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The role of liquor in the plight of farmers! किसानों की बदहाली में शराब की भूमिका!

किसानों के आंदोलन के बीच जो हिंसा और अराजकता बढ़ी, इसमें शराब की एक अहम भूमिका है। पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में शराब की खपत पूरे देश में सबसे ज़्यादा होगी। कभी ग़म के चलते तो कभी ख़ुशी को एँजॉय करने के लिए लोग शराब पीना शुरू कर देते हैं। कभी इसलिए कि आज मौसम रूमानी है, तो कभी मौसम खुश्क है या ठंडा है। कभी होली या दीवाली के बहाने तो कभी 31 दिसम्बर या नया दिन के बहाने। कभी किसी की तरक़्क़ी हुई तो कभी किसी के यहाँ पुत्र हुआ तो कभी गेट-टुगेदर, यानी शराब पीने के लिए कोई न कोई बहाना मिल ही जाता है। इसके बावजूद कि शराब पीने से करोड़ों घर बर्बाद होते हैं। परिवार ख़त्म हो जाते हैं और बच्चे अनाथ हो जाते हैं। लीवर और किडनी काम करना बंद कर देती हैं। लेकिन पीने वाले हैं कि मानते नहीं। कुछ सरकारों ने जब भी शराब पर रोक लगाने की कोशिश की उन्हें भारी विरोध का सामना करना पड़ा। लेकिन अक्सर पाया गया है कि गाँवों में औरतों ने शराब के ख़िलाफ़ मोर्चा खोला है।

पहले अक्सर सुनने में आता था, कि किसान परिवार की औरतों ने शराब के विरुद्ध मोर्चा खोला। मुझे याद है, एक दशक पहले राजधानी दिल्ली से कुल 30 किमी की दूरी पर स्थित कुछ गांवों की सैकड़ों महिलाओं ने शराब के खिलाफ एक जबर्दस्त मोर्चा खोल रखा था। उत्तर प्रदेश के गौतमबुद्घ नगर जिले के सैनी सुनपुरा की प्रधान हरवती की अगुआई में यह आंदोलन चला था। और इस आंदोलन ने पूरे जिले में सनसनी फैला दी थी। गौतमबुद्घ नगर का जिला प्रशासन हरवती के विरुद्घ शराब के ठेके जलाए जाने के विरुद्ध मुक़दमा क़ायम करने पर अड़ गया, लेकिन हरवती ने भी हार नहीं मानी है वे पूरी दृढ़ता से इस लड़ाई की कमान संभाले रहीं। हरवती सरीखी सैकड़ों महिलाएं प्रशासन की धमकी के बावजूद अपने निश्चय पर अडिग थीं। उनका तर्क था कि शराब ने उनके घर बरबाद कर दिए हैं। उनकी जमीनों का ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण ने जो मुआवजा दिया है उसे उनके परिवार के पुरुष सदस्य शराब में उड़ाए डाल रहे हैं। वे इस बात पर कतई गौर नहीं कर रहे हैं कि शराब की यह लत उनके पूरे परिवार को गर्त में धकेल देगी। लाखों-करोड़ों रुपयों में मिला जमीन का मुआवजा अगर इसी तरह शराब के जरिए बहाया गया तो वह दिन दूर नहीं जब उनके बच्चे दाने-दाने को मोहताज हो जाएंगे। इसीलिए घोर ठंड की एक रात सैनी गांव में ठेकों को महिलाओं ने फूंक डाला और अपने-अपने घरों में पुरुषों द्वारा लाकर रखी गई शराब की सैकड़ों बोतलें फोड़ डालीं।

शिवाज रीगल, ब्लैक लेबल, हंड्रेड पाइपर, टीचर और ब्लैक एंड व्हाइट की न जाने कितनी बोतलों का द्रव उस दिन खेतों में बहा दिया गया। जिन्हें शराब पीने की लत है उन्हें इस बात का अंदाजा होगा कि इनमें से कोई भी बोतल दो हजार रुपए से कम की नहीं होगी। फिर शिवाज रीगल और ब्लैक लेबल तो विदेशी स्काच हैं जो शायद तीन-तीन हजार रुपयों की आती हों। इतनी मंहगी बोतलें अगर फोड़ी गईं तो जाहिर है महिलाएं किस कदर शराब से परेशान होंगी। शराब कैसे घरों को बरबाद करती है, एक औरत से ज्यादा बेहतर कोई नहीं जानता होगा। शराबी तो पीकर दुनिया जहान की चिंताओं से मुक्त हो गया लेकिन घर के खर्चों और घर चलाने की जिल्लत महिलाओं को ही भोगनी पड़ती है। इसलिए उनका नाराज होना स्वाभाविक है। लेकिन इस पूरे प्रकरण में राजनीतिक दलों की चुप्पी अचंभे में डालने वाली है। गौतमबुद्घ नगर सीट से तब लोकसभा सदस्य सुरेंद्र नागर थे और दादरी की विधानसभा सीट से विधायक थे सत्यवीर सिंह गुर्जर। ये दोनों ही बहुजन समाज पार्टी की टिकट पर चुने गए थे। लेकिन उस समय उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती की इस गृहनगरी में महिलाओं के इतने बड़े आंदोलन के प्रति उनका चुप रहना हैरान करने वाला था।

