नई दिल्ली। महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों के बाद शिवसेना ने भाजपा से नाता तोड़ दिया था। मुख्यमंत्री पद को लेकर दोनों पार्टियों में दरार आ गई थी। शिवसेना ने एनसीपी और कांग्रेस के साथ मिलकर महाराष्ट्र में सरकार बना ली। सोमवार को लोकसभा में नागरिकता संशोधन विधेयक (सीएबी) पर शिवसेना ने भाजपा का साथ दिया और इस विधेयक के पक्ष में वोटिंग की। लेकिन मंगलवार को शिवसेना ने राज्यसभा में बिल का समर्थन करने या नहीं करने को लेकर दुविधा पैदा कर दी है। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री और शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने मंगलवार को मीडिया से कहा कि लोकसभा में हमारे कई सवालों का जवाब नहीं दिया गए। उन्होंने कहा कि राज्यसभा में बिल लाने से पहले बिल में बदलाव करने होंगे नहीं तो उनका वोट बदल भी सकता है। शिवसेना ने लोकसभा में इस विधेयक को लेकर कहा था कि जिन लोगों को इस विधेयक के अमल में आने पर नागरिकता मिलने वाली है, उन्हें 25 साल तक मताधिकार नहीं दिया जाए। उद्धव ने कहा कि अगर नागरिकात संशोधन बिल से संबंधित उनके जवाब नहीं मिलते तो शिवसेना राज्यसभा में नहीं करेंगे बिल का समर्थन। शिवसेना सांसद संजय राउत ने संसद में पत्रकारों से बात करते हुए कहा कि लोकसभा में जो हुआ उसे भूल जाएं, राज्यसभा में कल बिल आने दें। उन्होंने कहा कि कल राज्यसभा में जब बिल आएगा तो आपको पार्टी का स्टैंड पता चल जाएगा। उन्होंने कहा कि यहां बात विरोध या समर्थन में नहीं है बहुत सी बातें है, जिसमें शिवसेना की भूमिका में रही है। राज्यसभा में कल हम अपनी भूमिका रखेंगे।
इस बिल के लोकसभा में पास होने के बाद शिवसेना नेता संजय राउत ने ट्वीट करके कहा कि राजनीति में अंतिम कुछ नही होता… चलता रहता है..। वहीं शिवसेना के ही विनायक राउत ने कहा कि उनकी पार्टी इस पक्ष में है कि पाकिस्तान और बांग्लादेश के धार्मिक अल्पसंख्यकों को यहां सम्मान दिया जाए, लेकिन इसमें श्रीलंका में पीड़ा झेलने वाले तमिलों को भी शामिल किया जाए। उन्होंने कहा कि गृह मंत्री ने यह स्पष्ट नहीं किया कि पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से कितने लोग भारत में आए और इस विधेयक के पारित होने के बाद कितने लोगों को नागरिकता दी जाएगी। यह भी नहीं बताया कि इन लोगों को नागरिकता देने के बाद देश पर कितना बोझ पडेÞगा।