म्यांमार में सैन्य तख्तापलट के बाद सीमा पार से भाग कर मिजोरम, नागालैंड, अरुणाचल प्रदेश और मणिपुर आने वाले शरणार्थियों की समस्या लगातार गंभीर होती जा रही है। लेकिन केंद्र सरकार ने अब तक इस मुद्दे पर कोई ठोस फैसला नहीं किया है। इस वजह से खासकर म्यांमार सीमा से लगे मिजोरम, नागालैंड और मणिपुर की सरकार असमंजस में है। मणिपुर की बीजेपी सरकार ने तो पहले इन शरणार्थियों के लिए राहत शिविर खोलने से इंकार कर दिया था। लेकिन इस फैसले की आलोचना के बाद सरकार ने इसे वापस ले लिया। अब तक तीन हजार से ज्यादा लोग सीमा पार कर इन इलाकों में पहुंच चुके हैं। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह पहले ही कह चुके हैं कि फिलहाल इन शरणार्थियों को भोजन और दवाएं तो दी जा सकती हैं लेकिन भारत अवैध घुसपैठ को बढ़ावा नहीं दे सकता।
म्यांमार के चिन राज्य के साथ मिजोरम की 510 किलोमीटर लंबी सीमा सटी है। राज्य में शरण लेने वाले म्यांमार के ज्यादातर नागरिक चिन से हैं। मिजो समुदाय की संस्कृति को साझा करने वालों को चिन कहा जाता है। म्यांमार में तख्तापलट के बाद देश के पूर्वोत्तर राज्यों में पहुंचने वाले म्यांमार शरणार्थियों को लेकर चल रही राजनीतिक खींचतान के बीच मिजोरम के मुख्यमंत्री जोरमथांगा ने कहा है कि वे केंद्र सरकार से म्यांमार को लेकर अपनी विदेश नीति में बदलाव करने और शरणार्थियों को वापस नहीं भेजने की अपील करेंगे। इससे पूर्व बीते हफ्ते उन्होंने म्यांमार से अवैध घुसपैठ पर रोक लगाने और शरणार्थियों का तेजी से प्रत्यर्पण सुनिश्चित करने के केंद्र सरकार के आदेश को अस्वीकार्य बताते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मानवीय आधार पर उनको शरण देने का अनुरोध किया था।
साझा संस्कृति और विरासत की वजह से म्यांमार से सबसे ज्यादा शरणार्थी मिजोरम में ही आए हैं। मुख्यमंत्री जोरमथांगा ने डीडब्ल्यू से कहा कि मुझे लगता है कि म्यांमार के लोगों को लेकर भारत सरकार को उदार रवैया रखना चाहिए। मैंने प्रधानमंत्री मोदी से भी यह कहा है। हम सरकार से निवेदन करेंगे कि म्यांमार के शरणार्थियों को स्वीकार करने और वापस नहीं भेजने को लेकर विदेश नीति में बदलाव किए जाएं। यहां आने वाले शरणार्थियों की तादाद लगातार बढ़ रही है। हमें उनके साथ सहानुभूतिपूर्ण रवैया अपनाना होगा। कहते हैं कि म्यांमार से आने वाले लोग हमारे भाई-बहन हैं। उनमें से ज्यादातर के साथ हमारे पारिवारिक संबंध हैं। अगर वे लोग मिजोरम आते हैं तो मानवीय दृष्टिकोण के आधार पर उन्हें खाना और आश्रय देना होगा।
तख्तापलट के बाद से ही लोग लोकतंत्र की बहाली की मांग करते हुए कई हिस्सों में प्रदर्शन कर रहे हैं। सेना और पुलिस प्रदर्शनकारियों के खिलाफ सख्ती से पेश आ रहे हैं, जिसकी वजह से देश में हिंसा का दौर थम ही नहीं रहा है। तीन मार्च को सुरक्षाबलों की फायरिंग में 38 लोग मारे गए थे। जोरमथांगा ने इससे पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भेजे पत्र में इन शरणार्थियों को राज्य में शरण देने का अनुरोध किया था। उन्होंने कहा था कि म्यांमार में बड़े पैमाने पर मानवीय तबाही हो रही है और सेना बेकसूर नागरिकों की हत्या कर रही है। इससे पहले 13 मार्च को केंद्रीय गृह मंत्रालय की ओर से चार पूर्वोत्तर राज्यों को भेजे गए एक पत्र में म्यांमार से अवैध तौर पर आ रहे लोगों को कानून के अनुसार नियंत्रित करने की बात कही गई थी।
