Transition period of patience: धैर्य के संधान का संक्रमण काल

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देश इस समय अलग-अलग मोर्चों पर चुनौतियों का सामना कर रहा है। ये मोर्चे भारतीय जनमानस को हर स्तर पर सीधे प्रभावित कर रहे हैं। इन सबकी जड़ में भले ही कोरोना नजर आ रहा हो, किन्तु इसके परिणाम सेहत के साथ रोटी, कपड़ा और मकान जैसी चुनौतियों के रूप में परिलक्षित हो रहे हैं। भारत के लिए यह इन चुनौतियों का सामना करने का समय तो है ही, धैर्य के साथ बड़ी परीक्षा की घड़ी भी है। वास्तविक अर्थों में अगले कुछ वर्ष हमारे धैर्य की परीक्षा वाले होंगे, मौजूदा समय इसी धैर्य के संधान का संक्रमण काल है। इसे सभी मोर्चों पर सावधानी से पार करना होगा।
कोरोना के वैश्विक हमले में भारत एक बड़े शिकार के रूप में सामने आया है। 21 दिन का पहला देशव्यापी लॉकडाउन खत्म होते-होते देश में कोरोना के संक्रमित मरीजों की संख्या दस हजार के आसपास पहुंच चुकी है। हालांकि यह संख्या अमेरिका, स्पेन व चीन जैसे देशों की तुलना में काफी कम नजर आती है, फिर भी संकट तो बना ही हुआ है। वैसे तब्लीगी जमात जैसी अराजक गतिविधियों से बचा जाता तो यह संख्या और कम होती। कोरोना पर प्रभावी नियंत्रण कर पाने के लिए दुनिया भर में भारत की प्रशंसा भी हो रही है किन्तु इस कारण उत्पन्न समस्याओं की चुनौती मुंह बाए खड़ी है। लॉकडाउन के कारण रोज लाखों लोग भूखे सोने को विवश हैं। भूख की इस चुनौती को सेहत की चुनौती से जूझना पड़ रहा है। स्वास्थ्य बचाने के लिए भूख खत्म करने की चुनौती पीछे सी छूट रही है। सरकारी दावों के बावजूद हर व्यक्ति को अन्न पहुंचाने में सफलता नहीं मिल पा रही है। यहां संतोष की बात ये है कि देश खुलकर सामने आ रहा है। सरकारों से ज्यादा स्वयंसेवी संगठन लोगों की मदद कर रहे हैं। यहां समस्या ये है कि स्वयंसेवी संगठन व उनसे जुड़े लोग आज तो खाना खिला देंगे, पर उस डर से कैसे मुक्ति दिलाएंगे, जो बेरोजगारी व भुखमरी की चिंता में लोगों को तड़पने के लिए विवश कर रही है।
देश के सामने कोरोनाजनित एक बड़ी समस्या रोजगार संकट के रूप में भी सामने आ रही है। देश में करोड़ों लोग ऐसे हैं, जो एक महीने से बिना काम के घर में बैठे होने के कारण अपनी जमा पूंजी खत्म कर चुके हैं। बीमारी से लड़ाई जीतने व लॉकडाउन से मुक्ति के बाद बेरोजगारों व भूखों की इस बड़ी भीड़ से निपटने की चुनौती सरकारों के साथ समग्र समाज की होगी। पहले से ही घटते रोजगारों से परेशान देश के सामने यह नया बेरोजगारी संकट विशद समस्याएं लेकर आएगा। कोरोना संकट से पहले आई सेंटर फॉर मॉनीटरिंग इंडियन इकॉनमी की एक रिपोर्ट में भारत में बेरोजगारी दर बढ़कर 7.5 प्रतिशत बताई गयी थी। कोरोना के बाद इसकी रफ्तार और तेजी से बढ़ी है। जब ये आंकड़े सामने आएंगे, तो निश्चित रूप से पूरे देश के लिए डराने वाले होंगे। भारत को मिलकर इस चुनौती का सामना करना ही होगी।
कोरोना का यह संकट पहले से ही संकटग्रस्त भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए अतिरिक्त संकट की सौगात लेकर आया है। भारतीय अर्थव्यवस्था के मूल अवयवों की बात करें, तो पिछले कुछ वर्ष खासे चुनौतियों भरे हैं। बीता वर्ष आॅटोमोबाइल सेक्टर, रियल स्टेट सहित लघु उद्योगों व असंगठित क्षेत्रों के लिए खासा परेशानी भरा रहा है। कोरोना संकट के बाद हुई देशव्यापी बंदी ने इस परेशानी को और बढ़ा दिया है। पिछले 21 दिनों से लोग घरों में कैद हैं और दुकानों में ताले लगे हैं। उत्पादन भी ठप है और आपूर्ति की राह बंद है। ऐसे में उद्यमिता व अर्थव्यवस्था के रथ का पहिया थम सा गया है। उद्योग जगत इसे समझ भी रहा है, जिसके परिणाम स्वरूप देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में कमजोरी आने के एलान भी शुरू हो गए हैं। आर्थिक क्षेत्र में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रमुख एजेंसी स्टैंडर्ड एंड पुअर्स ने मौजूदा वित्तीय वर्ष के लिए संभावित जीडीपी वृद्धि दर के अनुमान घटा दिए हैं। इस एजेंसी ने पहले 6.5 प्रतिशत जीडीपी वृद्धि दर का अनुमान लगाया था, जो अब घटाकर 5.2 प्रतिशत कर दिया गया है। अर्थव्यवस्था के सामने आई इस चुनौती से भी पूरे देश को मिलकर निपटना होगा। सरकारों को जनाकांक्षाओं के अनुरूप निर्णय लेने होंगे और देश को भी धैर्य के साथ कुछ कठोर आर्थिक फैसलों के लिए तैयार रहना होगा।
कोरोना संकट ने देश के सामने तमाम दिक्कतों की सौगात भले ही दी हों, किन्तु एकजुटता का संदेश भी दिया है। जिस तरह देश एक साथ मिलकर इस चुनौती का सामना कर रहा है, उसके बाद इसमें कोई संशय नहीं कि हम सब मिलकर कोरोना के बाद की अन्य चुनौतियों का सामना भी मजबूती से करेंगे। यह हमारे धैर्य व संयम की परीक्षा का समय भी है और पूरे देश को इस समय मिलकर यह संक्रमण काल पार करना है। उम्मीद है हम करेंगे और जरूर करेंगे। भारत जीतेगा और सारी चुनौतियों को परास्त कर एक बार फिर विजेता बनकर सामने आएगा।