नई दिल्ली।सोनिया गांधी ने पार्टी की कमान फिर से अपने हाथों में लेने के 13 माह बाद पार्टी का चेहरा मोहरा बदलने की कोशिश तो की,लेकिन इस से असल मुद्दा अभी खत्म नही हुआ है।असल मुद्दा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का सामना क्या राहुल गांधी ऐसे ही करेंगे?क्योंकि कांग्रेस के अंदर झगड़ा यही है कि राहुल और प्रियंका गांधी की अगुवाई में पार्टी मोदीं का मुकाबला नही कर पायेगी। सोनिया गांधी ने शुक्रवार को जो टीम घोषित की है उससे एक बात तो साफ हो गई कि राहुल गांधी ने जो चाह वही हुआ।लेकिन राजस्थान सरकार पर आए संकट के समय जूझने वाली टीम को जिस तरह प्रमोशन मिला है उससे लगता है कि राहुल गांधी का मुख्यमंत्री अशोक गहलोत पर भरोसा बहुत बढा है।रणदीप सुरजेवाला,अजय माकन,विवेक बंसल,देवेंद्र यादव,जितेंद्र सिंह का प्रमोशन ओर रघुवीर सिंह मीणा का मुख्य कार्यसमिति में बने रहने को राजस्थान के घटनाक्रम से ही जोड़ कर देखा जा रहा है।अविनाश पांडे प्रभारी पद से हटाए गए तो कार्यसमिति में जगह मिल गई।लेकिन संगठन महासचिव पद पर गैर हिंदी भाषी के सी वेणुगोपाल का जमे रहना इसका संकेत है कि राहुल अपनी नीतियों में कोई बदलाव नही लाने वाले है।अब सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या 2021 के शुरू में या फिर 2022 में कांग्रेस कोई बड़ा फैसला करेगी।पार्टी के अंदुरुनी सूत्रों की माने तो ऐसा हो सकता है।इसमें दो बातें है।पहली अगर राहुल गांधी ने ही मोदी के खिलाफ मोर्चा संभालने की जिद की तो 2021 में पार्टी उन्हें अध्य्क्ष बना देगी।नही तो फिर मामले को 2022 उत्तर प्रदेश के चुनाव तक जैसा चल रहा है चलता रहेगा।यूपी के परिणाम बताएंगे कि 2024 में मोदी का मुकाबले के लिये चेहरा कौन होगा।
पिछले दिनों जिन 23 नेताओं ने सोनिया गांधी को पत्र लिखा था उसका असल सार यही था कि प्रधानमंत्री मोदी से मुकाबला मौजूदा परस्थितियों में नही हो सकता है।उन्होंने सीधे नही पर एक तरह से राहुल की नीतियों पर सवाल उठाये थे।दरअसल राहुल गांधी पर बराबर आरोप लगते रहे हैं कि वह देश का मूड नही समझ पा रहे हैं।ना ही फुल टाइम राजनीति कर देश को समझना चाह रहे हैं।अभी पिछले 7 माह से मोदी सरकार पर कोरोना,बेरोजगारी,गिरती अर्थव्यवस्था जैसे मुद्दों को लेकर उन्होंने लगातार हमले किये।ट्विटर तो उनका मुख्य हथियार हो गया,लेकिन साथ ही कई विशेषज्ञों के ििइंटरव्यू किये।लेकिन इनका क्या परिणाम रहा जवाब किसी के पास नही।अब संसद में जहाँ उन्हें सीधे मोदी सरकार पर हमले का मौका मिलता वह गायब रहेंगे।अपनी माँ सोनिया गांधी के साथ शनिवार को विदेश चले गए।यह पहला मौका नही इससे पूर्व भी ऐसा करते रहे हैं।अब सोनिया गांधी ने जो नई टीम बनाई है इससे पार्टि के मौजूदा हालात में कोई बदलाव आएगा लगता नही है ।क्योकि अभी भी पूरी तरह से राहुल की ही चलेगी ।राहुल अपने मे कोई बदलाव लाएंगे ऐसा भी लगता नही है।वह अपनी ट्विटर की राजनीति में कोई बदलाव लाने वाले नही है।बहन प्रियंका को उन्होंने उत्तर प्रदेश में फंसा कर उन्होंने एक ऐसा दांव खेला है जिसमे प्रियंका 2022 में फिर असफल होती हैं,जिसके चांस बहुत ज्यादा है तो फिर उनके लिये भी राजनीति की राह मुश्किल भरी हो जायँगी।जानकार मान रहे हैं कि प्रियंका को यूपी में नही उलझाना चाहिये था।लेकिन राहुल अपनी तरह की अलग राजनीति करने में आमादा है।अलग राजनीति का परिणाम है कि मुख्य टीम में महिलाओं के नाम पर सोनिया गांधी,प्रियंका गांधी,अंबिका सोनी ओर रजनी पाटिल ही हैं।
कांग्रेस बदलाव के बाद भी यूं ही चलती रही तो हालात और बिगड़ेंगे।क्योकि पार्टी के पास बहुत समय है नही।इस साल नवम्बर में बिहार चुनाव के 7 माह बाद अगले साल आधा दर्जन राज्यों में चुनाव होने है।ये राज्य हैं पशिचम बंगाल,तमिलनाडु,पुडिचेरी,जम्मू और कश्मीर ओर असम ।फिर 2022 में यूपी,पंजाब,गोवा,मणिपुर और उत्तराखंड जैसे राज्यों के चुनाव हैं।2023 में कर्नाटक, राजस्थान,मध्य्प्रदेश ओर छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों के चुनाव आ जायँगे।इन राज्यों की जीत से ही 2024 का रास्ता बनेगा।कहने भर के लिये सोनिया गांधी है लेकिन सब कुछ राहुल और प्रियंका ही तय कर रहे हैं।2014 और 2019 तक सारे फैसले भाई बहन ने ही किये थे।जिसका नतीजा सामने है ।पार्टी का ग्राफ लगातार गिर रहा है।पार्टी राज्यों में भी कमजोर हो रही है।अब अगर राहुल गांधी किसी गैर गांधी को पार्टी की कमान सौंपने की हिम्मत जुटा अपनी कही बात पर मोहर लगाते हैं तो लोकतंत्र के लिये अच्छा होगा।देश को मजबूत विपक्ष मिलेगा।वर्ना आरएसएस और प्रधानमंत्री मोदी को मौजूदा हालात में कांग्रेस चुनोती नही दे पाएगी।
अजीत मैंदोला