दिल्ली के पास उत्तर प्रदेश के नोएडा-ग्रेटर नोएडा (जिला गौतमबुद्घ नगर) और गाजियाबाद  ही नहीं बल्कि हरियाणा के गुडग़ांव और फरीदाबाद की हालत भी इससे अलग नहीं है और वहां भी सैकड़ों दफे महिलाओं ने शराब के खिलाफ मोर्चा खोला है पर दोनों ही प्रांतों की  सरकारें इस समस्या पर महिलाओं के पक्ष से विचार करने की बजाय हर गांव व कस्बे में शराब के ठेके तथा माडल बियर शॉप खोले जा रही है। शराब की दूकानें खोलने की हड़बड़ी में सरकारें खुद के बनाए नियमों को भी ताक पर रख रही हैं। स्कूल, रिहायशी क्षेत्र, धार्मिक स्थान और सार्वजनिक स्थलों से शराब की दूकानें कम से कम 200 मीटर की दूरी पर होनी चाहिए लेकिन आबकारी से पैसा उगाहने के चक्कर में सरकारें इस नियम का मखौल उड़ा रही हैं। सैनी सुनपुरा में ठेका गांव के ठीक बीचोंबीच था। यही हाल नोएडा तथा ग्रेटर नोएडा की शहरी आबादी का है। वहां भी कई शराब की दूकानें स्कूलों और शहरी आबादी के एकदम करीब हैं। गुडग़ांव तथा फरीदाबाद की स्थिति तो और भी खराब है। एक-एक सेक्टर में दो से ज्यादा शराब की दूकानें हैं। यहां तो दिन में टकीला और रात को जानी वाकर पीने का इतना रिवाज है कि सारा मुआवजा इन्हीं मंहगी शराबों के चक्कर में बहा जा रहा है।

ग्रेटर नोएडा से कुल आठ किमी पर है मायचा। करीब 5000 की आबादी वाला यह गांव मुआवजे की मलाई से एकदम तर है। गांव के सभी मकान पक्के तथा हर घर में स्कार्पियो सरीखी गाडिय़ां खड़ी दीखती थीं। लेकिन प्रशासन ने यहां स्कूल के नजदीक ही ठेका भी खोल दिया। नतीजा यह हुआ कि 15 साल के किशोर से लेकर साठ साल के बुजुर्ग तक इसी दूकान में दीख जाते हैं। माया कुम्हारिन कहती है कि गरीब के लिए रोटी नहीं है। राशन की दूकान नहीं खुलती लेकिन शराब की दूकान खुली रहती है। यहां सुरेश प्रधानिन ने मोर्चा संभाला। मैं उस गाँव में गया था, तब कई लोग तो यह मानने को तैयार नहीं थे कि गांव के अधिकतर लोग शराबी हैं पर यह जरूर मानते थे कि शराब के ठेके की वजह से लोग शराबी होते जा रहे हैं। जब से ग्रेटर नोएडा क्षेत्र का शहरीकरण शुरू हुआ है यहां शराब के ठेकों और अंग्रेजी शराब की दूकानों की संख्या में तेजी से इजाफा हुआ है। पूरे जिले में तब 280 शराब के ठेके थे। इसमें से अकेले ग्रेटर नोएडा में ही 45 प्रतिशत हैं। मुआवजा पाए किसानों में से 15 प्रतिशत ऐसे किसान परिवार थे, जहां के पुरुष सदस्य सुबह से ही शराब पीना शुरू कर देते थे। हालांकि यह भी सच है कि युवकों में शराब पीने की प्रवृत्ति बूढ़ों व अधेड़ों की तुलना में कम है। जहां 30 से 40 की उम्र वाले 20 फीसदी लोग ही नियमित पीने की आदत डाले हैं वहीं 40 से 60 की उम्र वालों के बीच यह प्रतिशत 60 का था। पर आज की तारीख़ में युवाओं में शराब की लत बढ़ी है।

इसके उलट शहरी क्षेत्रों में शराब की खपत युवाओं में ज्यादा है। नोएडा, ग्रेटर नोएडा, गुडग़ांव व फरीदाबाद में युवा ज्यादा शराब के लती हो रहे हैं। यहां माल के अंदर निरंतर बढ़ रहे बार और पब ने इस प्रवृत्ति को ज्यादा उकसाया है। बियर, वाइन और व्हिस्की व रम आदि की इस लत को सरकारें राजस्व उगाही का हथियार बनाए रहीं तो यहां भी शायद देर-सबेर महिलाओं को ही मोर्चा संभालना पड़े।

गम है तो शराब और खुशी है तो शराब। आखिर पीने वालों को कोई बहाना तो चाहिए ही।  क्या करें हम तो शराब छोड़ दें लेकिन न्यू इयर ईव तो मनाना ही पड़ता है। कभी मौसम की बेईमानी का बहाना होता है तो कभी उसके खुशगवार होने का। भुगतना पड़ता है घर की महिलाओं को। जिनके लिए हर वक्त मौसम खुश्क और गमशुर्दा ही होता है। गालिब का शेर है-

गालिब छूटी शराब पर अब भी कभी-कभी

पीता हूं शब-ए-रोज महताब में।

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