एक धर्मनिरपेक्ष गणतंत्र में धार्मिक स्थल बनवाना सरकार का काम नहीं है। फिर भी यदि उस स्थल से राष्ट्रीय स्वाभिमान जुड़ा हुआ है तो सरकार को अपने ख़ज़ाने से वह स्थल बनाना चाहिए किंतु पब्लिक के चंदे से नहीं। लेकिन अयोध्या में राम लला मंदिर को भारतीय जनता पार्टी ने अपना मुद्दा बनाया, इसी के बूते वह चुनाव जीती और मंदिर बनाने के लिए कोर्ट में लड़ी। वहाँ भी उसे जीत मिली। इसके बाद श्री राम जन्मभूमि तीर्थ ट्रस्ट बना। राम मंदिर निर्माण के नाम पर पब्लिक से करोड़ों रुपए उगाहे गए और इसके बाद ज़मीन की ख़रीद में घोटाला हो गया। दो करोड़ की ज़मीन का सौदा साढ़े 18 करोड़ में हुआ। मज़े की बात यह ट्रस्ट सरकार ने बनाया था और उसमें भाजपा और विश्व हिंदू परिषद के लोग हैं। ज़ाहिर है इस घोटाले की आँच सरकार पर भी आएगी। ख़ास कर उत्तर प्रदेश सरकार के लिए मुसीबत और बढ़ गई है, क्योंकि फ़रवरी 2022 में वहाँ विधानसभा चुनाव होने हैं।
आम आदमी पार्टी (आप) के राज्यसभा सदस्य संजय सिंह ने आरोप लगाया है कि 18 मार्च 2021 को जिस ज़मीन का सौदा दो करोड़ रुपयों में हुआ, वही ज़मीन कुल पाँच मिनट बाद ट्रस्ट ने साढ़े 18 करोड़ में ख़रीदी। यह तो चमत्कार हो गया कि महज़ कुछ ही मिनट में ज़मीन के दाम 9 गुना बढ़ जाएँ। बैनामे और रजिस्ट्री में एक ही गवाह हैं। 18 मार्च, 2021 को बाबा हरिदास के परिवार ने सुल्तान अंसारी और रवि मोहन तिवारी के नाम ज़मीन दो करोड़ में बेची। उसके दस मिनट बाद सुल्तान अंसारी और रवि मोहन तिवारी ने राममंदिर निर्माण के लिए बने ट्रस्ट को 18.5 करोड़ में रजिस्टर्ड एग्रीमेंट द्वारा ज़मीन बेच दी।
संजय सिंह के अनुसार 1,2080 वर्ग मीटर, यानी 1.208 हेक्टेयर में फैली एक ज़मीन, मौज़ा बागबी, हवेली अवध तहसील, सदर अयोध्या में है। जिसका गाटा संख्या 243,244 एवं 246 है। इसकी क़ीमत 5.79 करोड़ रुपये (क्षेत्र के सर्कल रेट के अनुसार) है। 18 मार्च 2021 को शाम 7 बज कर 10 बजे इस ज़मीन को 2 करोड़ में बेच दिया गया। ज़मीन का सौदा कुसुम और ऋषि पाठक और रवि मोहन तिवारी और सुल्तान अंसारी के बीच हुआ। इसी तारीख को 18 मार्च 2021 को ठीक 5 मिनट बाद शाम सवा सात बजे बजे इस जमीन को 18.5 करोड़ रुपये में ट्रस्ट द्वारा राम मंदिर के लिए ख़रीद लिया गया। उत्तर प्रदेश के आप के प्रभारी संजय सिंह ने दावा किया कि दोनों लेन–देन ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय के इशारे पर हुए। वहीं सपा के पूर्व विधायक पवन पांडेय ने भी मंदिर के निर्माण के लिए एकत्र किए गए धन में गबन का आरोप ट्रस्ट पर लगाया है। दिलचस्प बात यह है कि कि दोनों बार बिक्री समझौतों में ऋषिकेश उपाध्याय, मेयर अयोध्या और ट्रस्ट के ट्रस्टी अनिल मिश्रा गवाह हैं। उन्होंने