लॉकडाउन खत्म होने के बाद बेरोजगारी दर में थोड़ी कमी आई है। यह सरकारी आंकड़ों का हिसाब है। इस रहस्य को समझना चाहिए। दरअसल, मार्च में लॉकडाउन के बाद बुरी तरह से प्रभावित हुई देश की अर्थव्यवस्था का असर रोजगार पर भी पड़ा। करोड़ों लोग रातोंरात बेरोजगार हो गए। भारतीय अर्थव्यवस्था निगरानी केंद्र यानी सीएमआईई के मुताबिक मई में बेरोजगारी दर 23.48 प्रतिशत हो गई थी। लेकिन अनलॉक के बाद अब धीरे-धीरे कई तरह के कारोबार फिर शुरू हुए हैं तो बेरोजगारी भी कुछ हद तक कम हुई है। जून में बेरोजगारी की दर 10.99 फीसदी रही है। वैसे लॉकडाउन से पहले मार्च में बेरोजगारी दर 8.75 फीसदी थी। यानी पहले जैसी स्थिति अब भी नहीं बनी है और खास बात ये है कि शहरी इलाकों में बेरोजगारी की दर अब भी लॉकडाउन से पहले के स्तर से ऊंची बनी हुई है। मनरेगा और खरीफ की बुआई के कारण ग्रामीण इलाकों में लोगों को काफी रोजगार मिला है। ग्रामीण भारत में लोगों को मनरेगा से लाभ हुआ है। इन सबसे बेरोजगारी दर कुछ कम हुई है।
आपको बता दें कि दिल्ली हाईकोर्ट ने मार्च महीने से उत्तरी दिल्ली नगर निगम के स्कूलों के लगभग 9 हजार शिक्षकों को वेतन नहीं देने के लिए नगर निगम को फटकार लगाई। नॉर्थ एमसीडी ने अपने इन शिक्षकों का वेतन फरवरी 2020 में जारी कर दिया था, लेकिन मार्च महीने का वेतन सिर्फ़ उन्हीं 54 सौ शिक्षकों को दिया गया, जिनकी कोरोना ड्यूटी लगी थी। बाकी बचे 36 सौ शिक्षकों का मार्च महीने का वेतन जारी नहीं किया गया और अप्रैल से जून इन तीन महीनों में नॉर्थ एमसीडी के किसी भी शिक्षक को वेतन नहीं दिया गया। उधर नोएडा में एक कंपनी के सैकड़ों मजदूरों ने बीते दिनों वेतन की बात को लेकर हंगामा कर दिया। बात इतनी बढ़ गई कि पुलिस को बुलाना पड़ा। मजदूरों का कहना है कि कंपनी ने काफी दिनों से उनका वेतन नहीं दिया और मांगने पर कंपनी के लोग उन्हें धमका रहे हैं। पुलिस व जिला प्रशासन भी मजदूरों की कोई बात नहीं सुन रहा है।
इतना ही नहीं, विमानन कंपनी विस्तारा ने अपने 4 हजार कर्मचारियों में से करीब 40 प्रतिशत के वेतन में इस साल दिसंबर तक 5 से 20 प्रतिशत की कटौती की घोषणा की है। गो एयर ने भी मार्च महीने में कहा था कि सभी कर्मचारियों के वेतन में कटौती होगी। एयर एशिया इंडिया ने अपने वरिष्ठ कर्मचारियों के वेतन में 20 प्रतिशत तक की कटौती की थी, जबकि एयर इंडिया ने अपने कर्मचारियों का वेतन 10 प्रतिशत काटा था। अप्रैल की शुरूआत में एयर इंडिया ने अपने करीब 2 सौ अस्थायी कर्मचारियों के अनुबंध निलंबित कर दिए थे, जिन्हें सेवानिवृत्त होने के बाद दोबारा नियुक्त किया गया था। इंडिगो ने भी बिना वेतन के छुट्टी पर भेजे गए कर्मचारियों की अवकाश अवधि को और बढ़ा दिया। साथ ही कर्मचारियों के वेतन में भी कटौती की और कंपनी ने वर्तमान में अपने कुछ केबिन क्रू स्टाफ सदस्यों के अनुबंधों का नवीनीकरण भी नहीं किया। स्पाइसजेट ने भी मध्यम स्तर से लेकर वरिष्ठ स्तर तक के कर्मचारियों के वेतन में 10 से 30 प्रतिशत तक की कटौती की थी। इधर, रियल एस्टेट कंपनियों को कर्मचारियों की छंटनी और वेतन में कटौती करना पड़ रहा है।
