*** || जय श्री राधे || ***
*** महर्षि पाराशर पंचांग ***
*** अथ पंचांगम् ***
****ll जय श्री राधे ll****
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दिनाँक:-23/05/2022, सोमवार
अष्टमी, कृष्ण पक्ष
ज्येष्ठ
“”””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””(समाप्ति काल)
*** दैनिक राशिफल ***
देशे ग्रामे गृहे युद्धे सेवायां व्यवहारके।
नामराशेः प्रधानत्वं जन्मराशिं न चिन्तयेत्।।
विवाहे सर्वमाङ्गल्ये यात्रायां ग्रहगोचरे।
जन्मराशेः प्रधानत्वं नामराशिं न चिन्तयेत ।।
वृष
आज का दिन आपके सांसारिक सुख भोग के साधनों में वृद्धि लेकर आएगा। मेहनत सफल रहेगी। कार्य की प्रशंसा होगी। लाभ के अवसर हाथ आएंगे। ऐश्वर्य के साधन मिलेंगे। विद्यार्थियों को प्रतियोगिता में सफलता मिलेगी। व्यापार अच्छा चलेगा। कार्य निर्णय बहुत शांति से विचार करके करना ही शुभ है। परिवार में सुख शांति का वातावरण बना रहेगा, क्योंकि यदि कोई कलह चल रही थी, तो वह पिताजी की मदद से समाप्त होगी। माता पिता के सहयोग से यदि आप किसी नए कार्य में विनिमय करेंगे, तो उसमें भी आप भरपूर लाभ अवश्य कमाएंगे, लेकिन आप अनावश्यक व्यय को लेकर थोड़ा परेशान रहेंगे, जिन पर नियंत्रण रखने की पूरी कोशिश करेंगे। नौकरी में स्थान परिवर्तन के योग बनते दिख रहे हैं। पारिवारिक जीवन में सरसता बनी रहेगी। नौकर चाकरों का भी आपको भरपूर सुख मिलेगा।
तिथि———– अष्टमी 11:33:47 तक
पक्ष————————- कृष्ण
नक्षत्र——– शतभिषा 22:20:49
योग———— वैधृति 25:03:41
करण———– कौलव 11:33:47
करण———– तैतुल 23:04:40
वार———————– सोमवार
माह————————– ज्येष्ठ
चन्द्र राशि——————- कुम्भ
सूर्य राशि——————– वृषभ
रितु————————- ग्रीष्म
आयन—————— उत्तरायण
संवत्सर———————- नल
संवत्सर (उत्तर)—————– राक्षस
विक्रम संवत—————- 2079
विक्रम संवत (कर्तक)——— 2078
शाका संवत—————- 1944
वृन्दावन
सूर्योदय————— 05:28:01
सूर्यास्त————— 19:04:10
दिन काल————- 13:36:09
रात्री काल————- 10:23:27
चंद्रास्त—————- 12:37:02
चंद्रोदय—————- 25:51:00
लग्न—- वृषभ 7°42′ , 37°42′
सूर्य नक्षत्र—————– कृत्तिका
चन्द्र नक्षत्र—————- शतभिषा
नक्षत्र पाया——————– ताम्र
*** पद, चरण ***
सा—- शतभिषा 10:28:40
सी—- शतभिषा 16:23:37
सू—- शतभिषा 22:20:49
से—- पूर्वाभाद्रपदा 28:20:16
*** ग्रह गोचर ***
ग्रह =राशी , अंश ,नक्षत्र, पद
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सूर्य=वृषभ 07:12 कृतिका , 4 ए
चन्द्र =कुम्भ 10°23 , शतभिषा, 2 सा
बुध =वृषभ 05 ° 07′ कृतिका ‘ 3 उ
शुक्र=मीन 29 °05, रेवती ‘ 4 ची
मंगल=कुम्भ 04°30 ‘ उoभाo’ 1 दू
गुरु=मीन 08°30 ‘ ऊ o भा o, 2 थ
शनि=कुम्भ 00°33 ‘ धनिष्ठा ‘ 3 गु
राहू=(व) मेष 27°50’ कृतिका , 1 अ
