अशोक ध्यानचंद
हमारे समय की हॉकी में दिमाग और कला ज्यादा मायने रखती थी लेकिन आज की हॉकी में दिमाग से ज्यादा शारीरिक बल अहम है। मुझे खुशी है कि इस सबके बावजूद भारतीय खिलाड़ियों ने जिस तरह हमारी टीम ने एफआईएच प्रो हॉकी लीग में नीदरलैंड, बेल्जियम जैसी ताकतवर टीमों को हराकर चौथा स्थान हासिल किया है, उससे इस बार टोक्यो ओलिम्पिक में उम्मीदें जगती हैं। कम से कम यह टीम सेमीफाइनल में पहुंचने की हकदार है। उसके बाद कोई भी टीम किसी को भी हरा सकती है। वैसे भी टीम में रियो ओलिम्पिक में खेल चुके पांच खिलाड़ी मौजूद हैं।
जहां तक हरमनप्रीत, रुपेंद्र, सुरेंद्र, बीरेंदर लाकड़ा की डिफेंस लाइन की बात है तो ये काफी अनुभवी है। ये खिलाड़ी पेनाल्टी कॉर्नर पर गोल करने में भी माहिर हैं। हमारे समय में जब फुलबैक की ओर से गोल होते थे तो हमें गालियां पड़ती थीं लेकिन आज समय बदल गया है। मध्य पंक्ति में इस बार हार्दिक, मनप्रीत, विवेक, नीलकांत, सुमित और विवेक सागर हैं। इन सब खिलाड़ियों को मैंने ओड़िशा में वर्ल्ड कप में काफी करीब से देखा है। ये सभी खिलाड़ी अपनी कमजोरियों से उबरकर वापसी करने में माहिर हैं। ये खिलाड़ी गेंद को अपने कब्जे में रखने में भी माहिर हैं। ये खिलाड़ी फॉरवर्ड लाइन को आगे सहयोग करें और पीछे डिफेंस पर भी ध्यान दें तो यह आदर्श स्थिति होगी और ये खिलाड़ी ऐसा करने में सक्षम हैं।
फॉरवर्ड लाइन में शमशेर सिंह, दिलप्रीत सिंह, गुरजंत सिंह, ललित उपाध्याय और मंदीप सिंह मौजूद हैं। सभी को इस बात का ध्यान रखना होगा कि जिस फॉरवर्ड लाइन में समझदारी के साथ गोल पर अटैक करने की काबिलियत है जो निरंतर गोल के प्रयास करती है, वही फॉरवर्ड लाइन अच्छी है। 1980 के ओलिम्पिक में गोल्ड जीतने के बाद भारतीय टीम यूरोपीय खिलाड़ियों के अटैक के सामने डिफेंस पर जोर देने लगी थी। हम दो-दो सेंटर हाफ खिलाने लग गये लेकिन वक्त बदलने के साथ उम्मीदें जगी हैं। सुनियोजित तरीके से हमारी फॉरवर्ड लाइन को काउंटर अटैक करने होंगे। हमारे पूल में आॅस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, अर्जेंटीना, जापान और स्पेन की टीमें हैं। हम एक-एक सीढ़ी चढ़ने की ओर देखें। पहला मैच खेलते हुए सोचें कि यह हमारा आखिरी मैच है। टीम की स्ट्रैटजी कोच तो तय करेगा ही लेकिन हर खिलाड़ी के भी दिमाग में जरूरत के हिसाब से रणनीति बननी चाहिए। हमारी डब्ल्यू फॉर्मेशन काफी अटैकिंग हुआ करती थी। अब मेरे ख्याल से चार फॉरवर्ड के साथ खेलना ज्यादा कारगर साबित हो सकता है। आज बहुत जल्दी खिलाड़ी रोटेट होते हैं। इनर्स खिलाड़ी पीछे बचाव के लिए भी आते हैं। अगर खेल के दौरान गेंद मिस हो जाये तो हमारा डिफेंस इतना मजबूत होना चाहिए कि उस गलती की भरपाई कर सके।
यह खेल चतुराई से परिपूर्ण है। इसमें खिलाड़ियों की आंखे चौकन्नी होनी चाहिए। हिरण की तरह तेज बढ़ने की क्षमता हो। विजन क्लीयर हो। गेंद को रिलीज करना, तालमेल सब खेल का हिस्सा हैं। मैं हॉकी खिलाड़ियों से अपील करता हूं की जीत की सामर्थय रखें क्योंकि बाकी टीमें भी तो भारत के खिलाफ रणनीति बना रही होंगी। उन्हें भी अब भारत से डर लगने लगा है। मुझे विश्वास है कि यह टीम पिछले 40 वर्षों के सूनेपन को जरूर समाप्त करेगी।
(लेखक 1975 का वर्ल्ड कप विनिंग टीम के सदस्य होने के अलावा पूर्व ओलिम्पियन भी हैं)