इस वक्त भारत में विश्व की तुलना में सबसे अधिक कोरोना संक्रमित मरीज हैं। हमें याद है कि 19 मार्च को अचानक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी टीवी स्क्रीन पर आये और कोविड को गंभीर संकट घोषित कर दिया। उन्होंने राष्ट्र को संबोधित किया मगर बगैर किसी कार्ययोजना के। इसी तरह लॉकडाउन की घोषणा कर दी गई। उस वक्त भी कोई योजना नहीं थी। नतीजतन लॉकडाउन से देश बेहद गंभीर आर्थिक और सामाजिक संकटों के साथ ही स्वास्थ संकट में फंस गया। कार्ययोजना पर तब चर्चा की गई, जब संकट सिर पर चढ़कर दहाड़ने लगा। जनता ने हर कष्ट उठाकर प्रधानमंत्री के पीछे चलना मंजूर किया। बगैर तैयारियों के लगाए गये लॉकडाउन और फिर इसे खत्म करने से जो हुआ, वह सबके सामने है। देश आर्थिक संकट से बुरी तरह जूझ रहा है। युवाओं के ही नहीं प्रौढ़ लोगों के भी रोजगार छिन रहे हैं। कोविड पहले सिर्फ कुछ शहरों के कुछ हिस्सों तक सीमित था मगर अब वह हर गांव में पहुंच चुका है। पहले प्रधानमंत्री हर सप्ताह आ जाते थे। उनके संबोधन से लगता था कि कमान उनके हाथ में है। देश को उम्मीद थी मगर वह भी नाउम्मीदी में बदल गई। लॉकडाउन बार-बार बढ़ाने और अब खोलने की नीतियों से जो संकट पैदा हुए उसके बाद प्रधानमंत्री मोदी ने पल्ला झाड़ना शुरू कर दिया। सरकार ने राहत के नाम पर जो पैकेज घोषित किया, असल में वह भी कर्ज पैकेज अधिक नहीं निकला।
देश की बिगड़ती अर्थव्यवस्था और आमजन को राहत देने की कांग्रेस की मांग को जब केंद्र सरकार ने अनसुना कर दिया तो उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने विश्व के ख्यातिनाम भारतीय मूल के अर्थशास्त्रियों के साथ समस्या पर सार्वजनिक चर्चा शुरू कर दी। उन्होंने उद्योगपति राहुल बजाज से भी हालात को सुधारने पर चर्चा की। इन चर्चाओं में इतना कुछ निकला है कि सरकार देश को फिर से बना सकती है मगर टीम मोदी ने उसकी आलोचना के सिवाय कुछ नहीं किया। मोदी सहित भाजपा के तमाम कद्दावर चुनावी चिंता में व्यस्त हो गये हैं। उधर, चीन ने भारतीय सीमा पर कई जगह कब्जा कर लिया है। इस मसले को सुलझाने के लिए शनिवार को दोनों देशों के लेफ्टीनेंट जनरल स्तर के अधिकारियों की टीम ने चर्चा की मगर चीन ने कब्जाई जमीन छोड़ने से स्पष्ट मना कर दिया। पहले भी वह डोकलॉम, हिमाचल और लद्दाख में भूमि कब्जा कर चुका है। हमारी सेनायें इस वक्त तमाम संसाधनों से युक्त मजबूत हैं मगर स्टेटमैनशिप के अभाव में वह कुछ ठोस नहीं कर पा रहीं। निश्चित रूप से युद्ध किसी समस्या का विकल्प नहीं है। जरूरत वास्तविक समाधान की होती है। हमने कश्मीर में धक्केशाही के साथ संविधान से खेलकर भले ही राज्य को केंद्र शासित क्षेत्र बना दिया हो मगर समस्या जस की तस है। एनआरसी और एनसीआर के नाम पर जो हुआ, उसने देश के सामाजिक ढ़ांचे को तोड़कर रख दिया है।