कहा कि इसमें से 18.5 करोड़ रुपये की राशि में 17 करोड़ रुपये भुगतान आरटीजीएस के थ्रू हुआ। इसके अलावा यह भी दिलचस्प बात है की, रजिस्ट्री के लिए ट्रस्ट ने स्टांप पेपर शाम पाँच बज कर 11 मिनट पर ख़रीदे, जबकि तिवारी और अंसारी ने 10-11 मिनट बाद पाँच बज कर 12 मिनट पर ख़रीदे। संजय सिंह का कहना है कि “भारत सरकार को सीबीआई और प्रवर्तन निदेशालय द्वारा इस मामले की जांच करानी चाहिए।” श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय ने इस पूरे आरोप पर जो बयान दिया, वह बहुत ही हास्यास्पद है। उन्होंने कहा, “मैं पूरे मामले का अध्ययन करने के बाद गबन के आरोपों पर बोलूंगा।” उन्होंने कहा, “हम पिछले 100 वर्षों से आरोपों का सामना कर रहे हैं, हम पर महात्मा गांधी की हत्या का भी आरोप लगाया गया।” चंपत राय विहिप के उपाध्यक्ष भी हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने इस विवादित परिसर के बारे में 9 नवंबर 2019 को एक फ़ैसला सुनाया था। फ़ैसले के अनुसार विवादित भूमि (2.77 एकड़) को एक ट्रस्ट को सौंपने का आदेश हुआ। इसी के लिए भारत सरकार द्वारा श्री राम जन्मभूमि, ट्रस्ट बना। मंदिर निर्माण की ज़िम्मेदारी इस ट्रस्ट को दी गई। इसी के साथ कोर्ट ने यह भी आदेश दिया कि सरकार उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड को भी वैकल्पिक 5 एकड़ जमीन दे। जहां पर इस परिसर में पहले से स्थापित बाबरी मस्जिद के बदले एक नई मस्जिद का निर्माण क़राया जा सके। यहाँ की बाबरी मस्जिद के बारे हिंदुओं का आरोप था, कि इसे 1528 में बाबर के सेनापति मीर बाक़ी ने यहाँ पर पहले से बने राम मंदिर को तोड़ कर बनाई थी। यह विवाद क़रीब दो सौ वर्षों से चला आ रहा था। 6 दिसंबर 1992 को यह मस्जिद उग्र कारसेवकों ने ध्वस्त कर दी।
चंपतराय ने पिछले दिनों कहा था -“शिकायत तब करनी चाहिए थी जब सोनिया गांधी राज कर रहीं थीं, तब वो हमारे ख़िलाफ़ एक जांच बिठा सकती थीं। आज करने का कोई फ़ायदा नहीं है।” अपनी सफाई में वे कहते हैं कि 9 नवम्बर, 2019 को श्रीराम जन्मभूमि पर सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय आने के पश्चात् अयोध्या में भूमि खरीदने के लिए देश के असंख्य लोग आने लगे, उत्तर प्रदेश सरकार अयोध्या के सर्वांगीण विकास के लिए बड़ी मात्रा में भूमि खरीद रही है, इस कारण अयोध्या में एकाएक जमीनों के दाम बढ़ गये। जिस भूखण्ड पर अखबारी चर्चा चलाई जा रही है वह भूखण्ड रेलवे स्टेशन के पास बहुत प्रमुख स्थान है।
