू में भारत विरोधी नारे लगाने के आरोप में घिरे पूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष कन्हैया कुमार के खिलाफ देशद्रोह का मुकदमा चलाने की मंजूरी दे दी है। इस मामले में कन्हैया के साथ दो अन्य लोगों के खिलाफ देशद्रोह का मामला चलाने की मंजूरी केजरीवाल सरकार ने दी है। खबरों के मुताबिक कन्हैया के साथ उमर खालिद और अनिर्बान के खिलाफ भी देशद्रोह का मुकदमा चलाने की मंजूरी मिली है। इस मामले में दिल्ली स्पेशल सेल को मुकदमा चलाने की मंजूरी वाली फाइल काफी समय से दिल्ली सरकार के गृह मंत्रालय के पास लटकी हुई थी। केजरीवाल सरकार ने इसका निपटारा करते हुए केस चलाने की मंजूरी दे दी। अब आने वाले दिनों में कन्हैया कुमार की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। बता दें कि 9 फरवरी 2016 की शाम में जेएनयू परिसर में भारत विरोधी नारे लगे थे, जिसके कुछ संदिग्ध वीडियो कुछ खास न्यूज चैनलों पर चलाए गए थे। आरोप था कि ये नारे संसद भवन पर हमले का आरोपी अफजल गुरू और कश्मीर अलगाववादी नेता मकबूल बट्ट के समर्थन में आयोजित कार्यक्रम के दौरान लगे थे। इस मामले में दक्षिणपंथी संगठनों के हंगामे के बाद दबाव में आई पुलिस ने कन्हैया समेत 3 लोगों पर देशद्रोह का मुकदमा दर्ज किया था।
आपको बता दें कि जेएनयू वाले इस मामले में कन्हैया कुमार के खिलाफ भारत विरोधी नारे और नफरत फैलाने के आरोप में दिल्ली पुलिस ने साल भर पहले आरोप-पत्र दाखिल किया था। कन्हैया पर देशद्रोह समेत 8 धाराएं लगाई गई हैं। हाल ही में पटियाला हाउस कोर्ट में सुनवाई में पुलिस ने बताया था कि अब तक दिल्ली सरकार से राजद्रोह का मुकदमा चलाने की अनुमति नहीं मिली है, जिसके बाद कोर्ट ने दिल्ली पुलिस को दिल्ली सरकार को पत्र लिखकर अपना रुख बताने के लिए कहने का निर्देश दिया था। दिल्ली सरकार द्वारा जेएनयू छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष कन्हैया कुमार समेत अन्य लोगों पर देशद्रोह का मुकदमा चलाने की इजाजत देने के बाद कन्हैया समर्थकों में गम और गुस्सा दोनों देखा जा रहा है। इसको लेकर बॉलीवुड डायरेक्टर अनुराग कश्यप ने दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल पर जमकर निशाना साधा है। उन्होंने पूछा कि केजरीवाल जी कितने में बिके। केजरीवाल पर तंज कसते हुए उन्होंने लिखा कि महाशय अरविंद केजरीवाल जी, आपको क्या कहें। स्पाइनलेस तो प्रशंसा है, आप तो हैं ही नहीं, कितने में बिके? अनुराग कश्यप ने यह तंज कन्हैया कुमार के ट्वीट को रिट्वीट करते हुए किया। बता दें कि राजद्रोह का मुकदमा चलाए जाने की अनुमति पर कन्हैया कुमार ने अपने ट्वीट में लिखा था कि दिल्ली सरकार को सेडिशन केस की परमिशन देने के लिए धन्यवाद। दिल्ली पुलिस और सरकारी वकीलों से आग्रह है कि इस केस को अब गंभीरता से लिया जाए, फॉस्ट ट्रैक कोर्ट में स्पीडी ट्रायल हो और टीवी वाली अदालत की जगह कानून की अदालत में न्याय सुनिश्चित किया जाए। सत्यमेव जयते। गौरतलब है कि 9 फरवरी 2016 को जेएनयू परिसर में नारेबाजी के वीडियो सामने आए थे। इसके बाद दिल्ली पुलिस ने इन वीडियो की जांच की थी और तत्कालीन जेएनयू छात्रसंघ अध्यक्ष कन्हैया कुमार समेत अन्य के खिलाफ राजद्रोह का केस दर्ज किया था। आरोप लगाया गया कि वीडियो में दिख रहे लोगों ने जेएनयू परिसर में देश विरोधी नारेबाजी की थी और उसमें कन्हैया कुमार शामिल थे। फिलहाल कन्हैया कुमार सीपीआई के नेता हैं। अब कन्हैया के बारे दिल्ली सरकार द्वारा लिए गए फैसले के बाद तमाम सवाल खड़े हो रहे हैं। लोग तंज कर रहे हैं कि खुला हुआ मुंह, हाथ मे कलम, ऊपर बैठी ताकतों की ओर उठी हुई उंगली..