फैमिली हिस्ट्री में है हीमोफीलिया तो गर्भावस्था के दौरान इन बातों का जरूर ध्यान रखें

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हीमोफीलिया एक आनुवांशिक ब्लीडिंग डिसआर्डर है। ये समस्या बच्चे को मां के गर्भ से ही मिल जाती है। हीमोफीलिया से ग्रसित व्यक्ति का किसी दुर्घटना या चोट लगने पर खून बहना शुरू हो जाए तो वो आसानी से बंद नहीं होता क्योंकि हीमोफीलिया से जूझ रहे व्यक्ति के शरीर में खून जमाने वाला फैक्टर-8 कम होता है। इस वजह से ये समस्या कई बार जानलेवा साबित होती है। यदि कोई गर्भवती महिला अगर खुद इस बीमारी से ग्रसित है, या उसके पैटरनल और मैटरनल दोनों परिवारों में से किसी एक में भी हीमोफीलिया का इतिहास रहा है, तो बच्चे को इसके प्रभाव से बचाने के लिए महिला को कुछ विशेष बातों का ध्यान रखने की जरूरत है।

 यदि कोई फैमिली हिस्ट्री है तो इसके बारे में अपने डॉक्टर को जरूर बताएं।

 डॉक्टरी सलाह से आरएच फैक्टर की जांच कराएं।

 जेनेटिक काउंसलिंग कराएं और नकारात्मक विचारों से पूरी तरह बचें।

 बच्चे के जन्म के बाद भी समय-समय पर उसका आर एच फैक्टर चेक करवाते रहें।

खानपान का विशेष खयाल रखें

विशेषज्ञों की मानें तो फैक्टर-8 एक तरह का प्रोटीन होता है, जो हमें पोषक तत्वों से भरपूर खानपान से प्राप्त होता है। महिला को चाहिए कि वो हीमोफीलिया से जुड़ी फैमिली हिस्ट्री के बारे में पहले से विशेषज्ञ को बताए और उसकी सलाह से ऐसी डाइट तैयार करवाए जिससे उसके शरीर में फैक्टर—8 प्रोटीन की कमी न होने पाए। इस दौरान यदि महिला न्यूट्रीशंस को लेकर लापरवाही बरतती है तो बच्चे में हीमोफीलिया का रिस्क तो बढ़ता ही है, साथ ही कई अन्य बीमारियां भी घेर सकती हैं। इसलिए ऐसे समय में सभी गर्भवती महिलाओं को अपने खानपान का विशेष खयाल रखना चाहिए।

इन लक्षणों के दिखने पर हो जाएं सावधान

 खरोंच आने पर भी लंबे समय तक खून बहते रहना।

 बिना वजह नाक से खून आना।

 यूरिन या स्टूल में ब्लड आना।

 घुटनों में लालिमा, दर्द व सूजन रहना।