अंबाला। भारतीय राजनीति के इतिहास में दूसरा लोकसभा चुनाव कई मायनों में महत्वपूर्ण था। इस चुनाव तक जहां एक तरफ कांग्रेस एक बड़ी पार्टी के रूप में मौजूद थी, वहीं कांग्रेस के पास पंडित जवाहर लाल नेहरू जैसा चमत्कारिक व्यक्ति भी था। ऐसा लग रहा था कि कांग्रेस को लंबे समय तक कोई दूसरी पार्टी चुनौती नहीं दे सकती है। पर कहते हैं न कि राजनीति में कुछ भी असंभव नहीं। कुछ ऐसा ही हुआ 1957 के दूसरे लोकसभा चुनाव के वक्त। एक साथ कई क्षेत्रीय राजनीतिक पार्टियों ने भारतीय राजनीति में अपना अस्तित्व तलाशना शुरू किया।
– भारतीय राजनीति में भाषायी विभाजन को लेकर लगाई जाने वाली अटकलें भी समाप्त हो गईं और जाति-संप्रदाय की तरह भाषा के आधार पर बड़े राजनीतिक विभाजन का खतरा समाप्त हो गया।
– इस चुनाव की सबसे बड़ी खासियत थी कि यह 1956 में भाषायी आधार पर हुए राज्यों के पुनर्गठन के बाद लोकसभा का पहला आम चुनाव था।
– 1952 के आम चुनाव के बाद आचार्य जेबी कृपलानी की किसान मजदूर प्रजा पार्टी (केएमपीपी) और जयप्रकाश-लोहिया की सोशलिस्ट पार्टी के विलय से प्रजा सोशलिस्ट पार्टी बनी थी, लेकिन 1955 आते-आते उसका विभाजन हो गया।
– डॉ लोहिया और उनके समर्थकों ने अपनी अलग सोशलिस्ट पार्टी बना ली थी। जनसंघ का प्रभाव क्षेत्र सीमित था। उसके संस्थापक और सबसे बड़े नेता डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी का देहांत हो चुका था।
– 1957 में लोकसभा में कुल 494 सीटें थीं। 494 जीते और इतने ही उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई थी। कांग्रेस 490 सीटों पर चुनाव लड़ी और 371 यानी तीन चौथाई से अधिक सीटें जीतने में सफल रही। कांग्रेस के मात्र दो उम्मीदवारों की जमानत जब्त हुई थी।
– कांग्रेस के बाद भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई) दूसरे सबसे बड़े दल के रूप में उभरी लेकिन उसके और कांग्रेस के बीच फासला बहुत ज्यादा था। सीपीआई ने 110 सीटों पर लड़कर 27 पर जीत हासिल की।
– प्रजा सोशलिस्ट पार्टी (पीएसपी) के खाते मे 19 सीटें आई थीं। वह 189 पर चुनाव लड़ी थी जिनमें से 55 पर उसे जमानत गंवानी पड़ी थी।
– इस चुनाव में जनसंघ ने 130 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे, लेकिन जीत उसे महज चार सीटों पर ही मिली। प्राप्त मतों का प्रतिशत तीन ही रहा। उसके 57 प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो गई थी।
– इस चुनाव में कुल 45 महिलाएं चुनाव लड़ी थीं जिनमें से 22 जीती और आठ की जमानत जब्त हो गई।
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क्षेत्रीय दलों की इंट्री
इस चुनाव में करीब 119 सीटों पर क्षेत्रीय दलों ने चुनाव लड़ा था। जिनमें से 31 सीटों पर उनकी जीत हुई और 40 पर जमानत गंवानी पड़ी थी। क्षेत्रीय दलों के खाते में 7.6 प्रतिशत मत गए थे। कुल 1519 उम्मीदवार चुनाव मैदान में थे। 481 निर्दलीय चुनाव मैदान में उतरे थे। इनमे से 42 जीते और 324 को अपनी जमानत गंवानी पड़ी थी। निर्दलीयों को कुल 19 प्रतिशत वोट मिले थे। भले ही इस चुनाव में क्षेत्रीय दलों ने कुछ खास प्रदर्शन नहीं किया, लेकिन इन दलों के प्रवेश ने एक बात स्पष्ट कर दी थी कि आने वाले समय में राजनीति में प्रतिद्वंदिता और बढ़ेगी।
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