The Shaheen Bagh movement shows the power of the unique!: अनोखियों के आत्मबल को दर्शाता शाहीनबाग आंदोलन!

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वेदों के रचयिता वेदव्यास ने वेदों के उपरांत पुराणों की रचना की। उन्होंने श्रीमद् देवी भागवत पुराण की व्याख्या करते हुए बताया कि ‘तथा न गंगा न गया न काशी न नैमिषं न मथुरा न पुष्करम। पुनाति सद्य: बदरीवनं नो यथा हि देवीमख एष विप्रा:’। अर्थात देवी महिमा सभी तीर्थों से श्रेष्ठ है। असुरों के अत्याचार से तंग आकर देवताओं ने उनसे मुकाबला करने के लिए सम्मलित शक्ति से ममतामई मां को दुर्गा के रूप में युद्ध मैदान में उतारा। जब देवता महिषासुर के आतंक से डरे-सहमें थे, तब नौ देवियों ने अपनी शक्ति से महिषासुर मर्दिनी का रूप धारण किया। देवी ने महिषासुर का वध कर समाज, देश और विश्व को भयमुक्त किया। भारतीय प्राचीनतम धर्मग्रंथों का अध्ययन करने से यही पता चलता है कि जब-जब नारी मैदान में उतरती है, तो सभी को भयमुक्त बना देती है। गोरक्षापीठ के प्रमुख योगी आदित्यनाथ अर्थात यूपी के मुख्यमंत्री अजय सिंह विष्ट ने अपने भाषण में कहा कि विरोधी डर गये हैं। उन्होंने महिलाओं को आगे कर दिया है। हम भी उनकी बात से सहमत हैं। देवी पुराण में भी तो यही वर्णित है। नागरिकता संशोधन अधिनियम और राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर के खिलाफ दिल्ली के शाहीनबाग से शुरू हुआ नारीशक्ति का आंदोलन अब देशव्यापी हो गया है। केंद्र सरकार के नागरिकता अधिनियम में किये गये सांप्रदायिक बदलाव के परिणामों को लेकर विश्व के तमाम मंचों पर बहस हो रही है।
राष्ट्रपति की मंजूरी के साथ ही 13 दिसंबर 2019 को नागरिकता संशोधन बिल, एक्ट बन गया था। इस संशोधन पर संसद में चर्चा के दौरान गृह मंत्री अमित शाह ने स्पष्ट किया था कि इसका कैसे क्रियान्वयन होगा। उसके लिए देश में एनपीआर के बाद एनआरसी पूरे देश में लाने की बात कही गई थी। असम में एनआरसी हुई और इसके परिणामों पर गंभीर चर्चा भी। भाजपा शासित तमाम राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने अपने राज्यों में एनआरसी कराने की भी घोषणा की। नतीजतन इसका विरोध काफी तेज हो गया। इस एक्ट को भारत के संविधान की मूल भावना के खिलाफ माना गया। देश के तमाम बुद्धिजीवी, एक्टीविस्ट्स और युवाओं ने इसका विरोध किया। पूर्वोत्तर के राज्यों, असम, मेघालय, मणिपुर, मिजोरम, त्रिपुरा, नगालैंड और अरुणाचल प्रदेश में इसका विरोध सबसे ज्यादा हुआ। छात्रों ने इस पर तीखी प्रतिक्रिया शुरू की, जिसकी आंच देश के सैकड़ों विश्वविद्यालयों तक पहुंची। अलीगढ़, जामिया मिलिया और जेएनयू में इसका भारी विरोध हुआ। आईआईटी जैसे संस्थानों में भी इसको लेकर विरोधी स्वर तेज हुए। सरकार और पुलिस प्रशासन ने इसे संयम से नियंत्रित करने के बजाय दमनकारी रुख अपनाया। बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ का नारा देनी वाली सरकार में बेटियों को बर्बर तरीके से पीटा गया, मुकदमें दर्ज कर जेल भेजा गया। हजारों युवाओं पर देशद्रोह का मुकदमा दर्ज कर उन्हें जेल में डाल दिया गया।
लोकतंत्र में साम्यक विरोध का अधिकार सभी को होता है। सरकार ने विरोध प्रदर्शनों को दबाने के लिए निषेधाज्ञा का इस्तेमाल किया। सियासी विचारधारा से रंगी सरकार के दमनकारी रुख से दुखी चार महिलाओं ने दिल्ली के शाहीनबाग में प्रदर्शन शुरू किया। नारीशक्ति के मैदान में उतने की देर थी कि उनमें आगे आने का सिलसिला शुरू हुआ, जो दिल्ली से भी आगे बढ़कर लखनऊ, प्रयाग, वाराणसी, मुंबई जैसे शहरों से होते हुए देश के तमाम हिस्सों में पहुंच गया। शाहीनबाग में तो महिलाओं ने ऐसी कमान संभाली कि देश दुनिया में चर्चा शुरू हो रही है। वहां हजारों महिलायें कड़क ठंड को चुनौती देती हुई, अपने नौनिहालों के साथ डटी हुई हैं। उनके समर्थन और सहयोग में सिख संगत ने लंगर शुरू कर दिया, तो देश की नामचीन शख्सियतें वहां समर्थन को पहुंचने लगीं। हर कौम की जागृत नारियों से लेकर तमाम संजीदा लोग भी वहां पहुंचे। कश्मीरी पंडितों ने बेदखली के 30 साल का दर्द भी इस मंच से बयां किया। शाहीनबाग एक आंदोलन बन गया है। यहां महिलाएं राष्ट्रभक्ति के गीतों को तिरंगे के साथ लोकतंत्र की आजादी के गीत गुनगुनाती नजर आ रही हैं। एक विचारधारा के लोगों ने जब उनको लांछित करने की कोशिश की, तो उन्होंने डरने के बजाय सकारात्मक जवाब दिये। गाली के बदले फूल देने की बात की और यह आंदोलन अनोखा बन गया।
सीएए और एनआरसी के विरोध प्रदर्शनों के दौरान यूपी में हुई हिंसक झड़पों में 27 युवा मारे गये। देश के 30 से अधिक विश्वविद्यालयों की कमेटी ने जब इन मामलों की जांच की तो पाया कि पुलिस ने सभी के कमर के ऊपर गोली मारी थी। यानी प्रदर्शनकारियों की हत्या करना पुलिस का इरादा था। सरकार के किसी भी कानून और फैसले का विरोध या समर्थन करने का अधिकार देश के लोगों को होता है मगर यूपी में पुलिस और सरकार ने इस तरह से व्यवहार किया कि जैसे वह दुश्मनों से लड़ रहे हों। जनता की आवाज का गला घोटने की सरकारी नीति का नतीजा है कि डेमोक्रेसी के वैश्विक इंडेक्स में भारत 10 रैंक नीचे आ गया है। इन हालातों ने महिलाओं की आत्मा को झकझोर दिया। वो निर्दोष बच्चों के कत्ल को बर्दास्त नहीं कर पाईं और अब आरपार की लड़ाई के मूड में हैं। पुलिस ने अंग्रेजी हुकूमत वाला क्रूर चेहरा दिखाया है। शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहीं हजारों महिलाओं के खिलाफ यूपी पुलिस ने गंभीर धाराओं में मुकदमें दर्ज कर लिये हैं। मुख्यमंत्री आदित्यनाथ ने कहा कि आजादी का नारा लगाने वालों पर देशद्रोह का मुकदमा दर्ज करेंगे। उन्हें कुचल देंगे। लोकतंत्र में ऐसी भाषा और कार्यशैली निश्चित रूप से दुखद होती है।
दिसंबर-जनवरी महीने में पुलिस और सियासी विचारधारा के गठजोड़ की घटनाओं को देखकर हमें 30 साल पहले कश्मीर में कश्मीरी पंडितों के साथ हुए जुल्मों की याद आती है। दिसंबर 1989 में भाजपा के समर्थन से वीपी सिंह सरकार बनी थीं और मुफ्ती मोहम्मद सईद गृह मंत्री। भाजपा नेता जगमोहन कश्मीर के राज्यपाल बने और वहां राज्यपाल शासन लगा दिया गया। उस दौरान कश्मीरी पंडितों के साथ जघन्य अपराध-अत्याचार हुए। तत्कालीन नेता प्रतिपक्ष राजीव गांधी ने केंद्र सरकार से तत्काल इसे रोकने की मांग की मगर कुछ नहीं हुआ। जब पंडित, कश्मीर से भगा दिये गये, तब भाजपा ने विरोध दर्ज कराया मगर सरकार को समर्थन जारी रखा। कश्मीर जल गया और कश्मीरी पंडित अब तक पीड़ा में कराह रहे हैं। उनकी महिलाएं भी शाहीनबाग पहुंचीं। उन्होंने अत्याचार का दर्द सहा है, जिसे वहां बयां किया गया। उन्होंने शाहीनबाग की महिलाओं के दर्द को समझा। उनका भी मानना है कि सरकार को सभी का दर्द सुनना समझना चाहिए। शाहीनबाग आंदोलन से प्रेरित महिलाओं के हौसले इतने बुलंद हुए कि उनकी गूंज नागपुर के ईदगाह मैदान और बनारस के बेनियाबाग में भी देखने को मिली। रांची-पटना में भी शाहीनबाग को देखकर महिला शक्ति निकल पड़ीं।
शाहीनबाग में जिस तरह से परदानशीन महिलाएं अपने हक-हुकूक को लेकर संघर्ष को आगे आई हैं। वह एक अच्छा संकेत है। इन महिलाओं को सभी जाति-धर्म की सजग महिलाओं और संवेदनशील नागरिकों का समर्थन मिल रहा है। तमाम संकटों-लांछनों से जूझते हुए इन्होंने हमें यह सबक सीखने का मौका दिया है कि मां दुर्गा अगर अत्याचार और अन्याय के खिलाफ महिषासुर मर्दनी बन सकती हैं, तो यह जज्बा आज की नारी में भी है। नारी के जज्बे को ललकार कर उनको बेइज्जत मत कीजिए, नहीं तो सत्ता सिंहासन डगमगा जाएंगे।

जयहिंद

ajay.shukla@itvnetwork.com
(लेखक आईटीवी नेटवर्क के प्रधान संपादक हैं)