*** || जय श्री राधे || ***
*** महर्षि पाराशर पंचांग ***
*** अथ पंचांगम् ***
****ll जय श्री राधे ll****
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दिनाँक:-19/06/2022, रविवार
षष्ठी, कृष्ण पक्ष,
आषाढ़
“”””””””””””””””””””””””””””””””””””””””(समाप्ति काल)
*** दैनिक राशिफल ***
देशे ग्रामे गृहे युद्धे सेवायां व्यवहारके।
नामराशेः प्रधानत्वं जन्मराशिं न चिन्तयेत्।।
विवाहे सर्वमाङ्गल्ये यात्रायां ग्रहगोचरे।
जन्मराशेः प्रधानत्वं नामराशिं न चिन्तयेत ।।
वृष
आज का दिन आप अपने परिजनों के साथ सुखद समय व्यतीत करेंगे। आंखों का विशेष ध्यान रखें। चोट व रोग से बचाएं। पुराना रोग उभर सकता है। कीमती वस्तुएं संभालकर रखें। वाणी पर नियंत्रण रखें। व्यवसाय की गति धीमी रहेगी। आय बनी रहेगी। नौकरी में कार्यभार रहेगा। थकान महसूस होगी। सहकर्मी सहयोग नहीं करेंगे। चिंता रहेगी। परिवार में आज किसी मांगलिक कार्यक्रम के लिए विचार विमर्श हो सकता है। जीवनसाथी यदि आपको किसी योजना को समझाएं,तो आपको उसे ध्यान से सुनना होगा तभी वह पूरी हो पाएगी। परिवार मे छोटे बच्चे आपके साथ मौज मस्ती करते नजर आएंगे। आपकी कोई मनपसंद इच्छा पूरी होगी,जिसके बाद आप किसी धार्मिक आयोजन पर भी जा सकते हैं। आपको किसी भी कार्य को भाग्य के भरोसे नहीं छोड़ना है। यदि आपने ऐसा किया,तो वह आपके लिए परेशानी खड़ी कर सकता है।
तिथि————- षष्ठी 22:17:48 तक
पक्ष————————- कृष्ण
नक्षत्र———– धनिष्ठा 05:54:47
नक्षत्र——– शतभिषा 28:52:01
योग——— विश्कुम्भ 10:50:18
करण————– गर 11:13:07
करण———– वणिज 22:17:48
वार———————— रविवार
माह———————— आषाढ
चन्द्र राशि——————- कुम्भ
सूर्य राशि——————- मिथुन
रितु————————- ग्रीष्म
आयन—————— उत्तरायण
संवत्सर———————–नल
संवत्सर (उत्तर)—————– राक्षस
विक्रम संवत—————- 2079
विक्रम संवत (कर्तक)——— 2078
शक संवत—————— 1944
वृन्दावन
सूर्योदय————— 05:25:20
सूर्यास्त—————- 19:15:49
दिन काल————- 13:50:29
रात्री काल————- 10:09:41
चंद्रास्त————— 10:26:45
चंद्रोदय—————- 23:51:06
लग्न—- मिथुन 3°33′ , 63°33′
सूर्य नक्षत्र—————– मृगशिरा
चन्द्र नक्षत्र—————— धनिष्ठा
नक्षत्र पाया——————– ताम्र
*** पद, चरण ***
गे—-धनिष्ठा 05:54:47
गो—- शतभिषा 11:35:05
सा—- शतभिषा 17:18:00
सी—- शतभिषा 23:03:38
सू—- शतभिषा 28:52:01
*** ग्रह गोचर ***
ग्रह =राशी , अंश ,नक्षत्र, पद
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सूर्य=मिथुन 03:12 मृगशिरा , 4 की
चन्द्र = कुम्भ 06°23 , धनिष्ठा , 4 गे
बुध =वृषभ 10 ° 07′ रोहिणी ‘ 1 ओ
शुक्र=वृषभ 01°05, कृतिका ‘ 2 ई
मंगल=मीन 24°30 ‘ रेवती ‘ 3 च
गुरु=मीन 11°30 ‘ उ o भा o, 3 झ
