भारतीय लोकतंत्र के बारे में इकोनॉमिस्ट इंटेलिजेंस यूनिट (ईआईयू) द्वारा की गई टिप्पणी पूरे देश में बहस का विषय बन गया है। कहा जा रहा है कि यदि भारतीय लोकतंत्र कमजोर हो रहा है तो यह चिंता का विषय है। लोकतांत्रिक प्रणाली को स्वस्थ रखना सबकी जिम्मेदारी है। इस बारे में पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के बयान की भी चर्चा है। मुखर्जी ने दिल्ली में एक कार्यक्रम में कहा कि सहमति लोकतंत्र की जीवनदायिनी है। लोकतंत्र सुनने, विचार करने, चर्चा करने, बहस करने, यहां तक कि असहमति रखने पर पनपता है। आत्मसंतुष्टी तानाशाही प्रवृत्ति को जड़ जमाने में सक्षम बनाती है। उन्होंने कहा कि भारत का लोकतंत्र हर बार खरा उतरा है। पिछले कुछ महीनों में बड़ी संख्या में युवा अपने विचार व्यक्त करने के लिए सड़कों पर आए हैं। मुखर्जी का यह बयान ऐसे समय आया है जब देश भर में लोग नागरिकता कानून, एनआरसी और एनपीआर के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं। साथ ही यह आरोप लगा रहे हैं कि बीजेपी के नेतृत्व वाली सरकार संविधान और लोकतंत्र पर हमला कर रही है। जामिला मिल्लिया इसलामिया के छात्रों के ऐसे ही प्रदर्शन के दौरान उनके खिलाफ पुलिस की कार्रवाई की आलोचना हुई है। विपक्षी दलों ने भी आरोप लगाया कि सरकार देश के भविष्य छात्रों को दरकिनार कर रही है और उनके खिलाफ सख्ती से पेश आ रही है। बता दें कि गृह मंत्री अमित शाह कई बार कह चुके हैं कि नागरिकता कानून से पीछे हटने का सवाल ही नहीं है और यह जारी रहेगा।
इतना ही नहीं, कभी एनडीए की घटक रही शिवसेना ने भी कहा कि विरोध के स्वरों को दबाने के प्रयास हो रहे हैं और यही एक वजह है कि भारत 2019 लोकतंत्र सूचकांक की वैश्विक रैंकिंग में 10 स्थान लुढ़क गया है। शिवसेना के मुखपत्र सामना में प्रकाशित संपादकीय में कहा गया कि अर्थव्यवस्था में नरमी से असंतोष तथा अस्थिरता बढ़ रही है और यह देश में बने हालात से जाहिर है। द इकोनॉमिस्ट इंटेलीजेंस यूनिट (ईआईयू) द्वारा 2019 के लिए लोकतंत्र सूचकांक की वैश्विक सूची में भारत 10 स्थान लुढ़क कर 51वें स्थान पर आ गया है। संस्था ने इस गिरावट की मुख्य वजह देश में नागरिक स्वतंत्रता का क्षरण बताया है। अखबार ने कहा कि अनुच्छेद 370 के अधिकतर प्रावधानों को खत्म करने, नया नागरिकता कानून (सीएए) तथा प्रस्तावित एनआरसी के खिलाफ प्रदर्शन हुए। बीते एक साल से यहां आंदोलन चल रहे हैं। इसमें कहा गया कि प्रदर्शन और विरोध के स्वरों को दबाने के प्रयास हुए। जिन्होंने जेएनयू के छात्रों के प्रति सहानुभूति दिखाई उन्हीं पर जांच बिठाकर उन्हें ही आरोपी की तरह दिखाया गया। यही वजह है कि भारत लोकतंत्र सूचकांक में फिसल कर 51वें पायदान पर पहुंच गया। संपादकीय में कहा गया कि अगर सरकार इस रिपोर्ट को खारिज भी कर देती है तो क्या सत्तारूढ़ दल के पास इसका कोई जवाब है कि आखिर क्यों देश आर्थिक मोर्चे से लेकर लोकतंत्रिक मोर्चे पर फिसल रहा है। सरकार को अगर ऐसा लगता है कि देश का प्रदर्शन (आर्थिक मोर्चे पर) अच्छा है तो फिर वह आरबीआई से पैसा क्यों मांग रही है।