इससे पूर्व भी राम मंदिर के लिए आने वाले चंदे के बारे में जब जब सवाल किए गए हैं श्रीराम जन्मभूमि न्यास के अध्यक्ष नृत्य गोपाल दास कहते रहे हैं, “कितना पैसा आया, कितना नहीं आया, हमें नहीं मालूम, हमें ना पैसा लेना है ना देना है, हिसाब क्या लेना है। पैसे का हिसाब कारसेवक पुरम वाले ही रखते हैं। मेरा पैसे से कोई मतलब नहीं हैं।” महंत नृत्य गोपाल दास कहते हैं, “मेरे पास मंदिर का एक पैसा नहीं है, ना लेना है ना देना है, हमें मगन रहना है। हमें पैसों से मतलब नहीं है। मंदिर जनता और धर्माचार्यों के सहयोग से बनेगा।”
वीएचपी के कुछ नेता कई बार कुछ आँकड़ा बता देते हैं लेकिन उसका कोई आधार नहीं होता है। अशोक सिंघल और प्रवीण तोगड़िया जब ज़ोर–शोर से राम मंदिर आंदोलन चला रहे थे, उस दौरान जब भी उनसे चंदे के बारे में पूछा गया, उन्होंने नाराज़गी ही ज़ाहिर की। अब विश्व हिंदू परिषद को अपने खातों के बारे में जानकारी सार्वजनिक करनी चाहिए, पारदर्शिता तो यही होती है। हाल के सालों में निर्मोही अखाड़े और हिंदू महासभा से जुड़े नेताओं ने श्रीराम जन्मभूमि न्यास को मिलने वाले चंदे पर सवाल उठाए हैं और जाँच की माँग की है। इस पर चंपतराय कहते हैं, “जिन लोगों को शिकायत है, उन्हें आयकर विभाग में शिकायत करनी चाहिए और जाँच की माँग करनी चाहिए। जो लोग हमसे हिसाब–किताब मांग रहे हैं, ये पैसा उनका नहीं है, ये राम का पैसा है।”
उधर भ्रष्टाचार के आरोपों पर अयोध्या के हनुमानगढ़ी के महंत राजू दास और रामलला के प्रधान पुजारी आचार्य सत्येंद्र दास ने भी अपना विरोध दर्ज कराया है। आचार्य सत्येंद्र दास ने कहा कि राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट पर लगा आरोप निराधार है। उन्होंने कहा कि यह संभव नहीं है. यह राम भक्तों के द्वारा दान किए गए पैसे का अपमान है। अगर आरोप निराधार निकलते हैं तो आरोप लगाने वाले लोगों पर मुकदमा किया जाना चाहिए। हनुमानगढ़ी के महंत राजू दास ने कहा कि इस पूरे मामले की उच्चस्तरीय जांच होनी चाहिए। उन्होंने आम आदमी पार्टी के नेता संजय सिंह पर हमला बोलते हुए कहा कि अगर इस मामले में आरोप गलत निकले तो 50 करोड़ रुपए के मानहानि का मुकदमा भी आम आदमी पार्टी के नेता संजय सिंह पर करेंगे। साथ ही उन्होंने कहा कि कोई दोषी मिलता है तो उन दोषियों के खिलाफ भी कठोर कार्रवाई होनी चाहिए। एक बात यह भी पता चली है कि संबंधित भूमि का चार मार्च 2011 को यानी 10 साल पूर्व ही मो. इरफान, हरिदास एवं कुसुम पाठक ने दो करोड़ में रजिस्टर्ड एग्रीमेंट कराया था। तीन साल बाद इस एग्रीमेंट का नवीनीकरण भी कराया गया। यह भूमि 2017 में हरिदास एवं कुसुम पाठक ने भू स्वामी नूर आलम, महफूज आलम एवं जावेद आलम से बैनामा करा ली और हरिदास एवं कुसुम पाठक से यह भूमि 17 सितंबर 2019 को रविमोहन तिवारी, सुल्तान अंसारी आदि आठ लोगों ने एग्रीमेंट करा ली और रविमोहन एवं सुल्तान अंसारी ने ही 18 मार्च को यह भूमि बैनामा करा ली। इस तरह यह भूमि विवाद अब सियासत का खेल बनता जा रहा है।
