ब्रिटिश शासन में मच गई थी हलचल
churu News (आज समाज) चूरू: एक वक्त था जब ब्रिटिश हुकूमत की शक्ति असीमित थी और लोग उनकी मर्जी के खिलाफ आवाज उठाने से डरते थे, लेकिन देशभक्तों के जुनून और साहस ने ब्रिटिश हुकूमत की जड़ें हिलाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। चूरू में ऐसी ही एक घटना ने ब्रिटिश शासन को हिला कर रख दिया था, जब आजादी के दीवानों ने तमाम पाबंदियों के बावजूद शहर के बीचों-बीच स्थित धर्मस्तूप पर तिरंगा झंडा फहराया। सहायक निदेशक कुमार अजय ने बताया कि दिसंबर 1929 में पंडित जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता में लाहौर (अब पाकिस्तान) में राष्ट्रीय कांग्रेस का अधिवेशन हुआ था. इस अधिवेशन में देश की पूर्ण स्वतंत्रता का प्रस्ताव पारित किया गया और 26 जनवरी 1930 को स्वाधीनता दिवस मनाने का आह्वान किया गया। 1 जनवरी 1930 को महात्मा गांधी ने ध्वजारोहण का संदेश दिया। कुमार अजय ने बताया कि उस समय बीकानेर में महाराजा गंगासिंह का शासन था और देश में ब्रिटिश सरकार का दबदबा था। लेकिन लाहौर अधिवेशन में लिए गए निर्णय के आधार पर चूरू के चंदनमल बहड़, वैद्य भालचंद शर्मा, महंत गणपतिदास, घनश्यामदास पौधार, वैद्य शांत शर्मा आदि ने 26 जनवरी 1930 को आजादी की मांग को लेकर धर्मस्तूप पर प्रतीक रूप में तैयार किया गया तिरंगा झंडा फहराया। इस घटना ने ब्रिटिश शासन में हलचल मचा दी, और आंदोलनकारियों को गिरफ्तार करने के लिए तत्काल छापामारी शुरू हो गई. इस साहसी कदम ने चूरू के धर्मस्तूप को देशभक्ति और साहस का प्रतीक बना दिया।
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