नॉन-ब्रोकिंग रियल एस्टेट शोध कंपनी लियसेस फोरास की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि लॉकडाउन के हर महीने में राजस्व का 8.3 प्रतिशत का नुकसान हुआ है। रिपोर्ट में कहा गया है कि जून के अंत तक आवासीय अचल संपत्ति बाजार में राजस्व का नुकसान 26.58 प्रतिशत पर रहेगा, जो जुलाई अंत तक बढ़कर 35.07 प्रतिशत तक हो जायेगा। इंडियन रेलवे की कैटरिंग और पर्यटन का काम देखने वाले आईआरसीटीसी ने 500 से ज्यादा सुपरवाइजरों की सेवाओं को निरस्त करने का फैसला लिया है। ये सभी कर्मचारी संविदा पर काम कर रहे थे। देशबंधु में छपे एक आर्टिकल के अनुसार, आईआरसीटीसी ने कहा कि वर्तमान परिस्थितियों में इनकी जरूरत नहीं रह गई है। देश में रोजगार मिलना और बचना कितना मुश्किल हो गया है, उसे इन खबरों से समझा जा सकता है। अभी जो गरीब कल्याण रोजगार योजना शुरू की गई है, वो भी साल के कुछ ही महीनों का रोजगार देगी। लेकिन गरीबों के साथ मध्यमवर्गीय तबका जिस बेरोजगारी से जूझ रहा है, उसके लिए कोई उपाय नहीं है। बीते दिनों उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले के वीरबहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय के कुलपति राजाराम यादव के कथित भाषण का वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हुआ। जिसमें वे बता रहे हैं कि बेरोजगारी का जो डंका पीटा जा रहा है वह विदेशों द्वारा फैलाया गया है। अपने देश में ऐसा कुछ भी नहीं है जो चाहेगा उसको पर्याप्त रोजगार यहां मिल सकता है, बस उसे लेने की कला होनी चाहिए।
विद्यार्थियों को स्वावलंबी बनने और आत्मनिर्भर भारत बनाने का ज्ञान तो खूब दिया जाता है, लेकिन क्या उच्चशिक्षा के केंद्र इसलिए खोले गए हैं कि वहां से पढ़-लिखकर निकला नौजवान आखिर में हाथ में खंजड़ी थामे और भजन गाकर गुजारा करे।
कुलपति महोदय जिस नेत्रहीन याचक को अंधा कहकर कथित तौर पर संबोधित कर रहे हैं और सभागार में बैठे लोग जिस तरह ताली बजा रहे हैं, क्या वे नहीं जानते कि किसी की शारीरिक कमजोरी को इस तरह वर्णित नहीं किया जाता। इस सरकार ने तो विकलांगों के लिए दिव्यांग शब्द गढ़ा है, क्या सरकार द्वारा नियुक्त लोग ही उसका उच्चारण नहीं कर पा रहे हैं?
कोई नागरिक चाहे दृष्टिबाधित हो, अन्य तरह की शारीरिक या मानसिक कमजोरी से ग्रस्त हो, या पूर्ण रूप से स्वस्थ हो, सम्मान और गरिमा के साथ जीने का हक, हर एक को है। रोजगार ही इस गरिमामय जीवन का रास्ता दिखाता है। क्या सरकार इस रास्ते के निर्माण के बारे में कुछ सोच रही है या उसका पूरा जोर नए मुहावरों को गढ़ने में ही लग रहा है। भारतीय मध्यम और निम्न वर्ग की आर्थिक दशा दिन-ब-दिन कमजोर होती जा रही है। नौकरियां मिल नहीं रही, कुटीर उद्योग बंद हो रहे हैं और हर कोई मनरेगा के तहत काम प्राप्त नहीं कर सकता। इसलिए सरकार आंकड़ों में देश की खुशहाली मापने की जगह जमीन पर उतर कर हालात देखे और तय करे कि क्या पकौड़ा, खंजड़ी ही विकल्प बचे हैं या वो कुछ बेहतर कर सकती है। बहरहाल, कहा जा सकता है कि बेरोजगारी के हालात अब भी बुरे हैं। इस बारे में सरकार को गंभीरता से विचार करना चाहिए।