The temperature at the poles crossed 20 degrees: ध्रुवों पर तापमान 20 डिग्री के पार पहुंचा

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नई दिल्ली। ग्लोबल वॉर्मिंग के बढ़ते असर की सबसे चिंताजनक ख़बर दक्षिणी ध्रुव (अंटार्कटिका) से आ रही है जहां असामान्य तापमान दर्ज किया गया है। वैज्ञानिक बारीकियों का अध्ययन कर रहे हैं यूके में आये तूफान डेनिस का असर हो या भारतीय उपमहाद्वीप में आ रही मौसमी आपदायें सभी बता रही हैं कि धरती का तापमान बढ़ने और उसके भयावह असर का पैटर्न वही है जिसकी भविष्यवाणी आईपीसीसी समेत तमाम जानी मानी संस्थाओं के क्लाइमेट साइंटिस्ट करते रहे हैं। क्या भारत इस मुद्दे पर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प से चर्चा करेगा, यह वक्त ही बताएगा।

ऐसा होता आपने कभी सुना था कि ध्रुवीय इलाकों का तापमान भी लगभग उतना ही हो जितना कि भूमध्य रेखा के आसपास। इस बार बिल्कुल ऐसा ही हुआ है। दो बार, वह भी बहुत कम अंतराल में।

पहले अंटार्कटिक प्रायद्वीप में बने अर्जेंटीना के शोधकर्ताओं ने पश्चिमी हिस्से में 6 फरवरी को 18.3 डिग्री तापमान रिकॉर्ड किया। जिस ध्रुवीय जगह यह असामान्य तापमान दर्ज किया गया वह इलाका दक्षिणी अमेरिका के दक्षिणी छोर के करीब है। फिर इसके 3 दिन बाद ब्राज़ील के वैज्ञानिकों ने यहां से दूर एक द्वीप में 20.75 डिग्री तापमान की जानकारी दी।

इससे पहले 2015 और 1882 में क्रमश: 17.5 और 19.8 डिग्री दर्ज किया जा चुका है। तापमान में यह बढ़ोतरी स्थानीय और क्षेत्रीय मौसमी कारकों की वजह से होती है। इस बढ़े तापमान के पीछे फरवरी की शुरुआत में दक्षिण अमेरिकी महाद्वीप के दक्षिणी हिस्से से उच्च दबाव वाली गर्म हवा का अंटार्कटिका पहुंचना है।

तापमान बढ़ोतरी के पीछे कई अन्य जटिल कारक हैं जिनको समझने की कोशिश मौसम विज्ञानी कर रहे हैं ताकि यहां की जलवायु में बदलाव को समझाया जा सके लेकिन इतना साफ है कि मौसम में दिख रहे यह असामान्य परिवर्तन उस पैटर्न से मेल खाते हैं जो महाद्वीप में पिछले कई सालों से दिख रहा है।

जिनकी भविष्यवाणी ग्लोबल वॉर्मिंग का अध्ययन कर रहे शोधकर्ता करते रहे हैं। विश्व मौसम संगठन के मुताबिक पिछले 50 साल में यहां तापमान में औसत बढ़ोतरी 3 डिग्री की हुई है लेकिन पिछले 30 सालों में तापमान वृद्धि की रफ्तार बढ़ी है। इसी दौर में यहां बर्फ पिघलने की रफ्तार 6 गुना हो गई है और 2006 और 2015 के बीच अब सालाना 155 (± 19) गीगाटन बर्फ पिघल रही है। अब तक यह माना जाता रहा कि उत्तरी ध्रुव पर ग्लोबल वॉर्मिंग और ऑइल ड्रिलिंग जैसे मानवीय हस्तक्षेपों का तुरंत और अधिक असर होता है जबकि दक्षिणी ध्रुव – अपेक्षाकृत अधिक विशाल बर्फ का भंडार होने के कारण – पर इन ख़तरों का असर आसानी से नहीं पड़ेगा लेकिन जैसे-जैसे रिसर्च के नये आधुनिक साधन उपलब्ध हो रहे हैं यह मिथक टूट रहा है।

जाड़ों में हो रही है सामान्य से अधिक बारिश

भारत में जब पानी बरसता है तो फिर रुकता नहीं। मौसम विभाग का कहना है कि इस साल (2019 में) मॉनसून तो बेढप रहा ही, जाड़ों का मौसम भी असामान्य ठंड और बरसात वाला रहा। नवंबर की बरसात 1951 के बाद से अब तक की सबसे भारी बारिश थी। मौसम विभाग ने कहा कि अरब सागर में दो कम दबाव की घटनायें हुईं और पवन नाम का एक चक्रवाती तूफान बना जो 1891 के बाद से एक रिकॉर्ड है। दिसंबर के दूसरे पखवाड़े में मध्य और उत्तर भारत में असामान्य सर्दी हुई। उत्तर पश्चिम में अधिकतम तापमान 17.5 डिग्री दर्ज किया गया जो कि सामान्य से 3.2 डिग्री कम है।

सोखने से अधिक कार्बन छोड़ रहा है अमेज़न

अमेज़न में लगी भयानक आग के बाद अब ये सच सामने आया है कि इस विराट जंगल का 20% हिस्सा ऐसा है जो जितना कार्बन सोख रहा है उससे अधिक कार्बन छोड़ता है। करीब एक दशक तक चली यह रिसर्च बताती है कि जंगल का कटना इसका प्रमुख कारण है। नष्ट कर दिये गये पेड़ केवल कार्बन छोड़ते हैं जबकि जीवित पेड़ कार्बन सोखते भी हैं। वैज्ञानिकों को बड़ी फिक्र इस बात की है कि अमेज़न जो अब तक कार्बन सोखने के लिये एक खज़ाना समझा जाता था कार्बन का स्रोत बन रहा है। यह एक ऐसा सच है जो हमें ग्लोबल वॉर्मिंग की ओर अधिक तेज़ी से धकेलेगा।

ग्लोबल वॉर्मिंग से नष्ट होगी धरती को ठंडा रखने वाले बादलों की परत

अब तक यह माना जाता रहा है कि अगर CO2 का स्तर अगर प्री-इंडस्ट्रियल (औद्योगिक क्रांति से पहले का स्तर) लेवल से दुगना हो जाये तो धरती के तापमान में 1.5 से लेकर 4.5 डिग्री तक बढ़ोतरी होगी। नये शोध जो भविष्यवाणी कर रहे हैं वह होश उड़ाने वाले हैं। रिसर्च कहती है कि ग्लोबल वॉर्मिंग धरती को ठंडा रखने वाली बादलों की परत को नष्ट कर रही है और CO2 का स्तर दुगना होने पर अधिकतम तापमान वृद्धि 5.6 डिग्री तक हो सकती है। अगर ऐसा होता है पेरिस डील और उससे जुड़े वादे बेमानी हो जायेंगे।  रिपोर्ट में हालांकि ये कहा गया है कि वातावरण में CO2 की सांध्रता (गाढ़ापन) लगातार बढ़ रहा है।