वहीं दूसरी तरफ मणिपुर सरकार ने बीते 26 मार्च को म्यांमार की सीमा से सटे जिलों के उपायुक्तों को एक आदेश जारी कर म्यांमार से भागकर आ रहे शरणार्थियों को आश्रय और खाना देने से इनकार करते हुए उन्हें शांतिपूर्वक लौटाने की बात कही थी। लेकिन कड़ी आलोचना के बाद इस आदेश को वापस ले लिया गया। उधर, म्यांमार में सैन्य तख्तापलट के बाद हुई हिंसा के बाद पूर्वोत्तर भारत आने वाले शरणार्थियों को लेकर भारत के गृह मंत्री अमित शाह ने कहा है कि भारत उन्हें राशन और दवाइयां देने को तैयार है लेकिन अवैध तरीके से घुसपैठ को बढ़ावा नहीं दिया जा सकता है। उनका कहना था कि हम सबकी सहायता करना चाहते हैं। अगर म्यांमार से आने वाले लोग राशन या मेडिकल सप्लाई चाहते हैं तो भारत सरकार उन इलाकों में कैंप लगा कर उनकी सहायता कर सकती है। लेकिन हम भारत में म्यांमार से अवैध घुसपैठ को बढ़ावा नहीं दे सकते हैं।
आपको बता दें कि पूर्वोत्तर के कई संगठन भी म्यांमार से आने वाले लोगों को शरणार्थियों का दर्जा देने की मांग कर रहे हैं। भारत, म्यांमार और बांग्लादेश में मौजूद जातीय समूह का प्रतिनिधित्व करने वाले एक संगठन द जो रियूनिफिकेशन आॅर्गनाइजेशन (जोरो) ने गृह मंत्रालय से म्यांमार की सीमा से लगे चार पूर्वोत्तर राज्यों- मिजोरम, मणिपुर, नागालैंड और अरुणाचल प्रदेश को उस देश से आने वाले लोगों को रोकने का अपना आदेश वापस लेने की भी अपील की है। संगठन के लोगों का कहना है कि पहले में बांग्लादेश और अन्य देशों के हजारों लोग अवैध रूप से भारत आए हैं। केंद्र सरकार ने उन्हें शरणार्थी के रूप में शरण दी है। लेकिन अब उसने चार सीमावर्ती राज्यों को म्यांमार से आने वाले लोगों की पहचान करने और वापस भेजने को कहा है। यह ठीक नहीं है।
म्यांमार में 1 फरवरी को हुए सैन्य तख्तापलट के विरोध और देश की प्रमुख नेता आंग सान सू ची को जल्द से जल्द रिहा करने के समर्थन में हजारों लोगों ने 7 फरवरी को देशभर में जोरदार प्रदर्शन किया। प्रदर्शनकारियों ने प्रदर्शन के दौरान नारे लगाते हुए कहा कि हम सैन्य तानाशाही नहीं चाहते हैं। हम लोकतंत्र चाहते हैं। म्यांमार से आने वाले शरणार्थियों के मुद्दे पर केंद्र की चुप्पी पर अब पूर्वोत्तर में सवाल उठने लगे हैं। केंद्र सरकार ने अब तक म्यांमार के तख्तापलट पर कोई टिप्पणी नहीं की है। दरअसल इसकी एक वजह इस देश के साथ 1,643 किलेमीटर लंबी सीमा का लगा होना भी है। यह सीमा ज्यादातर जगहों पर खुली है। इसकी निगरानी का जिम्मा असम राइफल्स पर है। लेकिन सीमावर्ती इलाकों में रहने वाली जातियों, उनकी संस्कृति और रहन-सहन में समानता की वजह से सदियों से दोनों ओर के लोग अबाध रूप से आवाजाही करते रहे हैं। अब हालांकि बीते साल कोरोना महामारी की वजह से औपचारिक सीमाएं बंद कर दी गई हैं। यू कहें कि हालात ठीक नहीं है। देखते हैं कि क्या होता है?