पं चांग में साल भर कुछ ऐसी विशेष तिथियों का उल्लेख है, जिस पर स्नान, दान और पूजा आदि का विशेष महत्व होता है। इन्हीं में से एक है मौनी अमावस्या। हर साल माघ मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को मौनी अमावस्या के रूप में पूरी श्रद्धा और आस्था के साथ मनाया जाता है।
इसलिए कहते हैं मौनी अमावस्या
यह तिथि चुप रहकर, मौन धारण करके मुनियों के समान आचरण करते हुए स्नान करने के विशेष महत्?व के कारण ही माघमास, कृष्णपक्ष की अमावस्या, मौनी अमावस्या कहलाती है। माघ मास में गोचर करते हुए भगवान सूर्य जब चंद्रमा के साथ मकर राशि पर आसीन होते हैं तो ज्योतिषशास्त्र में उस काल को मौनी अमावस्या कहते हैं।
संगम में स्नान
मौनी अमावस्या पर प्रयागराज में संगम में स्नान का विशेष महत्व शास्त्रों में बताया गया है। इस दिन यहां देव और पितरों का संगम होता है। शास्त्रों में इस बात का उल्लेख मिलता है कि माघ के महीने में देवतागण प्रयागराज आकर अदृश्य रूप से संगम में स्नान करते हैं। वहीं मौनी अमावस्या के दिन पितृगण पितृलोक से संगम में स्नान करने आते हैं और इस तरह देवता और पितरों का इस दिन संगम होता है। इस दिन किया गया जप, तप, ध्यान, स्नान, दान, यज्ञ, हवन कई गुना फल देता है।
करना चाहिए इस मंत्र का जप
शास्त्रों के अनुसार इस दिन मौन रखना, गंगा स्नान करना और दान देने से विशेष फल की प्राप्ति होती है। अमावस्या के विषय में कहा गया है कि इस दिन मन, कर्म तथा वाणी के जरिए किसी के लिए अशुभ नहीं सोचना चाहिए। केवल बंद होठों से उपांशु क्रिया करते हुए ओम नमो भगवते वासुदेवाय, ओम खखोल्काय नम:, ओम नम: शिवाय मंत्र पढ़ते हुए अर्ध्य आदि देना चाहिए।
मौनी अमावस्या का व्रत
शास्त्रों में ऐसा बताया गया है कि मौनी अमावस्या के दिन व्रत करने से पुत्री और दामाद की आयु बढ़ती है। पुत्री को अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है। मान्यता है कि सौ अश्वमेध यज्ञ और एक हजार राजसूर्य यज्ञ का फल मौनी अमावस्या पर त्रिवेणी में स्नान से मिलता है।
इन वस्तुओं का करें दान
मौनी अमावस्या के दिन गंगा स्नान के पश्चात तिल के लड्डू, तिल का तेल, आंवला, वस्त्र, अंजन, दर्पण, स्वर्ण और दूध देने वाली गाय का दान करने से विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है।
पद्मपुराण में मौनी अमावस्या का महत्व
पद्मपुराण के अनुसार माघ के कृष्णपक्ष की अमावस्या को सूर्योदय से पहले जो तिल और जल से पितरों का तर्पण करता है वह स्वर्ग में अक्षय सुख भोगता है। तिल का गौ बनाकर सभी सामग्रियों समेत दान करता है वह सात जन्मों के पापों से मुक्त हो स्वर्ग का सुख भोगता है। प्रत्येक अमावस्या का महत्व अधिक है लेकिन मकरस्थ रवि होने के कारण मौनी अमावस्या का महत्व कहीं अधिक है।
स्कन्दपुराण में महिमा
स्कन्दपुराण के अनुसार पितरों के उद्देश्य से भक्तिपूर्वक गुड़, घी और तिल के साथ मधुयुक्त खीर गंगा में डालते हैं उनके पितर सौ वर्ष तक तृप्त बने रहते हैं। वह परिजन के कार्य से संतुष्ट होकर संतानों को नाना प्रकार के मनोवांछित फल प्रदान करते हैं। गंगा तट पर एकबार पिंडदान करने और तिलमिश्रित जल के द्वारा अपने पितरों का भव से उद्धार कर देता है।
मौनी अमावस्या का शुभ मुहूर्त
अमावस्या तिथि प्रारम्भ- सुबह 2 बजकर 17 मिनट से (24 जनवरी 2020)
अमावस्या तिथि समाप्त- अगले दिन सुबह 3 बजकर 11 मिनट तक (25 जनवरी 2020)
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