केतु=(व) तुला 27°50 विशाखा , 3 ते
*** मुहूर्त प्रकरण ***
राहू काल 07:10 – 08:52 अशुभ
यम घंटा 10:34 – 12:16 अशुभ
गुली काल 13:58 – 15:40 अशुभ
अभिजित 11:49 -12:43 शुभ
दूर मुहूर्त 12:43 – 13:38 अशुभ
दूर मुहूर्त 15:27 – 16:21 अशुभ
पंचक अहोरात्र अशुभ
चोघडिया, दिन
अमृत 05:28 – 07:10 शुभ
काल 07:10 – 08:52 अशुभ
शुभ 08:52 – 10:34 शुभ
रोग 10:34 – 12:16 अशुभ
उद्वेग 12:16 – 13:58 अशुभ
चर 13:58 – 15:40 शुभ
लाभ 15:40 – 17:22 शुभ
अमृत 17:22 – 19:04 शुभ
चोघडिया, रात
चर 19:04 – 20:22 शुभ
रोग 20:22 – 21:40 अशुभ
काल 21:40 – 22:58 अशुभ
लाभ 22:58 – 24:16* शुभ
उद्वेग 24:16* – 25:34* अशुभ
शुभ 25:34* – 26:52* शुभ
अमृत 26:52* – 28:10* शुभ
चर 28:10* – 29:28* शुभ
होरा, दिन
चन्द्र 05:28 – 06:36
शनि 06:36 – 07:44
बृहस्पति 07:44 – 08:52
मंगल 08:52 – 10:00
सूर्य 10:00 – 11:08
शुक्र 11:08 – 12:16
बुध 12:16 – 13:24
चन्द्र 13:24 – 14:32
शनि 14:32 – 15:40
बृहस्पति 15:40 – 16:48
मंगल 16:48 – 17:56
सूर्य 17:56 – 19:04
होरा, रात
शुक्र 19:04 – 19:56
बुध 19:56 – 20:48
चन्द्र 20:48 – 21:40
शनि 21:40 – 22:32
बृहस्पति 22:32 – 23:24
मंगल 23:24 – 24:16
सूर्य 24:16* – 25:08
शुक्र 25:08* – 25:59
बुध 25:59* – 26:52
चन्द्र 26:52* – 27:44
शनि 27:44* – 28:36
बृहस्पति 28:36* – 29:28
*** उदयलग्न प्रवेशकाल ***
वृषभ > 04:14 से 06:12 तक
मिथुन > 06:12 से 08:25 तक
कर्क > 08:25 से 10:42 तक
सिंह > 10:42 से 12:54 तक
कन्या > 12:42 से 15:06 तक
तुला > 15:06 से 17:21 तक
वृश्चिक > 17:21 से 19:42 तक
धनु > 19:42 से 21:42 तक
मकर > 21:42 से 23:28 तक
कुम्भ > 11:28 से 01:01 तक
मीन > 01:01 से 02:31 तक
मेष > 02:31 से 04:14 तक
विभिन्न शहरों का रेखांतर (समय)संस्कार
(लगभग-वास्तविक समय के समीप)
दिल्ली +10मिनट——— जोधपुर -6 मिनट
जयपुर +5 मिनट—— अहमदाबाद-8 मिनट
कोटा +5 मिनट———— मुंबई-7 मिनट
लखनऊ +25 मिनट——–बीकानेर-5 मिनट
कोलकाता +54—–जैसलमेर -15 मिनट
नोट– दिन और रात्रि के चौघड़िया का आरंभ क्रमशः सूर्योदय और सूर्यास्त से होता है।
प्रत्येक चौघड़िए की अवधि डेढ़ घंटा होती है।
चर में चक्र चलाइये , उद्वेगे थलगार ।
शुभ में स्त्री श्रृंगार करे,लाभ में करो व्यापार ॥
रोग में रोगी स्नान करे ,काल करो भण्डार ।
अमृत में काम सभी करो , सहाय करो कर्तार ॥
अर्थात- चर में वाहन,मशीन आदि कार्य करें ।
उद्वेग में भूमि सम्बंधित एवं स्थायी कार्य करें ।
शुभ में स्त्री श्रृंगार ,सगाई व चूड़ा पहनना आदि कार्य करें ।
लाभ में व्यापार करें ।
रोग में जब रोगी रोग मुक्त हो जाय तो स्नान करें ।
काल में धन संग्रह करने पर धन वृद्धि होती है ।
अमृत में सभी शुभ कार्य करें ।
दिशा शूल ज्ञान————-पूर्व
