वी-डेम की इस रिपोर्ट के बाद विपक्ष को बड़ा मुद्दा हाथ लग गया है। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष व सांसद राहुल गांधी ने मोदी सरकार पर क़रारा हमला बोलते हुए कहा कि भारत अब लोकतांत्रिक देश नहीं रहा है। राहुल गांधी ने स्वीडन के वी-डेम इंस्टीट्यूट की डेमोक्रेसी रिपोर्ट का हवाला दिया है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र से चुनावी तानाशाह वाले देश में बदल गया है। रिपोर्ट में भारत को हंगरी और तुर्की के साथ रखा गया है। कहा गया है कि देश में लोकतंत्र के कई पहलुओं पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। वी-डेम इंस्टीट्यूट की यह रिपोर्ट ऐसे वक़्त में आई है जब बोलने की आज़ादी पर अंकुश लगाने और असहमति की आवाज़ को देश के ख़िलाफ़ बताने की पुरजोर कोशिशें की जा रही हैं। इंस्टीच्यूट ने आंकड़ों का विश्लेषण करने पर यह निष्कर्ष निकला कि किस तरह अधिनायकवाद शुरू होता है और उसका क्या पैटर्न होता है। रिपोर्ट ने अधिनायकवाद के पैटर्न के बारे में बताया है। इसमें सबसे पहले मीडिया को नियंत्रित किया जाता है और अकादमिक जगत पर नकेल कसी जाती है। इसके साथ ही ध्रुवीकरण बढाने के लिए राजनीतिक विरोधियों से बदतमीजी की जाती है और सरकारी माध्यमों का इस्तेमाल कर दुष्प्रचार किया जाता है। इतना सबकुछ होने के बाद लोकतंत्र की बुनियाद-चुनाव और संस्थाओं पर चोट किया जाता है। इस शोध में पाया गया है कि पिछले 10 साल में दुनिया के अलग-अलग इलाक़ों में लोकतंत्र को कमज़ोर किया गया है। ऐसा दक्षिण एशिया, एशिया प्रशांत, पूर्वी यूरोप और लातिनी अमेरिका में हुआ है। रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत, ब्राजील और तुर्की दुनिया के 10 देशों में है, जहां लोकतंत्र का सर्वाधिक क्षरण हुआ है।
वी-डेम की इस रिपोर्ट से पहले अमेरिकी थिंकटैंक फ्रीडम हाउस की एक रपट में कहा गया था कि दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश अधिनायकवाद में धंसता जा रहा है। इसके लिए दिल्ली दंगों और मुसलमानों के ख़िलाफ़ भीड़ की हिंसा का हवाला दिया गया है। सरकार की आलोचना करने वालों पर राजद्रोह के मुक़दमे और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा लॉकडाउन का यकायक एलान और उसे बेहद सख़्ती से लागू करने की बात भी कही गई है। ‘2021 में विश्व में आज़ादी- लोकतंत्र की घेरेबंदी’ शीर्षक से जारी की गई इस रिपोर्ट में कहा गया था कि ऐसा लगता है कि भारत ने वैश्विक लोकतांत्रिक नेता के रूप में नेतृत्व करने की क्षमता को त्याग दिया है। इस एनजीओ ने 2018, 2019 और 2020 में भारत को ‘आज़ाद’ देशों की सूची में रखा था हालांकि तब भी भारत 77 से गिरकर 71 अंक पर आ गया था लेकिन ताज़ा रिपोर्ट में भारत 100 में से 67 अंक ही हासिल कर सका है और इसे ‘आंशिक आज़ाद’ देश की रैंक दी गई है। एनजीओ ने रिपोर्ट में कहा था कि 2014 के बाद से ही भारत में राजनीतिक अधिकारों और लोगों की आज़ादी के मामले में स्थिति ख़राब हुई है। इसके पीछे मानवाधिकार संगठनों पर बढ़ता दबाव, पढ़े-लिखे लोगों और पत्रकारों को धमकियां मिलने और मुसलमानों पर धार्मिक कट्टरता वाले हमलों की बढ़ती घटनाओं को कारण बताया गया है। इसके अलावा सीएए का विरोध करने वाले प्रदर्शनकारियों और आलोचना करने वाले पत्रकारों को निशाना बनाने को भी इसका कारण बताया गया। हाल ही में मोदी सरकार की इसे लेकर खासी आलोचना हुई कि वह एक टूलकिट से ही डर गई और दिल्ली पुलिस ने 22 साल की पर्यावरण कार्यकर्ता दिशा रवि को टूलकिट बनाने और शेयर करने के आरोप में गिरफ़्तार कर लिया। इसके अलावा पत्रकार मनदीप पूनिया और दलित कार्यकर्ता नवदीप कौर की गिरफ़्तारी को लेकर भी पुलिस और सरकार की खासी आलोचना हुई।
आखिर में यह जानना जरूरी है कि अधिनायकवाद है क्या? दरअसल, अधिनायकवाद एक एसी सोच है जो नागरिकों के जीवन को जबरन नियंत्रित करता है। जहा अधिनायकवाद का साम्राज्य होता है वहां स्वतंत्र विचारों या कार्यों का कोई अधिकार नहीं होता। अधिनायकवाद में दमन की शक्ति होती है। अधिनायकवादी प्रमुख अपनी समझ व विचारों का जनता पर थोपने का काम करते हैं। चाहें वह पब्लिक के खिलाफ ही क्यों न हो। आपको बता दें कि अधिनायकवाद की शुरूआत 20वीं शताब्दी में पहली बार इटली में देखने को मिला था। उसके बाद से इस तरह की सोच धीरे-धीरे विस्तार पाने लगी। अब भारत में भी अधिनायकवाद की चर्चा होने लगी है। अब यह समझने और परखने की जरूरत है कि भारत में अधिनायकवाद की जड़ें कितनी गहरी है। अब सवाल यह है कि यदि भारत में अधिनायकवाद पैर पसारने लगा है तो इसे कैसे रोका जाए। क्योंकि लोकतंत्र में अधिनायकवाद की कोई जगह नहीं होती। यदि अधिनायकवाद ने अपनी जड़ें गहरी जमा लीं तो फिर इसे संभालना मुश्किल हो जाएगा। इसलिए एलर्ट रहने की जरूरत है। देखते हैं कि होता क्या है?