आत्मा की शांति तभी मिलती है जब हमारी आत्मा परमात्मा में जाकर विलीन हो जाती है

0
1123
sant rajinder singh ji
sant rajinder singh ji

संत राजिन्दर सिंह जी महाराज
कई लोग अपने प्रतिदिन के कार्यों में से कुछ समय निकालकर छुट्टियों पर जाना चाहते हैं। वे अपने दैनिक जीवन के कठिन परिश्रम से दूर रहकर आराम और मन की शांति पाना चाहते हैं। वे जीवन की दिन-प्रतिदिन की परेशानियों और चिंताओं से दूर होकर किसी ऐसी जगह पर कुछ दिन रहना चाहते हैं, जहां उन्हें खुशी और आनंद का अनुभव हो। हालांकि ज्यादातर लोग कुछ अस्थायी पलों के लिए ही नहीं बल्कि हर समय शांति का अनुभव करना चाहते हैं। संत-महापुरुष हमें बताते हैं कि शांति के तीन स्तर होते हैं। पहला मन की शांति, दूसरा हृदय की शांति और तीसरा आत्मा की शांति। मन की शांति हमारे दैनिक जीवन के लिए ही नहीं बल्कि यह हमारी आध्यात्मिक यात्रा और परमात्मा की तरफ लौटने के लिए भी बहुत आवष्यक है। जब हम अपने दैनिक कार्यों का निरीक्षण करते हैं कि पूरे दिन के दौरान क्या-क्या हुआ? तो हम पाते हैं कि ऐसी अनगिनत घटनाएं हैं जो हमें शांति के अनुभव से दूर रखती हैं। जब हम अपने दिनभर के कार्यों को गौर से देखते हैं कि पूरा दिन हमने क्या किया? तो हम पाते हैं कि हम नौकरी में, परिवारों में या किसी अन्य गतिविधियों में समस्याएं होने की वजह से अशांत या व्याकुल रहते हैं।

यही व्याकुलता हमारे अंदर एक डर पैदा करती है कि कल क्या होगा और सबसे बड़ा डर इंसान को मौत का हमेशा बना रहता है। हम मरने से डरते हैं और यह डर हमेशा हमें परेशान करता है और हमें शांत रहने से भी दूर रखता है। दुनिया में कुछ ही लोग ऐसी परेशानियों से ऊपर उठते हैं और जीवन को उच्च दृष्टिकोण से देखते हैं क्योंकि वे आध्यात्मिक नजरिये से अपना जीवन व्यतीत करते हैं। जब हम आध्यात्मिक शिक्षाओं को अपने जीवन में ढालते हैं तो इससे हमें आंतरिक दृष्टि मिलती है जो हमारे मन को सच्ची शांति देती है। आध्यात्मिकता के इस मार्ग पर चलकर हमें ये अनुभव होता है कि इंसान की शारीरिक मृत्यु केवल एक भ्रम है। हम पाते हैं कि हमारा सच्चा स्वरूप यह मानव शरीर नहीं है बल्कि एक आत्मा है जो इस शरीर में निवास करती है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि हमारा शरीर एक दिन नष्ट हो जाएगा लेकिन आत्मा शरीर को जीवन देती है वो कभी नहीं मरती। यह सिर्फ अपना चोला बदलती है, जैसे हम अपने कपड़े बदलते हैं। आत्मा एक शरीर से निकलकर दूसरे शरीर में चली जाती है। आत्मा का स्थान दो आँखों के भू्र-मध्य स्थित है। यही वह स्थान है जहाँ से आत्मा शरीर को छोड़ती है और अंदर की दुनिया में प्रवेश करती है। एक बार जब हम अंदर की दुनिया में जाते हैं तो वहाँ हम प्रभु के दिव्य-प्रकाश को देखते हैं। हम अपने अंदर आकाश, तारे, चन्द्रमा और आंतरिक सूर्य को देखते हुए अपने असली आध्यात्मिक घर तक पहुँचते हैं और वहाँ हमारी आत्मा का मिलाप परमात्मा में हो जाता है। हममें से प्रत्येक व्यक्ति ध्यान-अभ्यास के द्वारा ज्योति और श्रुति का अनुभव कर इस आध्यात्मिक उड़ान का आनंद ले सकता है। जब हम अंदरूनी दुनिया में प्रवेश करते हैं तो तब हमें मृत्यु का कोई भय नहीं रहता।

