भारत में नशा लोगों की नसों में घूसा है। तम्बाकू के शौकीन काफी संख्या में पाए जाते हैं। लॉकडाउन में तम्बाकू पर प्रतिबंध होने के बाद भी लोग इसका उपयोग कर रहे हैं। बजार से कई गुना अधिक दाम चुका कर तम्बाकू का सेवन किया जा रहा है। कच्ची तम्बाकू का खैनी के रुप में जबकि पक्की का जर्दा और सूखा बनाकर गांव – देहात में हुक्का के रुप में भी प्रयोग किया जाता है। बुजुर्गों से अधिक इस नशे की युवापीढ़ी शौकीन है। जर्दे के डिब्बे पर कैंसर की वैधानिक चेतावनी होने के बाद भी लोग बेझिझक उपयोग करते हैं। जबकि कोरोना में सरकार ने इस पर प्रतिबंध लगा रखा है।
तंबाकू निकोसियाना जाति के पौधे की पत्तियां हैं। इसका प्रयोग विश्व भर में सबसे ज्यादा किया जाता है। भारत में तंबाकू 1608 में पुर्तगाल से आया, मुगल शासक जहांगीर ने 1617 में तंबाकू पर रोक लगा दी थी। भारत विश्व के कुल तंबाकू का लगभग 8% उत्पादन करता है। दुनिया में उत्पादन के दृष्टि से भारत चीन के बाद दूसरे स्थान पर है। जबकि निर्यात में छठे स्थान पर है। तंबाकू वर्तमान समय में किसी न किसी रूप में दुनिया के प्रत्येक देशों में पाया जाता है। दुनिया भर में तंबाकू की 65 किस्में पाई जाती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार हर वर्ष गैर संचारी रोग कैंसर, मधुमेह, सांस की बीमारी, त्वचा की बीमारी, हृदय रोग से मरने वालों की संख्या 38 लाख है। जिसमें तंबाकू की अहम भूमिका निभाती है। एक अनुमान के अनुसार पूरी दुनिया में प्रति 6 सेकंड पर एक व्यक्ति की मौत का कारण तंबाकू बनती है। भारत में तंबाकू सेवन करने वालों की संख्या लगभग 27 करोड़ है। आंकड़ों के अनुसार भारत में हर दिन लगभग 2700 लोगों के मृत्यु का कारण तंबाकू बनती है। ग्लोबल एडल्ट तंबाकू सर्वेक्षण 2016-17 के अनुसार भारत में 42.47% पुरुष तथा 12.24% महिलाएं तंबाकू का प्रयोग करते हैं।
सेकंड हैंड स्मोकिंग भी इस दौर में जानलेवा साबित हो रहा है। सेकंड हैंड स्मोकिंग यानी जिसमें व्यक्ति स्वयं धूम्रपान नहीं करता किंतु उसके परिवार के सदस्य एवं आसपास के लोगों द्वारा धूम्रपान करने के कारण श्वांस के माध्यम से धूम्र ग्रहण करते हैं। इसे ‘पैसिव स्मोकिंग’ परोक्ष धूम्रपान यानी ईटीएस (एनवायरमेंटल टोबैको स्मोक) के नाम से भी जानते हैं। एआरटी सेंटर, एसएस हॉस्पिटल (आईएमएस, बीएचयू वाराणसी) के वरिष्ठ परामर्शदाता डॉ मनोज कुमार तिवारी के अनुसार यह स्थिति बेहद घातक है। सिगरेट और बीड़ी पीने वाले जो धुआं छोड़ते हैं उसमें सामान्य हवा की अपेक्षा तीन गुना ज्यादा निकोटीन 50 गुना अमोनिया पाया जाता है। डॉ. मनोज के अनुसार जो लोग धूम्रपान करते हैं उसका प्रभाव उनकी सांसों में 24 घंटों के बाद भी बना रहता है। इनके बच्चों में ‘सेकंड हैंड स्मोकिंग’ के कारण दिल का दौरा पड़ने या स्ट्रोक का खतरा बहुत अधिक रहता है। ‘सेकंड हैंड स्मोकिंग’ के कारण महिलाओं में बांझपन का भी खतरा बढ़ जाता है। एक अनुमान के अनुसार भारत में 50 फीसदी लोग सेकंड हैंड स्मोकिंग के शिकार होते हैं।
भारत में तंबाकू कई प्रकार से उपयोग में लाई जाती है जिसमें तंबाकू वाला पान, पान मसाला, तंबाकू, सुपारी व बुझे हुए चूने का मिश्रण, मैनपुरी तंबाकू, मावा, खैनी (तंबाकू व बुझे हुए चूना का मिश्रण) चबाने योग्य तंबाक, सनस, गुल, बज्जर, गुढाकू, क्रीमदार तंबाकू पाउडर, तंबाकू युक्त पानी, बीड़ी सिगरेट, सिगार, चैरट, चुट्टा, घुमटी, पाइप, हुकली, चिलम, हुक्का में किया जाता है। इसका बुरा प्रभाव हमारी सेहत पर पड़ता है। तंबाकू के दुष्प्रभाव से गुर्दे की बीमारी, नेत्र रोग, सांस की समस्याएं, दांतों की समस्या, मसूड़ों की समस्या, संधि शोथ, आंतों में सूजन, स्तंभन रोग, त्वचा रोग, विभिन्न प्रकार के कैंसर, उच्च रक्तचाप और दमा जैसी बीमारियां होती हैं। महिलाएं अगर गर्भवती हैं तो उनकी सेहत पर इसका सबसे बुरा प्रभाव आने वाले बच्चे पर पड़ता है। जिसमें गर्व के दौरान रक्त स्राव, समय से पूर्व बच्चे का जन्म, मृत बच्चे का जन्म, प्लेसेंटा संबंधी गड़बड़ी, जन्म के समय बच्चे के अंगुलियों का टेढ़ा होना प्रसव में जटिलता जैसी समस्या उत्पन्न होती है। जबकि शिशु के जन्म के बाद इसका प्रभाव बच्चे में एलर्जी, रक्तचाप, मोटापा, असामान्य विकास, फेफड़ों में समस्या और अस्थमा इत्यादि के रुप में देखा जाता है। दुनिया इस वक्त कोरोना जैसी महामारी से जूझ रहीं है। लाखों लोग अपनी जान गंवा चुके हैं। इसमें तम्बाकू सेवन भी अहम भूमिका निभा रहा है। डॉ. मनोज के अनुसार तंबाकू के उपयोग से श्वसन संबंधी अनेक बीमारियां होती हैं। तंबाकू सेवन से बीमारियों की गंभीरता बढ़ जाती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार जो लोग तंबाकू का सेवन करते हैं उनमें कोविड-19 का संक्रमण अधिक तेजी से फैलता है। क्योंकि तंबाकू का उपयोग करने वालों का फेफड़ा अपेक्षाकृत कमजोर होता है। जिससे इस तरह के व्यक्तियों में न केवल कोरोना के संक्रमण का खतरा अधिक होता है बल्कि फेफड़ा कोरोना वायरस व उससे जुड़ी बीमारियों से लड़ने में भी सक्षम नहीं होता है।
–
प्रभुनाथ शुक्ल
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं। यह इनके निजी विचार हैं।)