The second innings will be difficult, Rahul Gandhi will not be able to take decisions like grandmother: मुश्किल भरी होगी दूसरी पारी, दादी की तरह फैसले कर नही पाएंगे राहुल गांधी

नई दिल्ली।राहुल गांधी के लिये दूसरी पारी भी बहुत आसान नही रहने वाली है।क्योंकि वह अपनी दादी इंदिरा गांधी की तरह फैसले करने की हिम्मत जुटा नही पाएंगे। अभी तक अपने 16 साल  के राजनीतिक कैरियर में राहुल राजनीति के प्रति मजबूत इरादे नही जता पाए। विपक्ष में रहते हुए भी प्रधानमंत्री मोदी की खिलाफत तक ही राजनीति को केंद्रित रखा है।जबकि उनकी दादी इंदिरा गांधी ने 1978 में केवल 54 सांसदों के साथ नई पार्टी कांग्रेस आई का गठन किया था और कुछ समय में ही सत्ता में वापसी की थी।यह बात इसलिये की जा रही है क्योंकि राहुल को लग रहा है कि वह जो चाहते हैं पार्टी के नेता नही कर रहे हैं।अधिकांश नेता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से डरते हैं।राहुल अपनी इस खिन्नता को कई बार नेताओं के सामने प्रकट भी कर चुके हैं।यही नही पार्टी की सबसे उच्च समिति कार्यसमिति में  तो वह नेताओं के रवैये पर कड़ी नाराजगी एक बार नही दो दो बार व्यक्त कर चुके है।बीते हफ्ते की कार्यसमिति में तो छोड़ने तक की धमकी दे दी।अब सवाल यही है कि आखिर कौन नेता है जो उनका कहना नही मान रहे हैं?नेता कहना नही मान रहे तो उनके पास क्या रास्ता है।निश्चित रूप से दो ही रास्ते हैं।पहला वह हिम्मत जुटाये और उन नेताओं को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाए जो उनकी बात नही मानते है।दूसरा अपनी दादी वाला रास्ता अपना नया दल बनाये।अब सवाल यही है कि क्या राहुल इनमे से कोई रास्ता अपनाने की हिम्मत कर पाएंगे।आसान नही है,पर कहा  जाने लगा है कि राहुल कांग्रेस की  कमान फिर से संभालने से पूर्व सब कुछ अपने हिसाब से सेट करना चाहते हैं।पर सवाल है कैसे।
क्योंकि जानकार मान रहे हैं कि राहुल ने देरी कर दी है।उन्होंने काफी समय गंवा दिया है।अगर वह अपनी दादी इंदिरा गांधी की तरह ही समय पर जिम्मेदारी संभाल लेते तो फिर बहुत कुछ कर सकते थे।मतलब जब उनकी पार्टी सत्ता में थी तो उन्होंने 10 साल तक कोई भी सरकारी पद नही सम्भाल।2014 में पार्टी की करारी हार होने के बाद भी वह पार्टी की फ्रंट सीट पर बैठने की हिम्मत नही जुटा पाए।तीन साल बीत जाने के बाद जब 2017 में उन्होंने पार्टी की कमान संभाली तो मजबूत फैसले नही कर पाए।प्रदेश और केंद्र में संगठन बिखर गए।अपनी जोड़ीदारों की जो टीम बनाई वह फ्लॉप हो गई।2019 में हार के बाद खुद 20 महीने में अध्य्क्ष पद छोड़ दिया।बुजुर्ग सोनिया गांधी को अंतरिम अध्य्क्ष बनना पड़ा।सवाल यही है कि अब वह फिर अध्य्क्ष बने तो  नया क्या होगा?क्योंकिअध्य्क्ष पद कहने के लिये उन्होंने भले ही छोड़ा हो पर नेता आज भी उनके सरकारी आवास 12 तुगलक लेन जा कर हर मामले में उनकी सहमति लेते है।उनकी मर्जी से ही सारे फैसले किये जा रहे हैं।इसके बाद भी उन्हें लग रहा है कि नेता उनकी नही मानते है।मोदी के खिलाफ बोलने से डरते हैं,तो वह अब ऐसे क्या करेंगे?इसमे कोई दो राय नही है कि राहुल के अलावा पार्टी का कोई भी बड़ा नेता प्रधानमंत्री मोदी पर सीधे हमला नही करता हैं।राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और मध्य्प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह जरूर हमले का मौका नही छोड़ते है।उनकी युवा टीम में से रणदीप सिंह सुरजेवाला ओर हाशिये पर लगाये गए नवजोत सिंह सिधू ही मोदी के खिलाफ बोलने से नही हिचकते हैं।लेकिन राहुल की नाराजगी के बाद भी आक्रमकता नही दिखाई देती है।मंगलवार को राहुल नाराज हुये।इस पर गृहमंत्री अमित शाह ने राहुल पर पर तंज कसा और पार्टी के अंदर लोकतंत्र की बात की।हैरानी की बात यह रही कि गहलोत के अलावा किसी भी नेता ने शाह और प्रधानमंत्री मोदी पर हमला नही बोला।चीन के मामले में जरूर नेताओं ने राहुल के सुर में सुर मिलाये।अब सवाल यही है राहुल आने वाले महिनो में जब अध्य्क्ष बनेगे तो नया क्या करेंगे?क्या अपनी माँ की छाया से बाहर निकल पाएंगे।क्योंकि अब वह खुद अधेड़ उम्र में प्रवेश कर चुके है।राहुल की टीम में जो युवा चेहरे उनके साथ जुड़े उनमें अधिकांश चुनाव हारने वाले बिना जनाधार वाले नेता ज्यादा हैं।खास तौर पर हिंदी भाषी प्रदेशों में तो हालत खराब है।
उनकी दादी इंदिरा गांधी ने जवाहर लाल नेहरू और लाल बहादुर शास्त्री के निधन के बाद जब पार्टी और देश की कमान संभाली तो उन्हें भी बड़ी चुनोतियाँ मिली।उन्होंने चुनोतियों को स्वीकार करते हुये 1969 में नई पार्टी बनाई और 1971 में पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध जीत दुनिया मे अपना डंका बजा दिया।इतना करने के बाद भी 4 साल के अंदर ही आपातकाल लगा उनके ऊपर कई तरह के संकट आये।पार्टी सत्ता से बाहर हो गई।कई अपने छोड़ कर चले।इसके बाद उन्होंने 1978 में नई कांग्रेस आई पार्टी बनाई।दो साल के अंदर सत्ता में वापसी की।कहने का मतलब है कि इंदिरा गांधी की तरह क्या राहुल अब मजबूत फैसले कर पाएंगे।1978 में इंदिरा गांधी के साथ उनके बेटे संजय गांधी मजबूती से साथ खड़े थे।जिसके चलते इंदिरा गांधी मजबूती से फैसले करने में पीछे नही रहती थी।पर आज राहुल के साथ उनकी बहन प्रियंका गांधी खड़ी हैं।यही नही प्रियंका के बच्चे रेहान राजीव  और मरिया वाड्रा भी राजनीति में रुचि ले रहे हैं।लेकिन कमजोर संगठन के चलते वे कोई नई व्यवस्था बनाने की हिम्मत कर पाएंगे लगता नही है।
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