महाराजा रणजीत सिंह की पुण्य तिथि पर पाकिस्तान जाने के लिए 30 तक आवेदन, इतने महान थे महाराजा

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महाराजा रणजीत सिंह की पुण्य तिथि पर पाकिस्तान जाने के लिए 30 तक आवेदन, इतने महान थे महाराजा
महाराजा रणजीत सिंह की पुण्य तिथि पर पाकिस्तान जाने के लिए 30 तक आवेदन, इतने महान थे महाराजा

प्रवीण वालिया, करनाल:
डीसी अनीश यादव ने बताया कि जिले के ऐसे श्रद्धालु, यात्री और जत्थे जो महाराजा रणजीत सिंह की पुण्य तिथि पर पाकिस्तान स्थित गुरुद्वारों के दर्शन के लिए जाना चाहते हैं, वे अपना पंजीकरण जिला स्तर पर करा सकते हैं, जिससे कि समय से सत्यापन करके संबंधित विभाग को भेजा जा सके।

जून माह में होंगे गुरुद्वारों में दर्शन

उन्होंने कहा कि गृह विभाग हरियाणा के अतिरिक्त मुख्य सचिव के निर्देशानुसार जिला के ऐसे श्रद्घालुओं, यात्रियों व जत्थों से आवेदन आमंत्रित किए गए हैं, जो महाराजा रणजीत सिंह की पुण्य तिथि पर पाकिस्तान स्थित गुरुद्वारों के दर्शन के लिए जून माह में जाना चाहते है। ऐसे श्रद्घालु और जत्थे गृह विभाग की ओर से से जारी प्रोफार्मा में अपने आवदेन 30 अप्रैल 2022 तक उपायुक्त कार्यालय में जमा करा सकते हैं।

1780 में गुजरांवाला में हुआ था जन्म

महाराजा रणजीत सिंह पंजाब प्रांत के राजा थे। वे शेर-ए पंजाब के नाम से विख्यात रहे। महाराजा रणजीत एक ऐसे व्यक्ति थे, जिन्होंने न केवल पंजाब को एक सशक्त सूबे के रूप में एकजुट रखा, बल्कि अपने जीते-जी अंग्रेजों को अपने साम्राज्य के पास भटकने भी नहीं दिया। रणजीत सिंह का जन्म सन 1780 में गुजरांवाला (अब पाकिस्तान) संधावालिया महाराजा महा सिंह के घर हुआ था। उन दिनों पंजाब पर सिखों और अफगानों का राज चलता था जिन्होंने पूरे इलाके को कई मिसलों में बांट रखा था। रणजीत के पिता महा सिंह सुकरचकिया मिसल के कमांडर थे। पश्चिमी पंजाब में स्थित इस इलाके का मुख्यालय गुजरांवाला में था।

12 वर्ष की उम्र में चली गई थी एक आंख की रोशनी

छोटी सी उम्र में चेचक की वजह से महाराजा रणजीत सिंह की एक आंख की रोशनी चली गयी थी। वे महज 12 वर्ष के थे जब उनके पिता चल बसे और राजपाट का सारा बोझ उन्हीं के कंधों पर आ गया। 12 अप्रैल 1801 को रणजीत सिंह ने महाराजा की उपाधि ग्रहण की। गुरु नानक जी के एक वंशज ने उनकी ताजपोशी संपन्न कराई। उन्होंने लाहौर को अपनी राजधानी बनाया और सन 1802 में अमृतसर की ओर रुख किया। महाराजा रणजीत ने अफगानों के खिलाफ कई लड़ाइयां लड़ीं और उन्हें पश्चिमी पंजाब की ओर खदेड़ दिया।

पहली सिख खालसा सेना की थी स्थापित

पहली आधुनिक भारतीय सेना सिख खालसा सेना गठित करने का श्रेय भी उन्हीं को है। उनकी सरपरस्ती में पंजाब अब बहुत शक्तिशाली सूबा था। इसी ताकतवर सेना ने लंबे अर्से तक ब्रिटेन को पंजाब हड़पने से रोके रखा। एक ऐसा मौका भी आया जब पंजाब ही एकमात्र ऐसा सूबा था, जिस पर अंग्रेजों का कब्जा नहीं था। ब्रिटिश इतिहासकार जे टी व्हीलर के मुताबिक, अगर वह एक पीढ़ी पुराने होते, तो पूरे हिंदूस्तान को ही फतह कर लेते। महाराजा रणजीत खुद अनपढ़ थे, लेकिन उन्होंने अपने राज्य में शिक्षा और कला को बहुत प्रोत्साहन दिया।

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