The colors of textile industry flashed: वस्त्रोद्योग के रंग उड़े

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रेडिमेड गार्मेंट के एशिया के सबसे बड़े थोक बाजार के नाम से मशहूर अम्बाला की दुकानें व फैक्टरियां अभी पूरी तरह से नहीं खुली हैं। और आगे खुलने के बाद भी पहले की तरह काम-काज जल्द पटरी पर लौटने की उम्मीद कम है। मजदूर और कारीगर अपने घर लौट रहे हैं। कपड़ा उद्योग से जुड़े कारोबारियों का कहना है कि कोरोना के चलते उनके सामने श्रम और पूंजी का संकट खड़ा हो गया है। भारत का कपड़ा उद्योग कृषि के बाद सबसे ज्यादा श्रमिकों को रोजगार देने वाले उद्योग में शुमार है, जिसमें प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से 10 करोड़ लोगों को रोजगार मिलता है।कोरोनावायरस के संक्रमण की कड़ी को तोड़ने के प्रभावी उपाय के तौर पर केंद्र सरकार ने हालांकि लॉकडाउन के दौरान कुछ शर्तों के साथ नियंत्रण क्षेत्र के बाहर दुकानों व फैक्टरियों को खोलने की इजाजत दी है। मगर, कपड़ा व परिधान उद्योग में काम-काज सुचारु ढंग से होने की संभावना कम है, क्योंकि कारोबारियों के सामने वित्तीय संकट भी पैदा हो गया है।कपड़ा कारोबारी कहते हैं कि फिर से काम शुरू करने के लिए पूंजी की जरूरत है, क्योंकि पहले बिके माल का पेमेंट आ नहीं रहा और जो कुछ नकदी बची थी वह श्रमिकों की मजदूरी, फैक्टरी का किराया व अन्य जरूरतों में खर्च हो गई। उन्होंने कहा कि अब मजदूरों के घर वापसी के कारण एक और समस्या खड़ी हो गई है कि मजदूर के बिना आगे काम काज तो चल नहीं पाएगा। लॉकडाउन के पहले जो ऑर्डर मिले थे सब कैंसल हो गए हैं और जो पहले का स्टॉक पड़ा है, उसके निकलने की भी गुंजाइश नहीं है, क्योंकि दुकानें बंद हैं। उन्होंने कहा कि वित्तीय संकट गहराता जा रहा है, क्योंकि बैंक का जो कर्ज है उस पर ब्याज लग रहा है और आमदनी ठप है।कपड़ा उद्योग मजदूरों के बिना नहीं चल सकता है, इसलिए मजदूरों के घर वापसी से कपड़ा उद्योग में दोबारा कामकाज पटरी पर लौटना मुश्किल है। वस्त्र एवं परिधान की इस समय न तो घरेलू मांग है और न ही निर्यात मांग, क्योंकि कोरोना के कहर से पूरी दुनिया प्रभावित है। कपड़ा उद्योग इस समय गंभीर वित्तीय संकट में है और जब तक सरकार की ओर से कोई आर्थिक मदद नहीं मिलती है, इस उद्योग में कामकाज पटरी पर नहीं लौट पाएगा। जैसे-जैसे राज्य सरकारों की ओर से अनुमति मिल रही है वैसे-वैसे देश के कुछ हिस्सों में कपड़ा उद्योग में धीरे-धीरे काम शुरू होने की उम्मीद है, जैसे तमिलनाडु में छह मई से इजाजत मिल गई है।

लॉकडाउन से देश में कपड़ा उद्योग पर रोजाना 5,000 करोड़ रुपये का घाटा हो रहा है। भारत के कपड़ा उद्योग का सालाना कारोबार तकरीबन 10 लाख करोड़ रुपये का है, जो इस समय वित्तीय संकट में है, लेकिन कोई मदद करने को तैयार नहीं है।

इस वायरस की वजह से कोल्हापुर सहित पूरे देश के वस्त्र उद्योग को भी प्रभावित कर दिया है। इससे लाखों लोगों के सामने रोजी-रोटी का संकट भी खड़ा हो गया है। चीन से आयात-निर्यात बिल्कुल बंद हो चुका है। सूत का निर्यात बंद हो चुका है। प्रोसेसिंग के लिए आने वाले रंगों की आवक नहीं हो पा रही है, इससे  बाजार में रंगों की कीमतें काफी बढ़ गई हैं। आगामी कुछ दिन और ऐसी ही स्थिति बनी रही तो पहले से मंदी की मार झेल रहा वस्त्र उद्योग अधिक संकट में फंस जाएगा।

