एमएसपी की तुलना में खुले बाजार में मिली ज्यादा कीमत, बफर स्टॉक पर पड़ा असर
Business News (आज समाज), नई दिल्ली। कृषि विशेषज्ञ किसानों को फसल चक्र से बाहर निकलने की सलाह लगातार देते रहते हैं लेकिन हमारे ज्यादात्तर किसान पारंपरिक खेती ही कर रहे हैं जिसके चलते वे फसल चक्र से बाहर नहीं निकल पा रहे। इसी का कारण है कि देश में गेहूं व धान को गोदाम में रखने का स्थान भी नहीं बचा है जबकि दलहन के क्षेत्र में हम लगातार आयात पर निर्भर कर रहे हैं। इस बार देश के सामने दाल संकट पैदा हो सकता है। इसके प्रमुख दो कारण हैं एक तो कम क्षेत्रफल पर खेती होना दूसरा सरकार द्वारा भरपूर दाम न देना।
इसलिए पैदा हुई समस्या
केंद्र सरकार ने किसानों से तुअर, उड़द और मसूर दालों की सौ प्रतिशत खरीदारी का वादा किया है, लेकिन न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की तुलना में खुले बाजार में ज्यादा कीमत मिलने के चलते जरूरत भर सरकारी खरीद नहीं हो पा रही है। इसका सीधा असर बफर स्टॉक पर पड़ने लगा है। दाल का भंडार न्यूनतम स्तर पर पहुंच गया है। यह खतरे का संकेत हैं।
67 लाख टन दाल का आयात
हालांकि अच्छी बात है कि बफर स्टॉक का हाल और दाल की कीमतों में वृद्धि की आशंका को देखते हुए केंद्र सरकार ने पीली मटर की दाल के आयात से भरपाई करने का प्रयास किया है। एक साल में 67 लाख टन से ज्यादा दाल का आयात किया गया है, जिसमें 31 लाख टन सिर्फ पीली मटर की दाल है। इसकी ड्यूटी मुक्त की अवधि भी बढ़ा दी गई है।
देश में प्रति वर्ष दाल की इतनी खपत
बफर स्टॉक से किसी वस्तु को उस वक्त निकाला जाता है, जब मांग की तुलना में आपूर्ति कम या मूल्य बढ़ने की आशंका बढ़ जाती है। देश में दाल की खपत प्रत्येक वर्ष करीब तीन सौ लाख टन है, लेकिन इतनी मात्रा में उत्पादन नहीं हो पाता है। ऐसे में किसानों से एमएसपी पर खरीदारी और आयात के जरिए भंडार को समृद्ध किया जाता है।
स्टॉक में बची मात्र 14.5 लाख टन दाल
कीमतों को नियंत्रित करने के लिए बफर स्टॉक में कम से कम 35 लाख टन दाल होनी चाहिए। वर्ष 2021-22 में यह 30 लाख टन एवं 2022-23 में 28 लाख टन था। किंतु वर्तमान में बफर स्टॉक में आधी से भी कम दाल उपलब्ध है। सूत्रों के मुताबिक सरकारी एजेंसियां नेफेड एवं एनसीसीसी के स्टॉक में सिर्फ 14.5 लाख टन दाल ही बची हैं।