शनि=कुम्भ 01°33 ‘ उ o भा o ‘ 3 गु
राहू=(व) मेष 26°0’ भरणी , 4 लो
केतु=(व) तुला 26°30 विशाखा , 2 तू
*** मुहूर्त प्रकरण ***
राहू काल 17:32 – 19:16 अशुभ
यम घंटा 12:21 – 14:04 अशुभ
गुली काल 15:48 – 17: 32अशुभ
अभिजित 11:53 -12:48 शुभ
दूर मुहूर्त 17:25 – 18:20 अशुभ
पंचक अहोरात्र अशुभ
चोघडिया, दिन
उद्वेग 05:25 – 07:09 अशुभ
चर 07:09 – 08:53 शुभ
लाभ 08:53 – 10:37 शुभ
अमृत 10:37 – 12:21 शुभ
काल 12:21 – 14:04 अशुभ
शुभ 14:04 – 15:48 शुभ
रोग 15:48 – 17:32 अशुभ
उद्वेग 17:32 – 19:16 अशुभ
चोघडिया, रात
शुभ 19:16 – 20:32 शुभ
अमृत 20:32 – 21:48 शुभ
चर 21:48 – 23:04 शुभ
रोग 23:04 – 24:21* अशुभ
काल 24:21* – 25:37* अशुभ
लाभ 25:37* – 26:53* शुभ
उद्वेग 26:53* – 28:09* अशुभ
शुभ 28:09* – 29:26* शुभ
होरा, दिन
सूर्य 05:25 – 06:35
शुक्र 06:35 – 07:44
बुध 07:44 – 08:53
चन्द्र 08:53 – 10:02
शनि 10:02 – 11:11
बृहस्पति 11:11 – 12:21
मंगल 12:21 – 13:30
सूर्य 13:30 – 14:39
शुक्र 14:39 – 15:48
बुध 15:48 – 16:57
चन्द्र 16:57 – 18:07
शनि 18:07 – 19:16
होरा, रात
बृहस्पति 19:16 – 20:07
मंगल 20:07 – 20:57
सूर्य 20:57 – 21:48
शुक्र 21:48 – 22:39
बुध 22:39 – 23:30
चन्द्र 23:30 – 24:21
शनि 24:21* – 25:11
बृहस्पति 25:11* – 26:02
मंगल 26:02* – 26:53
सूर्य 26:53* – 27:44
शुक्र 27:44* – 28:35
बुध 28:35* – 29:26
*** उदयलग्न प्रवेशकाल ***
मिथुन > 04:30 से 06:50 तक
कर्क > 06:50 से 09:10 तक
सिंह > 09:10 से 11:14 तक
कन्या > 11:14 से 13:30 तक
तुला > 13:30 से 15:45 तक
वृश्चिक > 15:45 से 18:00 तक
धनु > 18:00 से 20:06 तक
मकर > 20:06 से 21:52 तक
कुम्भ > 21:52 से 23:26 तक
मीन > 23:26 से 00:52 तक
मेष > 00:052 से 02:40 तक
वृषभ > 02:40 से 04:30 तक
विभिन्न शहरों का रेखांतर (समय)संस्कार
(लगभग-वास्तविक समय के समीप)
दिल्ली +10मिनट——— जोधपुर -6 मिनट
जयपुर +5 मिनट—— अहमदाबाद-8 मिनट
कोटा +5 मिनट———— मुंबई-7 मिनट
लखनऊ +25 मिनट——–बीकानेर-5 मिनट
कोलकाता +54—–जैसलमेर -15 मिनट
नोट– दिन और रात्रि के चौघड़िया का आरंभ क्रमशः सूर्योदय और सूर्यास्त से होता है।
प्रत्येक चौघड़िए की अवधि डेढ़ घंटा होती है।
चर में चक्र चलाइये , उद्वेगे थलगार ।
शुभ में स्त्री श्रृंगार करे,लाभ में करो व्यापार ॥
रोग में रोगी स्नान करे ,काल करो भण्डार ।
अमृत में काम सभी करो , सहाय करो कर्तार ॥
अर्थात- चर में वाहन,मशीन आदि कार्य करें ।
उद्वेग में भूमि सम्बंधित एवं स्थायी कार्य करें ।
शुभ में स्त्री श्रृंगार ,सगाई व चूड़ा पहनना आदि कार्य करें ।
लाभ में व्यापार करें ।
रोग में जब रोगी रोग मुक्त हो जाय तो स्नान करें ।
काल में धन संग्रह करने पर धन वृद्धि होती है ।