कुछ सूत्रों से यह भी पता चला है कि अयोध्या के बाग बिलैसी में स्थित 180 बिस्वा (12,080 वर्ग मीटर) जमीन हरीश पाठक और कुसुम पाठक की थी। इसे उन्होंने सुल्तान अंसारी, रवि मोहन तिवारी, इच्छा राम, मनीष कुमार, रवींद्र कुमार, बलराम यादव और अन्य तीन के नाम 2019 में रजिस्टर्ड एग्रीमेंट कर दिया था। इस जमीन का सौदा 26.50 करोड़ रुपये में तय हुआ। इसकी सरकारी मालियत करीब 11 करोड़ रुपये आंकी गई थी। 2.80 करोड़ रुपये हरीश पाठक और कुसुम पाठक के खाते में ट्रांसफर कर 80 बिस्वा जमीन की रजिस्ट्री कराई गई। बाकी 100 बिस्वा जमीन एग्रीमेंट धारकों ने अपनी सहमति से दो लोगों के नाम लिख दिया, जिनसे श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट ने 18.50 करोड़ में रजिस्टर्ड एग्रीमेंट करवा लिया है। कुल मिला कर आरोप–प्रत्यारोपों का सिलसिला जारी है। अभी तक कोई भी सक्षम अधिकारी इस संदर्भ में आधिकारिक बयान नहीं दे रहा है। लेकिन चुनावी माहौल को देखते हुए विपक्ष भाजपा सरकार पर आक्रामक है। विपक्ष माहौल बना रहा है कि उत्तर प्रदेश में भाजपा राम मंदिर चंदा घोटाले में घिर जाए। इससे जो उसका कोर वोट बैंक वह उससे छिटक जाए। लेकिन पुख़्ता तौर पर संजय सिंह एवं पवन पांडेय भी कोई बात नहीं कह पा रहे।
इस प्रकरण के सामने आने के बाद उत्तर प्रदेश सरकार ने एक अजीबो–गरीब फ़ैसला किया है कि भविष्य में ज़िलाधिकारी भू–सम्पत्तियों के लिए स्टाम्प शुल्क का निर्धारण करेंगे। एक तरह से वह पूरे मामले को महज़ स्टाम्प शुल्क की चोरी से देख रही है। किंतु असली सवाल अपनी जगह है कि यह एक पूर्व नियोजित खेल था। अन्यथा महज़ पाँच मिनट के अंतराल में भूमि इतनी महँगी कैसे हो गई? यह कैसे पचेगा कि पाँच मिनट पहले जो ज़मीन दो करोड़ में बिकी उसकी पुनर्ख़रीद साढ़े 18 करोड़ में कैसे हुई। सच बात तो यह है कि इस ख़रीद–फ़रोख़्त में कई तरह के घोटाले हुए। उत्तर प्रदेश में शहरी आवासीय भूमि का एक सर्किल रेट होता है, जिसे डीएम सर्किल रेट कहते हैं। इसके अनुसार ज़मीन की रजिस्ट्री के लिए इसी सर्किल रेट के आधार पर स्टाम्प पेपर ख़रीदे जाएँगे। भले ही ज़मीन कम क़ीमत पर बिके या अधिक क़ीमत पर। सूत्रों के अनुसार 18 मार्च 2021 को जो ज़मीन दो करोड़ में बिकी, उसका सर्किल रेट 5,79,84000 रुपए था। इसलिए इसके लिए 40,56,900 रुपए के स्टाम्प पेपर ख़रीदे गए थे किंतु उसी दिन जब यह साढ़े 18 करोड़ रुपए में बिकी तब स्टाम्प 1,29,50000 रुपए के लगे। तब इस मामले में स्टाम्प चोरी का भी मामला बनाता है। और तिवारी व अंसारी पर मुक़दमा दर्ज होना चाहिए। लेकिन शासन ने डीएम की निगरानी में स्टाम्प शुल्क की बिक्री डाल कर खानापूरी कर ली है। अब अनावश्यक विलम्ब हुआ करेगा।
