The partition line in the Congress was drawn: कांग्रेस में विभाजन रेखा खिंची जा चुकी थी

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अंबाला। 1967 के चुनाव आते आते वैसे तो कांग्रेस दो भाग में अंदरूनी तौर पर विभाजित हो चुकी थी, इसका असर चुनाव में भी देखने को मिला। भले ही कांग्रेस ने इंदिरा गांधी के नेतृत्व में सरकार बनाने में कामयाबी हासिल कर ली थी, लेकिन फिर भी अंदरूनी कलह समाप्त होने का नाम नहीं ले रहा था। इसी बीच 1969 में राष्ट्रपति चुनाव की बारी आ गई।
-1969 का राष्टÑपति चुनाव एक बेहद ही महत्वपूर्ण फेज रहा। इस फेज में कांग्रेस की अंदरूनी लड़ाई सार्वजनिक हो गई थी।
-1971 में आम चुनाव भी होने थे। लेकिन इस चुनाव के करीब डेढ़ साल पहले हुए राष्ट्रÑपति चुनाव में कांग्रेस के विभाजन पर आधिकारिक मुहर लग गई।
– अगस्त 1969 में राष्ट्रपति चुनाव हुआ था। इस चुनाव में इंदिरा गांधी बाबू जगजीवन राम को कांग्रेस का उम्मीदवार बनाना चाहती थीं, लेकिन लेकिन कांग्रेस संसदीय बोर्ड की बैठक में उनकी नहीं चली।
-निजलिंगप्पा, एसके पाटिल, कामराज और मोरारजी देसाई जैसे दिग्गज कांग्रेस नेताओं की पहल पर नीलम संजीव रेड्डी राष्ट्रपति पद के लिए कांग्रेस के आधिकारिक उम्मीदवार बना दिए गए।
-यह एक तरह से प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हार थी। संसदीय बोर्ड के फैसले के बाद इंदिरा गांधी भी नीलम संजीव रेड्डी की उम्मीदवारी की एक प्रस्तावक थीं, लेकिन उन्हें रेड्डी का राष्ट्रपति बनना गंवारा नहीं था।
-इसी बीच तत्कालीन उपराष्ट्रपति वराहगिरी व्यंकट गिरि (वीवी गिरि) ने अपने पद से इस्तीफा देकर खुद को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार घोषित कर दिया। यह एक अप्रत्याशित घटना थी।
-स्वतंत्र पार्टी, समाजवादियों, कम्युनिस्टों, जनसंघ आदि सभी विपक्षी दलों ने वीवी गिरि को समर्थन देने का एलान कर दिया।
-राष्ट्रपति चुनाव के ठीक पहले इंदिरा गांधी भी पलट गई और उन्होंने कांग्रेस में अपने समर्थक सांसदों-विधायकों को रेड्डी के बजाय गिरि के पक्ष में मतदान करने का फरमान जारी कर दिया।
-इंदिरा गांधी के इस पैंतरे से कांग्रेस में हड़कंप मच गया। वीवी गिरि जीत गए और कांग्रेस के अधिकृत उम्मीदवार संजीव रेड्डी को दिग्गज कांग्रेसी नेताओं का समर्थन हासिल होने के बावजूद पराजय का मुंह देखना पड़ा। वीवी गिरि की जीत को इंदिरा गांधी की जीत माना गया।
-भले ही राष्टÑपति चुनाव में इंदिरा गांधी ने कुशल राजनीतिक चालाकी और स्फूर्ति दिखाते हुए कांग्रेस में अपने विरोधियों को पटखनी दे दी थी, लेकिन इस राष्टÑपति चुनाव के बाद कांग्रेस में स्पष्ट रूप से विभाजन रेखा खींच गई थी।