इस वक्त न सिर्फ हमारे देश में बल्कि विश्व के तमाम बड़े देशों में स्टेट्समैन लीडरशिप का संकट खड़ा है। जो लोग राष्ट्राध्यक्ष या शासनाध्यक्ष की कुर्सियों पर काबिज हैं, उनमें अधिकतर राजनेता कम शोमैन अधिक हैं। अमेरिका में कभी भी किसी राष्ट्रपति की पद पर रहते हुए इतनी बेइज्जती नहीं हुई, जैसी अब हो रही है। एक बात अच्छी है कि वहां लोकतांत्रिक मूल्यों को लेकर सभी संजीदा हैं। वहां की संवैधानिक संस्थाओं की रीढ़ बाकी है। हमारे देश में न संवैधानिक संस्थाओं की रीढ़ बची है और न लोकतांत्रिक मूल्य। शुक्रवार को हम पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह से मुखातिब थे। उन्होंने बताया कि किस तरह से गणराज्य के ढांचे को तोड़ने का एक अध्यादेश केंद्र सरकार ने जारी किया। मदद के नाम पर अब तक कुछ नहीं मिला है। देश वासियों का पेट भरने वाला पंजाब अपने बूते ही गंभीर संकटों से जूझ रहा है। कैप्टन उन नेताओं में सुमार हैं जो देश और राज्य की बात सदैव दलगत राजनीति से ऊपर उठकर करते हैं। देश के सबसे बड़े राज्य यूपी का हाल यह हो गया है कि वहां परिवार के लोग ही सदस्यों की हत्यायें कर रहे हैं। बाराबंकी में ऐसा ही हुआ। वाराणसी में एक व्यापारी ने परिवार के साथ खुदकुशी कर ली। किसान लगातार आत्महत्या कर रहे हैं। युवाओं में मानसिक अवसाद पैदा हो रहा है। योगी सरकार सिर्फ सियासी खेल रच रही है। लॉकडाउन से उत्पन्न हुए आर्थिक हालात ने देश को यूं तोड़ दिया है।
आर्थिक संकट से जूझ रहे उद्योग बंद होना शुरू हो गये हैं। देश में दो करोड़ साइकिल का हर साल उत्पादन होता था, जिसमें दो बड़ी कंपनियों का योगदान था, एटलस और हीरो। दोनों की कमर टूट चुकी है। एटलस ने तो फैक्ट्री और कारोबार सब बंद कर दिया। भारत सरकार ने अपने 19 उपक्रम बंद कर दिये हैं। एक दर्जन बैंक खत्म कर दी गईं। इसके बीच हम चीन से आर्थिक मोर्चा लेने का दम भरते हैं। चीन को हम आर्थिक मोर्चे पर तो नहीं हरा पाये, उलट उसने हमारी भूमि पर कब्जा अलग से कर लिया है। सरकारी आंकड़े बताते हैं कि पिछले साल हमने चीन से सात अरब रुपये का व्यापार किया था। इसमें हमने चीन से पौने छह अरब का आयात किया था। इससे साफ जाहिर है कि हम चीन के ऊपर बहुत हद तक निर्भर हैं। पांच साल पहले तक अमेरिकी बाजार में 65 फीसदी कपड़ों की आपूर्ति हम करते थे मगर अब वहां 10 फीसदी ही रह गये हैं जबकि चीन का 80 फीसदी बाजार पर कब्जा है। सत्ता पर काबिज हमारे नेताओं ने अब शायद असत्यमेव जयते को अपना मूल मंत्र बना लिया है। वह काम पर नहीं, प्रचार पर जोर देते हैं। समय की मांग है कि हम सच को पहचाने। अपने नेताओं में स्टेट्समैन खोजें, जो देश को मजबूत आधार दे, न कि हमें मरने के लिए छोड़ दे। आत्मनिर्भर होने का मंत्र तभी कारगर होगा, जब हमारी संस्थायें और हम सुरक्षित रहेंगे।
जयहिंद!
(लेखक आईटीवी नेटवर्क के प्रधान संपादक हैं
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