हमें अहसास होता है कि हम शरीर नहीं हैं बल्कि एक आत्मा हैं जो अमर है। आध्यात्मिकता और ध्यान-अभ्यास हमें न केवल मन की शांति प्रदान करते हैं बल्कि वे हमें हृदय की शांति भी प्रदान करते हैं। प्रत्येक मनुष्य को प्रेम की आवष्यकता है और वो एक-दूसरे को भी प्रेम बांट सकता है। आध्यात्मिक मार्ग हमें स्थायी प्रेम और आनंद प्राप्त करने का साधन प्रदान करता है क्योंकि परमात्मा का प्रेम, स्थान और समय से परे है। जो प्यार हमें अंतर में पिता-परमेष्वर से मिलता है, उसे हम आंतरिक ज्योति के दर्शन कर और ध्वनि को सुनकर अनुभव कर सकते हैं जोकि सदा-सदा के लिए हमारे साथ रहता है। प्रभु के इस दिव्य-प्रेम के प्रति ग्रहणशील होना रूहानी नशे के सागर में डुबकी लगाने के समान है। जब हमें परमात्मा से प्रेम मिलता है तो हमारा दिल शांति से भर जाता है और खुशी से नाच उठता है। हम प्रभु के इस दिव्य-प्रेम से लबालब भर जाते हैं और धीरे-धीरे यह प्रेम हमसे औरों तक भी पहुँचता है क्योंकि प्रभु के पे्रेम की कोई सीमा नहीं होती। प्रभु के इस दिव्य-प्रेम को पाकर हमारी आत्मा हर वक्त अपने वास्तविक स्वरूप के प्रति जागृत रहती है।

परमात्मा की मधुर आवाज हमें हर समय पुकारती है और आत्मा को जगाने की कोशिश् करती है। वह उसे उत्साह से भर देती है, जिससे हमारा जीवन बदल जाता है। उदाहरण के लिए जैसे एक वायलिन का निरंतर बजने वाला संगीत या किसी कविता का छंद जो ईष्वर या प्रकृति में दिखाई देने वाली दिव्यता को दशार्ता है। यह एक आकस्मिक घटना भी हो सकती है जिसमें हम अपने किसी प्रियजन को खो देने पर यह महसूस करते हैं कि यह शरीर हमारा वास्तविक घर नहीं है। तब हमें यह समझ में आता है कि हम न तो शरीर हैं और न ही मन। तब हमारी आत्मा अपने असली घर वापिस जाने के लिए तड़पती है। फिर हमें यह अनुभव हो जाता है कि हम तब तक शांति नहीं पा सकते जब तक कि हमारी आत्मा का मिलाप परमात्मा से नहीं हो जाता। हम मन की शांति प्राप्त कर सकते हैं, हम हृदय की शांति हासिल कर सकते हैं लेकिन आत्मा की शांति केवल तभी मिलती है जब हमारी आत्मा परमात्मा में जाकर विलीन हो जाती है। जब हम उस स्थिति को प्राप्त करते हैं जहाँ हम अपने भीतर की शांति का अनुभव करते हैं। फिर वो शांति हमसे दूसरों में भी प्रसारित होती हैं हमारे संपर्क में आने वाले सभी व्यक्ति उस शांति का अनुभव करते हैं। यदि हम हृदय की शांति, मानसिक शांति और आत्मिक शांति प्राप्त कर लेंगे, तब वह शांति हमसे औरो में भी प्रसारित होगी। तब हम अपने चारों ओर आनंद और शांति फैलाने में बहुत प्रभावी होंगे।