परिहार-: आवश्यकतानुसार यदि यात्रा करनी हो तो घी अथवा काजू खाके यात्रा कर सकते है l
इस मंत्र का उच्चारण करें-:
शीघ्र गौतम गच्छत्वं ग्रामेषु नगरेषु च l
भोजनं वसनं यानं मार्गं मे परिकल्पय: ll
अग्नि वास ज्ञान -:
यात्रा विवाह व्रत गोचरेषु,
चोलोपनिताद्यखिलव्रतेषु ।
दुर्गाविधानेषु सुत प्रसूतौ,
नैवाग्नि चक्रं परिचिन्तनियं ।। महारुद्र व्रतेSमायां ग्रसतेन्द्वर्कास्त राहुणाम्
नित्यनैमित्यके कार्ये अग्निचक्रं न दर्शायेत् ।।
15 + 8 + 2 + 1 = 26 ÷ 4 = 2 शेष
आकाश लोक पर अग्नि वास हवन के लिए अशुभ कारक है l
*** ग्रह मुख आहुति ज्ञान ***
सूर्य नक्षत्र से अगले 3 नक्षत्र गणना के आधार पर क्रमानुसार सूर्य , बुध , शुक्र , शनि , चन्द्र , मंगल , गुरु , राहु केतु आहुति जानें । शुभ ग्रह की आहुति हवनादि कृत्य शुभपद होता है
गुरु ग्रह मुखहुति
शिव वास एवं फल -:
23 + 23 + 5 = 51 ÷ 7 = 2 शेष
गौरि सन्निधौ = शुभ कारक
भद्रा वास एवं फल -:
स्वर्गे भद्रा धनं धान्यं ,पाताले च धनागम:।
मृत्युलोके यदा भद्रा सर्वकार्य विनाशिनी।।
*** विशेष जानकारी ***
* श्री त्रिलोकनाथ अष्टमी (बंगाल)
* गुरु अमरनाथ जयन्ती
* श्री दादूदयाल पुण्य तिथि
* मेला चेनानी माता (राज ०)
*** शुभ विचार ***
उर्व्यां कोऽपि महीधरो लघुतरो दोर्भ्यां धृतो लीलया
तेन त्वांदिवि भूतले च ससतं गोवर्धनी गीयसे ।
त्वां त्रैलोक्यधरं वहामि कुचयोरग्रेण तद् गण्यते
किंवा केशव भाषणेन बहुनापुण्यैर्यशो लभ्यते ।।
।। चा o नी o।।
रुक्मिणी भगवान् से कहती हैं हे केशव! आपने एक छोटे से पहाड को दोनों हाथों से उठा लिया वह इसीलिये स्वर्ग और पृथ्वी दोनों लोकों में गोवर्धनधारी कहे जाने लगे। लेकिन तीनों लोकों को धारण करनेवाले आपको मैं अपने कुचों के अगले भाग से ही उठा लेती हूँ, फिर उसकी कोई गिनती ही नहीं होती। हे नाथ! बहुत कुछ कहने से कोई प्रयोजन नहीं, यही समझ लीजिए कि बडे पुण्य से यश प्राप्त होता है।
*** सुभाषितानि ***
गीता -: दैवासुरसम्पद्विभागयोग अo-16
आढयोऽभिजनवानस्मि कोऽन्योऽस्ति सदृशो मया।,
यक्ष्ये दास्यामि मोदिष्य इत्यज्ञानविमोहिताः॥,
अनेकचित्तविभ्रान्ता मोहजालसमावृताः।,
प्रसक्ताः कामभोगेषु पतन्ति नरकेऽशुचौ॥,
मैं बड़ा धनी और बड़े कुटुम्ब वाला हूँ।, मेरे समान दूसरा कौन है? मैं यज्ञ करूँगा, दान दूँगा और आमोद-प्रमोद करूँगा।, इस प्रकार अज्ञान से मोहित रहने वाले तथा अनेक प्रकार से भ्रमित चित्त वाले मोहरूप जाल से समावृत और विषयभोगों में अत्यन्त आसक्त आसुरलोग महान् अपवित्र नरक में गिरते हैं॥,15-16॥,
*** आपका दिन मंगलमय हो ***
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आचार्य नीरज पाराशर (वृन्दावन)
(व्याकरण,ज्योतिष,एवं पुराणाचार्य)
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