ऐसा नहीं है कि यह स्थिति सिर्फ हमारे देश में बनी हुई है, चीन के उद्योग-धंधे भी पूरी तरह ठप पड़े हुए हैं। आयात व निर्यात लगभग बंद है। भारत से सबसे बड़े पैमाने पर कपास का निर्यात चीन को किया जाता है। जनवरी के बाद तो इस निर्यात में और भी अधिक बढ़ोतरी हो जाती है, लेकिन इस समय निर्यात पूरी तरह बंद होने के कारण भारतीय कपास उत्पादक किसानों के सामने भी बड़ा संकट पैदा हो गया है। हालांकि किसानों को नुकसान से बचाने के लिए केंद्र सरकार के निर्देश पर कॉटन कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया ने प्रति क्विंटल कपास 6 हजार रुपए की दर से खरीदा है।
इसी प्रकार वस्त्रोद्योग का प्रमुख केन्द्र कहलाने वाले प्रोसेसिंग व्यवसाय पर भी कोरोना का बुरा असर हुआ है। रंगाई के लिए सभी प्रकार का रंग इत्यादि कच्चा माल चीन से ही आयात किया जाता है। फिलहाल आयात बंद होने से इस कच्चे माल की कीमतों में भारी बढ़ोतरी हो गई है।
इचलकरंजी शहर और आसपास के क्षेत्र में तैयार होने वाला ग्रे कपड़ा अगली प्रक्रिया के लिए राजस्थान के पाली, बालोतरा, जयपुर, जोधपुर और गुजरात के अहमदाबाद आदि स्थानों पर भेजा जाता है। वहां भी कच्चे माल की कीमतों में भारी वृद्धि के कारण प्रोसेसिंग कार्य में समस्या उत्पन्न हो रही है। ऐसे कयास लगाए जा रहे हैं कि यदि इस कोराना वायरस का प्रभाव कम नहीं हुआ तो देश में प्रोसेसिंग कार्य करना संभव नहीं हो सकेगा।
स्थानीय कपड़ा व्यापारियों का कहना है कि सिर्फ कपड़ा तैयार करने से कुछ नहीं होगा। यदि उस कपड़े की प्रोसेसिंग, रंगाई आदि काम नहीं हो पाएगा तो उसे कौन खरीदेगा। उसे बाजार में उचित दाम नहीं मिल पाएगा। अब कपड़ा व्यवसाय से जुड़े लोग भगवान भरोसे बैठे हैं और परिस्थितियों के सामान्य होने का इंतजार कर रहे हैं। जब तक कोरोना का प्रकोप कम नहीं हो जाता तब तक सिर्फ इंतजार के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं है।
वस्त्रोद्योग में सूत निर्यात, कपड़ा आयात, प्रोसेसिंग एवं मशीनों सहित अन्य कार्यों में काम आने वाला कच्चा माल सब चीन से आयात होता है। आयात-निर्यात पर दोनों ही तरफ से फिलहाल रोक लगाई गई है। यह रोक पता नहीं कब तक और रहेगी किसी को नहीं मालूम। इसके साथ ही इस व्यवसाय से जुड़े लाखों लोगों के सामने रोजी-रोटी का भी संकट खड़ा हो गया है।

कपड़ा कारोबारियों की मांग है कि सरकार कच्चे माल की कीमतों में कमी लाए और निर्यात पर लगने वाले कर में कटौती करे। सरकार डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर के ज़रिए किसानों को उसकी फसल का भुगतान करे और बांग्लादेश, श्रीलंका और इंडोनेशिया से आने वाले कच्चे माल के आयात पर रोक लगाए।

2018 के अप्रैल-जून के मुकाबले 2019 के अप्रैल-जून में सिर्फ सूती यार्न के निर्यात में 34 फीसदी की गिरावट आई है। जिसके कारण 350 करोड़ अमेरिकी डॉलर का नुकसान हुआ है। वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने वित्तीय वर्ष 2019-20 में टेक्सटाइल सेक्टर के बजट में कटौती की है। 2018-19 में इस सेक्टर का बजट 6,943.26 करोड़ रुपए था जिसे घटाकर 5831.48 करोड़ रुपए कर दिया गया है.

एक रिपोर्ट के अनुसार 2018 में भारत ने बांग्लादेश से 21 लाख कॉटन बेल्स आयात किए थे जिसके बाद वो भारत को कॉटन आयात करने वाला सबसे बड़ा देश बन गया था। टेक्सटाइल उद्योग का भारत की जीडीपी में 2 फीसदी हिस्सा है और यह भारत से होने वाले निर्यात में 15 फीसदी का योगदान रखता है। भारतीय टेक्सटाइल उद्योग ने वित्त वर्ष 2017-18 में 39.2 अरब अमेरिकी डॉलर का निर्यात किया था। एक रिपोर्ट के अनुसार भारत को अपने कपड़ा उद्योग को बढ़ावा देने के लिए अपने श्रम कानूनों में सुधार की ज़रूरत है। कठोर श्रम कानूनों की वजह से भारत का बाज़ार दूसरे देशों से मुकाबला नहीं कर पा रहा है।

एक तिहाई स्पिनिंग उद्योग बंद होने की कगार पर है। 80 हज़ार करोड़ के मूल्य वाली कॉटन की फसल का इस साल भारतीय बाज़ारों में कोई खरीदार नहीं है। 2016 में केंद्र सरकार ने टेक्सटाइल उद्योग को बढ़ावा देने के लिए 60 हज़ार करोड़ का पैकेज दिया था। तब सरकार का दावा था कि विदेशी निवेश के ज़रिए इस सेक्टर को मज़बूत किया जाएगा और 3 सालों के भीतर 1 करोड़ रोज़गार का सृजन होगा। एक रिपोर्ट के अनुसार 2016 में सरकार के स्पेशल पैकेज देने की योजना पूरी तरह सफल होती नहीं दिख रही है। एक अन्य रिपोर्ट के अनुसार नोटबंदी और जीएसटी के बाद कपड़ा उद्योग की स्थिति काफी खराब हुई है। कपड़ा उद्योग निवेशकों को आकर्षित नहीं कर पा रहा है। टेक्सटाइल सेक्टर में बिक्री में 30-35 प्रतिशत की कमी आई है।