अमृत में सभी शुभ कार्य करें ।
दिशा शूल ज्ञान————-पश्चिम
परिहार-: आवश्यकतानुसार यदि यात्रा करनी हो तो घी अथवा चिरौजी खाके यात्रा कर सकते है l
इस मंत्र का उच्चारण करें-:
शीघ्र गौतम गच्छत्वं ग्रामेषु नगरेषु च l
भोजनं वसनं यानं मार्गं मे परिकल्पय: ll
अग्नि वास ज्ञान -:
यात्रा विवाह व्रत गोचरेषु,
चोलोपनिताद्यखिलव्रतेषु ।
दुर्गाविधानेषु सुत प्रसूतौ,
नैवाग्नि चक्रं परिचिन्तनियं ।। महारुद्र व्रतेSमायां ग्रसतेन्द्वर्कास्त राहुणाम्
नित्यनैमित्यके कार्ये अग्निचक्रं न दर्शायेत् ।।
15 + 6 + 1 + 1 = 32 ÷ 4 = 3 शेष
मृत्यु लोक पर अग्नि वास हवन के लिए शुभ कारक है l
*** ग्रह मुख आहुति ज्ञान ***
सूर्य नक्षत्र से अगले 3 नक्षत्र गणना के आधार पर क्रमानुसार सूर्य , बुध , शुक्र , शनि , चन्द्र , मंगल , गुरु , राहु केतु आहुति जानें । शुभ ग्रह की आहुति हवनादि कृत्य शुभपद होता है
गुरु ग्रह मुखहुति
शिव वास एवं फल -:
21 + 21 + 5 = 47 ÷ 7 = 5 शेष
ज्ञानवेलायां = कष्ट कारक
भद्रा वास एवं फल -:
स्वर्गे भद्रा धनं धान्यं ,पाताले च धनागम:।
मृत्युलोके यदा भद्रा सर्वकार्य विनाशिनी।।
रात्रि 21:15 से प्रारम्भ
मृत्यु लोक = सर्वकार्य विनाशिनी
*** विशेष जानकारी ***
* पंचक अहोरात्र
*** शुभ विचार ***
अपुत्रस्य गृहं शून्यं दिशः शुन्यास्त्वबांधवाः ।
मूर्खस्य हृदयं शून्यं सर्वशून्या दरिद्रता ।।
।। चा o नीo।।
जिस व्यक्ति के पुत्र नहीं है उसका घर उजाड़ है. जिसे कोई सम्बन्धी नहीं है उसकी सभी दिशाए उजाड़ है. मुर्ख व्यक्ति का ह्रदय उजाड़ है. निर्धन व्यक्ति का सब कुछ उजाड़ है.
*** सुभाषितानि ***
गीता -: श्रद्धात्रयविभागयोग अo-17
दातव्यमिति यद्दानं दीयतेऽनुपकारिणे।,
देशे काले च पात्रे च तद्दानं सात्त्विकं स्मृतम्॥,
दान देना ही कर्तव्य है- ऐसे भाव से जो दान देश तथा काल (जिस देश-काल में जिस वस्तु का अभाव हो, वही देश-काल, उस वस्तु द्वारा प्राणियों की सेवा करने के लिए योग्य समझा जाता है।,) और पात्र के (भूखे, अनाथ, दुःखी, रोगी और असमर्थ तथा भिक्षुक आदि तो अन्न, वस्त्र और ओषधि एवं जिस वस्तु का जिसके पास अभाव हो, उस वस्तु द्वारा सेवा करने के लिए योग्य पात्र समझे जाते हैं और श्रेष्ठ आचरणों वाले विद्वान् ब्राह्मणजन धनादि सब प्रकार के पदार्थों द्वारा सेवा करने के लिए योग्य पात्र समझे जाते हैं।,) प्राप्त होने पर उपकार न करने वाले के प्रति दिया जाता है, वह दान सात्त्विक कहा गया है॥,20॥,
*** आपका दिन मंगलमय हो ***
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आचार्य नीरज पाराशर (वृन्दावन)
(व्याकरण,ज्योतिष,एवं पुराणाचार्य)
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