जो अहंकार न करे वही है अक्षयवट

0
1091
Murari Bapu
Murari Bapu
संत मोरारीबापू ने वटवृक्ष के महत्व के बारे में दोहावली के आधार पर बताया। कहा कि दोहावली में अंकित है कि वटवृक्ष पर फूल नहीं लगते। वह फूलता नहीं है। इसलिए कि वटवृक्ष के सप्तांग में फूल नहीं है। जो अहंकार न करे वही अक्षयवट है। इसकी जड़ें जितनी जमीन के अंदर जाती हैं, फैलती हैं, उतना ही वह ऊपर उठता है।
इसी तरह जिस व्यक्ति की जड़ें गहरी होती हैं, वह कभी अहंकार नहीं करता है। उसकी प्रतिष्ठा बड़ी है। वह अंदर से फूलते नहीं हैं, उनमें अहंकार नहीं आता है। छोटी जड़ों वाले लोग फूलते हैं, लेकिन जिसकी प्रतिष्ठा आसमान को छू रही होती है, वह अहंकार नहीं करते। उन्होंने सीता वट को सत्यवट, वृंदावन के वंशीवट को प्रेमवट है और कैलाश के शिव वट को करुणा वट के रूप में व्याख्यायित किया।

मोरारी बापू ने कथा प्रसंगों के दौरान अनुभव और अनुभूति की भी विवेचना की। बताया कि अनुभव वर्षों की जीवन यात्रा के निचोड़ के रूप में आता है, जबकि अनुभूति क्षणिक है। बापू ने कहा कि अच्छा ग्रंथ, पंथ, स्वर, सूर, वाद्य, नृत्य, आचार-विचार सत्संग के समान है। सद्ग्रंथ का घराना अलमारी नहीं, हमारा अंत:करण है। बापू ने बताया कि अनुभव एक क्रिया है, जबकि अनुभूति सहज क्रिया है। अनुभव आपको करना पड़ेगा, यह क्रिया युक्त का परिणाम है, जबकि अनुभूति निजी क्रिया का परिणाम है। वह बताते हैं कि गंगा सहज योग है और साधु सहज बहाव। राम जन्मभूमि पर फैसला बड़े भाग्य से मोरारी बापू ने राम जन्मभूमि पर सुप्रीमकोर्ट के फैसले को बड़े भाग्य का प्रतिफल बताया। कहा कि राम जन्मभूमि पर फैसले की घड़ी के इंतजार में कितने साल निकल गए। अब भारत के भाग्य से फैसला आया है।