जरूरत से कम या ज्‍यादा नींद आपके लिए खतरनाक साबित हो सकता है

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Sleep-Disorder
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एक्‍सपर्ट से जानिए स्लीप डिसऑर्डर के बारे में

आजकल के भागमभाग वाली लाइफ में हर किसी को थकान होती है। खोन-पीने से लेकर पूरी दिनचर्या में कुछ इस तरह के बदलाव हो चुके हैं, अब अधिकतर लोग नींद की शिकायत से जूझते हैं। कुछ लोगों को नींद बहुत ही कम आती है तो वहीं कुछ लोगों सामान्‍य समय से ज्‍यादा सोते हैं। इसके अलावा भी कई लोगों की नींद बार-बार टूट जाती है और फिर उन्‍हें दोबारा नींद आनी मुश्किल होती है। नींद को लेकर अनिय‍मितता के कई कारण होते हैं। कोकिलाबेन धीरुभाई अंबानी हॉस्पिटल में कंसल्‍टेंट सायकेट्री डॉ अपर्णा रामकृष्‍णन ने इस बारे में विस्तार से जानकारी दी।

डॉक्टर का कहना है कि नींद न केवल हमारे आराम के लिए जरूरी होती है, बल्कि अपनी ऊर्जा को रिस्‍टोर करने के लिए भी बेहद जरूरी होती है। इसीलिए कहा जात है कि हर व्‍यक्ति को 8 से 10 घंटे की नींद लेने की सलाह दी जाती है। लेकिन, मौजूदा समय में तनाव फैला हुआ है। बीते दो साल से हम एक ऐसी दुनिया में रहते, जिसमें हम अभी तक देखा नहीं था। इन सब तनाव की वजह से आजकल लोगों में नींद की सबसे बड़ी समस्‍या देखने को मिलती है। इसके कई लक्षण है। सबसे बड़ी समस्‍या यह है कि हम सभी को कभी न कभी नींद आने में दिक्‍कत होती है। बार-बार नींद का टूटना और एक बार जब रात को नींद टूट जाए तो दोबारा आसानी से नींद नहीं आना भी एक लक्षण है। कई बार ऐसा भी होता है कि कड़ी मशक्‍कत के बाद सो भी जाएं तो जल्‍द ही नींद टूट जाना भी एक लक्षण होता है। इसके बाद द‍िनभर थकावट से महसूस होता है। ऊंघाई लगी रहती है।

इसी तरह नींद के कुछ अलग लक्षण भी हो सकते हैं। जैसे कि बहुत ज्‍यादा नींद आना। कुछ मामलों में 8 से 10 घंटे सोने के बाद भी लगता है कि नींद पूरी ही नहीं हुई है। इसके अलावा भी कई लोगों में नींद में बात करना या नींद में चलने आदि की शिकायत होती है। ये सब स्‍लीप डि‍सऑर्डर के लक्षण होते हैं। कुछ मामलों में स्‍लीप डिसऑर्डर की वजह से सांस की गति भी तेजी हो जाती है। कभी-कभी शारीरिक बीमारी की वजह से या सांस की नली में समस्‍या होने से सांस अटक जाती है और फिर अचानक से नींद खुल जाती है। कई रातों तक ये समस्‍याएं रहती है तो समझ जाना चाहिए कि आप स्‍लीप डिसऑर्डर की समस्‍या से जूझ रहे हैं। लेकिन यह भी समझना होगा कि लगातार तीन महीने तक हफ्ते में कम से कम 3 दिन तक इस तरह की समस्‍या होती है तो ऐसे व्‍यक्ति में नींद का विकार यानी नींद से जुड़ बीमारी है।

बताते हैं कि नौकरी करने वालों के शिफ्ट में बदलाव या जेट लैग या किसी भी तरह का भारी कम करने के बाद थकान को भी स्‍लीप डिसऑर्डर की श्रेणी में माना जाता है। अभी हम बाहरी घड़ी के हिसाब से अपना वक्‍त बिताते हैं, अपने काम करते हैं। हमारे रूटीन इसी हिसाब से चलता है। ठीक इसी तरह हमारी बॉडी का भी एक क्‍लॉक होता है, जिसे हमें बायोलॉजिकल क्‍लॉक कहते हैं। यही घड़ी हमें बताती है कि चलो अभी भूख लगी है, अभी खाने का वक्‍त हो गया है, अभी सोने का वक्‍त हो गया है। अधिकतर समय में बाहरी घड़ी और बायोलॉजिकल घड़ी में लगभग सटीक संतुलना होता है। तनाव, एंग्‍जायटी या अवसाद हमारे इमोशन को बहुत ऊंचा कर देता है। इसकी वजह से जब हम रात सोने भी चले जाते हैं तो दिमाग चलता रहता है। ऐसी स्थिति में दिमाग को आराम नहीं मिलता है। और जब द‍िमाग को आराम नहीं मिलता है तो शरीर को कैसे आराम मिल सकता है। आजकल के तनाव भरे जीवन और दिनचर्या की वजह से स्‍लीप डिसऑर्डर के मामले और भी ज्‍यादा बढ़ गए हैं। स्‍लीप हाइजिन नाम की एक प्रक्रिया भी होती है, जिसे हम सभी को अपनाना भी चाहिए। इस प्रक्रिया का पहला नियम यही होता है कि सोने से पहले लैपटॉप, मोबाइल, टैब, टीवी आदि जैसे स्‍क्रीन से बिल्‍कुल दूर हो जाएं. इसका कारण है कि स्‍क्रीन से हमारी आंखों में सीधे लाइट आती है। इस लाइट की वजह से हमारे शरीर में नींद के लिए जो हॉर्मोन बनना चाहिए, वो नहीं बन पाती है। इसकी वजह से हम सो नहीं पाते हैं। ऐसे में स्‍क्रीन पर जितना ज्‍यादा समय गुजारेंगे, हमारी नींद उतनी ही लेट आएगी।

स्‍लीप डिसऑर्डर के कई प्रकार होते हैं। इनमें सबसे कॉमन इनसोम्निया यानी नींद का न आना है। इसका मतलब है बेड पर लेटने के बावजूद भी लंबे समय तक नींद नहीं आती है। अधिकतम से 30 से 45 मिनट के अंदर नींद आ जानी चाहिए। अगर नींद आ भी जाती है उसकी एकाग्रता नहीं रहती है। बार-बार नींद टूटती रहती है। इतना ही नहीं, ऐसी स्थिति में सुबह नींद बहुत जल्‍द ही खुल जाती है। मान लीजिए सामान्‍य तौर पर आपको 6-7 बजे उठने की आदत है, लेकिन इनसोम्निया की स्थिति में आज 1-2 बजे ही उठ जाते हैं। इसके बाद आपको फिर नींद नहीं आती। इसके एकदम विपरित भी एक बीमारी है, जिसे हाइपरसोम्निया कहते हैं। इस बीमारी में ज्‍यादा नींद आती है। इस बीमारी से ग्रसित लोग अगर 10 घंटे भी सो जाएं तो भी उनकी नींद नहीं पूरी होती है। नींदी की एक और भी बीमारी होती है, जिसे नार्कोलेप्‍सी बोलते हैं। इस बीमारी में नींद और भी ज्‍यादा लगती है।