कभी अर्थविद् जॉन मेनार्ड केंज ने सिखाया था कि रोजगार ही मांग की गारंटी है, लोग खर्च तभी करते हैं जब उन्हें पता हो कि अगले महीने पैसा आएगा। पिछले कुछ हफ़्तों में, हमने ऐसे कई अध्ययन और सर्वेक्षण देखे हैं जो आजीविका में बढ़ते संकट की ओर इशारा करते हैं।
अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के डेटाबेस पर आधारित सेंटर फॉर इकोनॉमिक डेटा एंड एनालिसिस (सीईडीए) के एक अध्ययन के अनुसार, भारत में बेरोजगारी दर 1991 के बाद से 2020 में अपने उच्चतम स्तर पर पहुंच गई है। गौर करने वाली बात यह है कि भारत ने अपने निकटतम पड़ोसियों की तुलना में सबसे अधिक बेरोजगारी दर प्रदर्शित की। यह दर चीन में 5 प्रतिशत, बांग्लादेश में 5.3 प्रतिशत, पाकिस्तान में 4.65 प्रतिशत और श्रीलंका में 4.84 प्रतिशत थी जबकि भारत में यह 7.11 प्रतिशत रही।
रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत ने 2015 और 2019 के बीच अमरीका, यूनाइटेड किंगडम और जर्मनी की तुलना में उच्च बेरोजगारी दर दर्ज की है। इसके अलावा ईपीएफओ पेरोल डेटा के एक एसबीआई अनुसंधान विश्लेषण से पता चलता है कि पिछले वित्त वर्ष की तुलना में वित्त वर्ष 2021 में अर्थव्यवस्था में कुल रोजगार सृजन 16.9 लाख गिर गया। हालिया आंकड़े तो और भी ज्यादा खतरनाक हैं, देश एक बार फिर दहाई से ऊपर की बेरोजगारी दर का सामना कर रहा है।सीएमआईई के आंकड़े बताते हैं कि 23 मई तक30-दिवसीय औसत रोजगार दर में 100 बेसिस अंकों की गिरावट आई है, जिसका मतलब मई में ही एक करोड़ नौकरियों का नुकसान हुआ है। 16 मई और 23 मई को समाप्त हुए सप्ताह में बेरोजगारी दर क्रमश: 14.5 प्रतिशत और 14.7 प्रतिशत तक पहुंच गई थी, यह दर 8 मई वाले सप्ताह में मात्र 8.7 प्रतिशत थी। चिंताजनक यह है कि सामान्य प्रवृत्ति के विपरीत जहां शहरी बेरोजगारी दर ग्रामीण बेरोजगारी दर से अधिक होती है इस वक्त शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में बेरोजगारी दर तेजी से बढ़ रही है। शहरी बेरोजगारी दर लगातार बढ़ रही है और 23 मई तक 12.7 प्रतिशत हो गई थी। वहीं ग्रामीण बेरोजगारी दर में वृद्धि मई में शुरू हुई एक हालिया घटना है। यह दर 23 मई तक तेजी से बढ़कर 9.7 प्रतिशत तक पहुंच गई। बेरोजगारी में लगातार वृद्धि मई में रोजगार के नुकसान की संभावना दशार्ती है।
सीएमआईई के अनुसार श्रम भागीदारी दर (एलपीआर) में कोई वृद्धि नहीं हुई है, जिसका सीधा मतलब है कि रोजगार मांग रहे लोगों की संख्या में वृद्धि से बेरोजगारी दर नहीं बढ़ी है, बल्कि भरसक रूप से रोजगार खत्म होने की वजह से बेरोजगारी दर में वृद्धि हुई है। अप्रैल 2021 में एलपीआर 39.98 प्रतिशत था और 23 मई को यह 40.01 प्रतिशत हो गया। इसलिए बेरोजगारी दर में वृद्धि महीने के दौरान रोजगार में गिरावट को दशार्ती है।
गौर करने वाली बात यह भी है कि अप्रैल 2021 में रोजगार दर 36.8 प्रतिशत थी, जबकि यह रोजगार दर 23 मई को 35.8 प्रतिशत हो गई। केवल मई में ही एक करोड़ नौकरियां समाप्त हो गईं, इससे पहले अप्रैल में भी 75 लाख नौकरियां समाप्त हो गईं थीं। जनवरी 2021 से रोजगार गिर रहा है और जनवरी और अप्रैल 2021 के बीच तकरीबन 1 करोड़ नौकरियां समाप्त हो गईं थी। इसके अलावा सीएमआईई और सीईडीए कीएक रिपोर्ट ने भारत में विभिन्न क्षेत्रों में रोजगारों का अध्ययन किया। इसमें सात क्षेत्रों में रोजगार डेटा का अध्ययन है, जैसे कृषि, खान, निर्माण, रियल एस्टेट एवं निर्माण, वित्तीय सेवाएं, गैर-वित्तीय सेवाएं और सार्वजनिक प्रशासनिक सेवाएं। इन क्षेत्रों का भारत में कुल रोजगार में 99 प्रतिशत का हिस्सा है।
आंकड़े बताते हैं कि अर्थव्यवस्था के विनिर्माण क्षेत्र में कार्यरत लोगों की संख्या केवल चार वर्षों के अंतराल में लगभग आधी हो गई है।इसके अलावा निराशाजनक यह भी है कि कृषि क्षेत्र में कार्यरत लोगों की संख्या बढ़ रही है। समान रूप से निराशाजनक यह है कि गैर-वित्तीय सेवाओंमें रोजगार में तेजी से गिरावट आई है।विनिर्माण क्षेत्र अच्छी तरह से अनुकूल है क्योंकि यह सेवा क्षेत्र के विपरीत लाखों कम शिक्षित भारतीय युवाओं को रोजगार दे सकता है। लंबे समय तक, भारत ने अपने विनिर्माण उद्योगों को नौकरियों का बैंक बनाने के लिए संघर्ष किया है। लेकिन, पिछले 4-5 वर्षों में रोजगार देने की बजाय विनिर्माण क्षेत्र में रोजगार खत्म हो रहे हैं। भारत ने पिछले एक साल में कृषि में रोजगार करने वाले लोगों की संख्या में वृद्धि देखी है। इसे जानकार और कुछ नहीं बल्कि प्रच्छन्न रोजगार मानते हैं।