क्या इतना भर से ही सेडिशन का केस बनता है? सेडिशन राजद्रोह है, ट्रेजन देशद्रोह। आपने उन जासूसों के बारे में पढ़ा होगा, जो पाकिस्तान को भारत की गुप्त सूचनाएं देते पकड़े गए। अरे वही, अपने ध्रुव सक्सेना, भूल गए तो गूगल करो। तो देश के खिलाफ काम करना, ये ट्रेजन है यानी देशद्रोह है। राजद्रोह डिफरेंट है। ये देश के नही राजा के खिलाफ है, इसमे कुछ करना नही, बोलना अपराध है। वो बच्चा याद है, जो राजा को नंगा कहता था। ये राजा के प्रति द्रोह, याने राजद्रोह का पर्याप्त आधार हो सकता है। बस, सैंया कोतवाल और जज चौकीदार होना चाहिए।
सोशल मीडिया पर तंज कसते हुए लोग लिख रहे हैं कि भारत में पहला राजद्रोह का केस बंगाल में लगा। एक जोगेंद्र चन्द्र बोस थे, बंगभाषी नाम से अखबार चलाते थे। धुम्म लिखते थे अंग्रेजी सरकार के खिलाफ, सेडिशन लग गया। दूसरा फेमस केस है तिलक का। वही स्वराज्य मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है वाले बाल गंगाधर तिलक। केसरी नाम का अखबार निकालते थे। साहब ने लेख लिखे, सरकार ने राजद्रोह ठोक दिया। डेढ़ साल जेल में काटे। मानने वाले न थे, लिखते रहे। 1909 में फिर कुछ लेखों के कारण सेडिशन लगा। अबकी रंगून के जेल में पांच साल कटे। इसके आगे 1922, गांधीजी ने यंग इंडिया में लेख लिखे। अब गांधी तो किंग जार्ज की प्रशंसा में डीएनए करते नही। राजद्रोह चेंप दिया गया। गांधी बाबा बोले, हां, मैं 100% राजद्रोही हूं। अपराध स्वीकार है। अंग्रेज जज परेशान हो गया। अगर गांधी कोई प्ली देते, तो मानकर पिंड छुड़ा लेता। मगर गांधी तो अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ थे। जज ने मजबूरन पांच साल की सजा दी, लेकिन खुद ही छोड़ दिया डेढ़ साल में। वह भी बगैर माफीनामा लिखवाए। फिर आये भगतसिंह। बम ही नही, साहब ने पर्चे भी फेंके थे असेम्बली में। एक्सप्लोजीव एक्ट के साथ-साथ सेडिशन भी फ्री लगा। मुकदमा उसी पर बेस था, लेकिन बाद में सांडर्स केस में संलिप्तता स्वीकारने के कारण दूसरा केस 302 का बना। उनके दूसरे साथी बटुकेश्वर दत्त पर पहला ही केस रहा। वो 9 साल जेल रहकर छूटे। 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लिया। ताजा एग्जांपल असीम त्रिवेदी का है। यूपीए की दूसरी सरकार में उन साहब ने एक कार्टून बनाया था। उनपर मुकदमा लाद दिया गया। अब बारी कन्हैया और उसके साथियों की है। कन्हैया अकेले पड़ रहे थे। कन्हैया पर देशद्रोह का मुकदमा चलाने की मंजूरी पर सबसे पहला सवाल यही उठ खड़ा हो रहा है कि सरकार ने यह काम पहले क्यों नहीं किया? इस मुद्दे पर राजनीतिक सवाल भी पूछे जा रहे हैं कि क्या केजरीवाल ने गृह मंत्री से मिलने के बाद ही इस मुद्दे पर फैसला लिया? सच्चाई जो हो, पर अब कन्हैया कुमार की मुश्किलें बढ़ने वाली हैं। यह प्रतीत हो रहा है। देखते हैं, आगे क्या होता है?

-राजीव रंजन तिवारी