आपको बता दें कि इकोनॉमिस्ट इंटेलिजेंस यूनिट (ईआईयू) की तरफ से जारी वैश्विक रैंकिंग के मुताबिक शून्य से 10 के पैमाने पर भारत का कुल स्कोर 2018 के 7.23 के मुकाबले में 2019 में 6.90 रह गया। 2006 में लोकतंत्र सूचकांक की शुरूआत के बाद भारत का यह अब तक सबसे खराब स्कोर है। इस सूचकांक के मुताबिक 2019 में नॉर्वे 9.87 स्कोर के साथ पहले पायदान पर रहा। यह वैश्विक सूची 165 स्वतंत्र देशों और दो क्षेत्रों में लोकतंत्र की मौजूदा स्थिति का हाल बताती है। ईआईयू की रिपोर्ट के मुताबिक भारत की रैकिंग में गिरावट का मुख्य कारण देश में नागरिक स्वतंत्रता में कटौती है। ईआईयू ने भारत को कम स्कोर देने का कारण बताया कि भारत सरकार ने जम्मू-कश्मीर से दो महत्वपूर्ण अनुच्छेद हटाकर उससे विशेष राज्य का दर्जा छीना और उसे केंद्र शासित प्रदेश बना दिया। इस फैसले के पहले सरकार ने वहां सेना की भारी तैनाती की, कई पाबंदियां लगाईं और स्थानीय नेताओं को नजरबंद किया गया। वहां इंटरनेट पर रोक लगाई गई। साथ ही रिपोर्ट ने कथित विवादित एनआरसी पर कहा कि असम में एनआरसी लागू होने से करीब 19 लाख लोग अंतिम सूची से बाहर हो गए जिनमें बड़ी संख्या में मुसलमान हैं। नागरिकता संशोधन कानून से देश में बड़ी संख्या में मुसलमान नाराज हैं। सांप्रदायिक तनाव बढ़ा है और कई बड़े शहरों में इस कानून के खिलाफ विरोध हो रहे हैं।
इस सूचकांक पर तृणमूल कांग्रेस के सांसद डेरेक ओ ब्रायन ने कहा कि प्रधानमंत्री और गृह मंत्री देश में जहर फैला रहे हैं। वे संसद जैसी प्रतिष्ठित संस्था को खत्म करने की धुन में हैं। असहमति के सभी रूपों का गला घोंटा जा रहा है। सरकार छात्रों की आवाज दबा रही है। भारत के विचार को खत्म किया जा रहा है। देश के छात्र और युवा गुस्से में हैं और जब यह होता है तो आपको पता होना चाहिए कि सरकार गंभीर संकट में है। बीजेपी कश्मीर से अनुच्छेद 370 और 35ए के हटाने का बचाव करती आई है और कहती है कि 370 हटने से कश्मीर का विकास होगा। बीजेपी नेता सायंतन बसु कहते हैं कि कुछ पश्चिमी संगठन इस तरह की समीक्षा करते रहते हैं। उसकी पारदर्शिता और मान्यता को लेकर सवाल उठ सकते हैं। इस रिपोर्ट में हमने पाया कि स्कोर कम देने का कारण कश्मीर को बताया गया है लेकिन हमें यह याद रखना चाहिए कि कश्मीर में 45 हजार लोग आतंकवाद के शिकार हो चुके हैं। सरकार ने वहां माहौल को सामान्य करने के लिए कई कदम उठाए हैं। रिपोर्ट में कश्मीर का मुद्दा उठाना शर्मनाक बात है। कश्मीर में माहौल सामान्य हो, इसलिए सरकार यह कदम उठा रही है। कश्मीर में एक महीने के लिए सख्त कदम उठाए गए थे और उससे स्थिति सामान्य हुई है और लगातार हालात ठीक हो रहे हैं। अगर सरकार देश में किसी भी जगह लोकतांत्रिक आंदोलनों का दमन कर रही है तो आप इसका उदाहरण दीजिए।
खैर, पक्ष-विपक्ष द्वारा जो भी तर्क दिए जाएं, लेकिन लोकतंत्र को समृद्ध बनाने की दिशा में कदम उठाया जाना चाहिए। इकोनॉमिस्ट इंटेलिजेंस यूनिट (ईआईयू) का यह सूचकांक पांच श्रेणियों पर आधारित है। इसमें चुनाव प्रक्रिया और बहुलतावाद, सरकार का कामकाज, राजनीतिक भागीदारी, राजनीतिक संस्कृति और नागरिक स्वतंत्रता है। इनके कुल अंकों के आधार पर देशों को चार प्रकार के शासन में वर्गीकृत किया जाता है। पूर्ण लोकतंत्र 8 से ज्यादा अंक हासिल करने वाले, त्रुटिपूर्ण लोकतंत्र 6 से ज्यादा लेकिन 8 या 8 से कम अंक वाले, संकर शासन 4 से ज्यादा लेकिन 6 या 6 से कम अंक हासिल करने वाले और निरंकुश शासन 4 या उससे कम अंक वाले हैं। भारत को त्रुटिपूर्ण लोकतंत्र में शामिल किया गया है। वहीं पाकिस्तान की इस सूचकांक में 4.25 स्कोर के साथ 108वें स्थान पर है। चीन 2.26 स्कोर के साथ 153वें स्थान पर है जबकि बांग्लादेश 80वें और नेपाल 92वें स्थान पर है। उत्तर कोरिया 167वें स्थान के साथ सबसे नीचे पायदान पर है। बहरहाल, यह कह सकते हैं कि भारत के लिए यह रिपोर्ट ठीक नहीं है। इसे दुरुस्त करने के लिए हर दृष्टिकोण से पहल किया जाना चाहिए।
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