बाबर हिंदुस्तान में 1526 में आया था। उस समय दिल्ली में सुल्तान इब्राहिम लोदी का शासन था। उसने पानीपत की लड़ाई में इब्राहिम लोदी को हराया और दिल्ली पर क़ब्ज़ा कर लिया। इसके बाद वह आगरा, इटावा होते हुए अवध की तरफ़ चला गया। बाबर स्वयं तो अयोध्या नहीं गया था किंतु उसका सेनापति अयोध्या पहुँचा। कहा जाता है कि वहाँ उसने 1528 में एक मस्जिद बनवाई, जिसका नाम उसने बाबरी मस्जिद रखा। यह बाबर की हिंदुस्तान जीत के जश्न के तौर पर बनी। लेकिन बाबरनामा में इसका कोई ज़िक्र नहीं है न ही आइन–ए–अकबरी में। उस समय रामचरित मानस लिखने वाले तुलसीदास ने भी किसी मस्जिद अथवा मंदिर का ज़िक्र नहीं किया है। लेकिन बाद में यहाँ मस्जिद बनी क्योंकि 1717 में मुग़ल दरबार के एक हिंदू राजा जय सिंह ने मस्जिद के आसपास की ज़मीन ख़रीद ली। इसी ज़मीन पर चबूतरा बना। इसी चबूतरे पर रामलला की पूजा होने लगी। कहा गया कि राम जी की छठी इसी भवन में मानी थी। 1813–14 में ईस्ट इंडिया कम्पनी के एक सर्वेयर फ़्रांसिस बुचानन ने कहा कि औरंगज़ेब ने कई मंदिरों को तोड़ कई मस्जिदें बनवाई थीं और यहाँ एक राम मंदिर था, उसे ध्वस्त कर यह मस्जिद बनी। बुचानन के दावे के बाद एक ईसाई पादरी ने भी कहा, कि राम का जन्म इसी स्थान पर हुआ था। पत्थरों से यह पता चला है। अंग्रेजों ने इसको तूल दिया और यहाँ कई बार झगड़े भी हुए। 1833, 1853 में कई बार इस मस्जिद को लेकर खूनी संघर्ष हुए। लेकिन अवध के नवाबों ने सख़्ती से इन झगड़ों को दबा दिया।
लगभग 150 साल पुराने अयोध्या मंदिर–मस्जिद विवाद पर 9 नवम्बर 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुना दिया। चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अगुआई वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से यह फैसला सुनाया। इसके तहत अयोध्या की 2.77 एकड़ की पूरी विवादित जमीन राम मंदिर निर्माण के लिए दे दी। शीर्ष अदालत ने कहा कि मंदिर निर्माण के लिए 3 महीने में ट्रस्ट बने और इसकी योजना तैयार की जाए। चीफ जस्टिस ने मस्जिद बनाने के लिए मुस्लिम पक्ष को 5 एकड़ वैकल्पिक जमीन दिए जाने का फैसला सुनाया, जो कि विवादित जमीन की करीब दोगुना है। चीफ जस्टिस ने कहा कि ढहाया गया ढांचा ही भगवान राम का जन्मस्थान है और हिंदुओं की यह आस्था निर्विवादित है। इस तरह देश के इतिहास के सबसे अहम और एक सदी से ज्यादा पुराने विवाद का अंत कर दिया। चीफ जस्टिस गोगोई, जस्टिस एसए बोबोडे, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण, जस्टिस एस अब्दुल नजीर की पीठ ने स्पष्ट किया कि मंदिर को अहम स्थान पर ही बनाया जाए। रामलला विराजमान को दी गई विवादित जमीन का स्वामित्व केंद्र सरकार के रिसीवर के पास रहेगा।