The need for a mass movement against corruption: भ्रष्टाचार के खिलाफ जन आंदोलन की जरुरत

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 भ्रष्टाचार के खिलाफ दुनिया को एकजुट करने के लिए 9 दिसंबर को अंतरराष्ट्रीय भ्रष्टाचार विरोधी दिवस मनाया जाता है। संयुक्त राष्ट्र महासभा ने एक प्रस्ताव पारित कर अंतरराष्ट्रीय भ्रष्टाचार विरोधी दिवस मनाए जाने की घोषणा की थी। संयुक्त राष्ट्र द्वारा लोगों में जन जागरण और चेतना जगाने के लिए अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अनेक दिवसों का आयोजन किया जाता है। यह जगजाहिर और अकाट्य सत्य है कि दुनियाभर में भ्रष्टाचार की वजह से न केवल आर्थिक विकास पर असर पड़ता है बल्कि लोकतंत्र के प्रति विश्वास को भी ठेस पहुंचती है। विश्व का कोई भी देश भ्रष्टाचार से सुरक्षित नहीं है। भ्रष्टाचार ने पूरी दुनिया को अपनी गिरफ्त में ले रखा है। भ्रष्टाचार आर्थिक विकास में बाधक है, लोकतंत्र के प्रति विश्वास को नुकसान पहुंचाता है और रिश्वत की संस्कृति को बढ़ावा देता है। भ्रष्टाचार से सामाजिक असामानता फैलती है। हर साल ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल जैसी वैश्विक संस्था अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर रैंकिंग भी जारी करता है जिसमें भ्रष्टतम देश शामिल किये जाते है। मगर लाख प्रयासों के बाद भी भ्रष्टाचार पर कोई प्रभावी अंकुश नहीं लगाया जा सका। यह हमारे सिस्टम का फेलियोर है या सत्ताधीशों का, इस पर गहन चिंतन और मनन की जरुरत है। संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक भ्रष्टाचार एक गंभीर अपराध है जो सभी समाजों में सामाजिक और आर्थिक विकास को कमजोर करता है। वर्तमान में भ्रष्टाचार से कोई देश, क्षेत्र या समुदाय बचा नहीं है। यह आग की तरह दुनिया के सभी हिस्सों में फैल गया है। इससे लोकतान्त्रिक मूल्यों का क्षरण हो रहा है।
भ्रष्टाचार का शाब्दिक अर्थ है भ्रष्ट आचरण यानि जिसका आचार बिगड़ गया हो। स्वार्थ में लिप्त होकर किया गया गलत कार्य भ्रष्टाचार होता है। भ्रष्टाचार के कई रूप हैं- रिश्वत, कमीशन लेना, काला बाजारी, मुनाफाखोरी, मिलावट, कर्तव्य से भागना, चोर-अपराधियों आतंकियों को सहयोग करना आदि आदि। इसका सीधा मतलब है जब कोई व्यक्ति समाज द्वारा स्थापित नैतिकता के आचरण का उल्लंघन करता है तो वह भ्रष्टाचारी कहलाता है। यहां भ्रष्टाचार से हमारा तात्पर्य अनैतिक और गलत तरीके से अर्जित आय से है।
भारत में भ्रष्टाचार ने लगता है संस्थागत रूप धारण कर लिया है। देश और विदेश की अनेक जानी मानी संस्थाओं ने समय समय पर जारी अपनी रिपोर्टों में यह जाहिर किया है की लाख प्रयासों के बाद भी भारत में भ्रष्टाचार कम होने के बजाय बढ़ा है। भारत के प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने खुलेआम यह कहा है की वे न तो खाएंगे और न खाने देंगे। मोदी अपनी बात पर कायम रहे मगर भ्रष्टाचार पर काबू नहीं पाया जा सका है। मोदी शासन के दौरान भी अनेक बड़े घोटालों का पदार्फास हुआ है। विपक्ष का आरोप है कि सरकार के संज्ञान में आने के बाद भी इन पर कोई प्रभावी कार्यवाही नहीं हुई और घोटालेबाज देश छोड़कर भागने में सफल हुए।
दुनिया के भ्रष्टाचार पर नजर रखने वाली संस्था ट्रांसपरेंसी इंटरनेशनल इंडिया के द इंडिया करप्शन सर्वे 2019 को सही माने तो भारत में हर दूसरा व्यक्ति रिश्वत देकर अपना काम करवाता है। यह सर्वे राजस्थान दिल्ली, बिहार, हरियाणा और गुजरात समेत करीब 20 राज्यों के 248 जिलों में किया गया। हालाँकि भारत में रिश्वत की घटनाओं में पिछले साल के मुकाबले 10 प्रतिशत की गिरावट बताई गई है। ट्रांसपरेंसी इंटरनेशनल सर्वे में ये भी कहा गया है कि बीते 12 महीनों में 51 फीसदी भारतीयों ने रिश्वत देने का काम किया है। सर्वे के अनुसार अब भी रिश्वत के लिए नकद का इस्तेमाल सबसे ज्यादा किया जाता है। सर्वे के मुताबिक, सबसे ज्यादा रिश्वत प्रॉपर्टी रजिस्ट्रेशन और जमीन से जुड़े मामलों में दी जाती रही है। दुनियाभर के 180 देशों की सूची में भारत तीन स्थान के सुधार के साथ 78वें पायदान पर पहुंच गया है। वहीं इस सूचकांक में चीन 87वें और पाकिस्तान 117वें स्थान पर हैं।
135 करोड़ की आबादी का आधा भारत आज रिश्वतखोरी के मकड़जाल में फंसा हुआ है। स्थिति यह हो गई है की बिना रिश्वत दिए आप एक कदम भी आगे नहीं बढ़ सकते। हमारे देश में भ्रष्टाचार इस हद तक फैल चुका है कि इसने समाज की बुनियाद को हिला कर रख दिया है। जब तक मुट्ठी गर्म न की जाए तब तक कोई काम ही नहीं होता। भ्रष्टाचार एक संचारी बीमारी की भांति इतनी तेजी से फैल रहा है कि लोगों को अपना भविष्य अंधकार से भरा नजर आने लगा है और कहीं कोई भ्रष्टाचार मुक्त समाज की उम्मीद नजर नहीं आरही है। मंत्री से लेकर संतरी और नेताओं तक पर भ्रस्टाचार के दलदल में फंसे है। भ्रष्टाचार हमारे सामाजिक ,आर्थिक और नैतिक जीवन मूल्यों पर सबसे बड़ा प्रहार है। भ्रष्टाचार को रोकने के लिए कठोर कानून और दंड-व्यवस्था की जानी चाहिए। जब तक समाज एकजुट होकर भ्रष्टाचार पर हमला नहीं करेगा तब तक इस बीमारी को जड़मूल से समाप्त नहीं किया जा सकता।
-बाल मुकुन्द ओझा
(यह इनके निजी विचार हैं।)