नई दिल्ली। अयोध्या के राम जन्मभूमि मामले में सुप्रीम कोर्ट रोज सुनवाई कर रहा है। पहले इस मामले को निपटाने के लिए मध्यस्था को प्राथमिकता दी गई थी। लेकिन मध्यस्थता से किसी तरह का हल नहीं निकल सका जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने कहा था हम डे टू डे हियरिंग करेंगे। शुक्रवार को भी अयोध्या विवादित भूमि पर सुनवाई की गई। आज लगातार सातवें दिन इस पर सुनवाई जारी रही। प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ में न्यायमूर्ति एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति धनन्जय वाई चन्द्रचूड, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर शामिल हैं।
राम लला विराजमान की तरफ से पक्ष रख रहे वकील ने बताया कि मस्जिद के अंदर देवताओं की आकृतियां मिली हैं। उन्होंने यह भी कहा कि मुसलमानों ने अयोध्या के विवादित स्थल पर नमाज अता की। इसका मतलब ये नहीं है कि उस पर उनका अधिकार हो जाता है। सीएस वैद्यनाथन को पांच सदस्यीय सुप्रीम कोर्ट के संवैधानिक पीठ से कहा- इसलिए क्योंकि गलियों में नमाज अता की जाती है, इसका मतलब ये नहीं है कि उस पर उनका अधिकार हो जाए। प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ से ‘राम लला विराजमान की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता सी एस वैद्यनाथन ने अपनी दलीलों के समर्थन में विवादित स्थल का निरीक्षण करने के लिये अदालत द्वारा नियुक्त कमिश्नर की रिपोर्ट के अंश पढ़े।
संविधान पीठ से वैद्यनाथन ने कहा कि अदालत के कमिश्नर ने 16 अप्रैल, 1950 को विवादित स्थल का निरीक्षण किया था और उन्होंने वहां भगवान शिव की आकृति वाले स्तंभों की उपस्थिति का वर्णन अपनी रिपोर्ट में किया था। वैद्यनाथन ने कहा कि मस्जिद के खंबों पर नहीं, बल्कि मंदिरों के स्तंभों पर ही देवी देवताओं की आकृतियां मिलती हैं। उन्होंने 1950 की निरीक्षण रिपोर्ट के साथ स्तंभों पर उकेरी गयी आकृतियों के वर्णन के साथ अयोध्या में मिला एक नक्शा भी पीठ को सौंपा।
उन्होने कहा कि इन तथ्यों से पता चलता है कि यह हिन्दुओं के लिये धार्मिक रूप से एक पवित्र स्थल था। वैद्यनाथन ने ढांचे के भीतर देवाओं के तस्वीरों का एक एलबम भी पीठ को सौंपा और कहा कि मस्जिदों में इस तरह के चित्र नहीं होते हैं। शीर्ष अदालत इस समय अयोध्या में 2.77 एकड़ विवादित भूमि के मालिकाना हक के मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के सितंबर, 2010 के फैसले के खिलाफ दायर अपीलों पर सुनवाई कर रही है।