*** || जय श्री राधे || ***
*** महर्षि पाराशर पंचांग ***
*** अथ पंचांगम् ***
****ll जय श्री राधे ll****
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दिनाँक:-16/06/2022, गुरुवार
द्वितीया, कृष्ण पक्ष,
आषाढ़
“””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””(समाप्ति काल)
*** दैनिक राशिफल ***
देशे ग्रामे गृहे युद्धे सेवायां व्यवहारके।
नामराशेः प्रधानत्वं जन्मराशिं न चिन्तयेत्।।
विवाहे सर्वमाङ्गल्ये यात्रायां ग्रहगोचरे।
जन्मराशेः प्रधानत्वं नामराशिं न चिन्तयेत ।।
वृष
आज का दिन व्यवसाय से जुड़ी समस्याओं को हल करने में व्यतीत करेंगे। आप कार्यक्षेत्र में पूरी मेहनत और लगन से जुट जाएंगे तभी आपको लाभ मिलेगा। राजभय रहेगा। वाणी पर नियंत्रण रखें। शारीरिक कष्ट संभव है। यात्रा में जल्दबाजी न करें। कीमती वस्तुएं संभालकर रखें। दु:खद समाचार प्राप्त हो सकता है। भागदौड़ अधिक रहेगी। थकान व कमजोरी महसूस होगी। आय में निश्चितता रहेगी। व्यापार ठीक चलेगा। निवेश सोच–समझकर करें। विद्यार्थियों को किसी प्रतियोगिता में जीत मिलती दिख रही है। यदि आपका कोई संपत्ति संबंधित मामला कानून में चल रहा है,तो उसमें आपको किसी की सहायता लेनी होगी,तभी उसमें आप सफलता हासिल कर सकेंगे। दोस्तों के साथ आप कहीं घूमने फिरने की योजना बनाएंगे,जिसमें आपको पिताजी से परमिशन लेकर जाना बेहतर रहेगा। जीवनसाथी से बातचीत करते समय आपको वाणी की मधुरता को बनाए रखना होगा।
तिथि———- द्वितीया 09:44:28 तक
पक्ष————————- कृष्ण
नक्षत्र——– पूर्वाषाढा 12:36:04
योग————– ब्रह्म 21:06:54
करण————– गर 09:44:28
करण———– वणिज 19:55:12
वार———————– गुरूवार
माह———————– आषाढ
चन्द्र राशि——— धनु 17:53:58
चन्द्र राशि——————- मकर
सूर्य राशि——————- मिथुन
रितु————————- ग्रीष्म
आयन—————— उत्तरायण
संवत्सर———————- नल
संवत्सर (उत्तर)—————– राक्षस
विक्रम संवत—————- 2079
विक्रम संवत (कर्तक)———–2078
शक संवत—————— 1944
वृन्दावन
सूर्योदय————— 05:24:53
सूर्यास्त—————- 19:15:00
दिन काल————- 13:50:06
रात्री काल————- 10:10:01
चंद्रास्त—————- 06:58:49
चंद्रोदय—————- 21:35:05
लग्न—- मिथुन 0°41′ , 60°41′
सूर्य नक्षत्र—————– मृगशिरा
चन्द्र नक्षत्र—————- पूर्वाषाढा
नक्षत्र पाया——————– ताम्र
*** पद, चरण ***
फा—- पूर्वाषाढा 07:19:03
ढा—- पूर्वाषाढा 12:36:04
भे—- उत्तराषाढा 17:53:58
भो—- उत्तराषाढा 23:12:57
जा—- उत्तराषाढा 28:33:10
*** ग्रह गोचर ***
ग्रह =राशी , अंश ,नक्षत्र, पद
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सूर्य=वृषभ 00:12 मृगशिरा , 3 का
चन्द्र = धनु 22°23 , पूo षाo , 3 भा
बुध =वृषभ 07 ° 07′ कृतिका ‘ 4 ए
शुक्र=मेष 27°05, कृतिका ‘ 1 अ
मंगल=मीन 22°30 ‘ रेवती ‘ 2 दो
गुरु=मीन 11°30 ‘ उ o भा o, 3 झ
शनि=कुम्भ 01°33 ‘ उ o भा o ‘ 3 गु
राहू=(व) मेष 26°0’ भरणी , 4 लो
केतु=(व) तुला 26°30 विशाखा , 2 तू
*** मुहूर्त प्रकरण ***
राहू काल 14:04 – 15:47 अशुभ
यम घंटा 05:25 – 07:09 अशुभ
गुली काल 08:52 – 10:36 अशुभ
अभिजित 11:52 -12:48 शुभ
दूर मुहूर्त 10:02 – 10:57 अशुभ
दूर मुहूर्त 15:34 – 16:29 अशुभ
चोघडिया, दिन
शुभ 05:25 – 07:09 शुभ
रोग 07:09 – 08:52 अशुभ
उद्वेग 08:52 – 10:36 अशुभ
चर 10:36 – 12:20 शुभ
लाभ 12:20 – 14:04 शुभ
अमृत 14:04 – 15:47 शुभ
काल 15:47 – 17:31 अशुभ
शुभ 17:31 – 19:15 शुभ
चोघडिया, रात
अमृत 19:15 – 20:31 शुभ
चर 20:31 – 21:48 शुभ
रोग 21:48 – 23:04 अशुभ
काल 23:04 – 24:20* अशुभ
लाभ 24:20* – 25:36* शुभ
उद्वेग 25:36* – 26:53* अशुभ
शुभ 26:53* – 28:09* शुभ
अमृत 28:09* – 29:25* शुभ
होरा, दिन
बृहस्पति 05:25 – 06:34
मंगल 06:34 – 07:43
सूर्य 07:43 – 08:52
शुक्र 08:52 – 10:02
बुध 10:02 – 11:11
चन्द्र 11:11 – 12:20
शनि 12:20 – 13:29
बृहस्पति 13:29 – 14:38
मंगल 14:38 – 15:47
सूर्य 15:47 – 16:57
शुक्र 16:57 – 18:06
बुध 18:06 – 19:15
होरा, रात
चन्द्र 19:15 – 20:06
शनि 20:06 – 20:57
बृहस्पति 20:57 – 21:48
मंगल 21:48 – 22:38
सूर्य 22:38 – 23:29
शुक्र 23:29 – 24:20
बुध 24:20* – 25:11
चन्द्र 25:11* – 26:02
शनि 26:02* – 26:53
बृहस्पति 26:53* – 27:43
मंगल 27:43* – 28:34
सूर्य 28:34* – 29:25
*** उदयलग्न प्रवेशकाल ***
वृषभ > 02:40 से 04:30 तक
मिथुन > 04:30 से 06:50 तक
कर्क > 06:50 से 09:10 तक
सिंह > 09:10 से 11:14 तक
कन्या > 11:14 से 13:30 तक
तुला > 13:30 से 15:45 तक
वृश्चिक > 15:45 से 18:00 तक
धनु > 18:00 से 20:06 तक
मकर > 20:06 से 21:52 तक
कुम्भ > 21:52 से 23:26 तक
मीन > 23:26 से 00:52 तक
मेष > 00:052 से 02:40 तक
विभिन्न शहरों का रेखांतर (समय)संस्कार
(लगभग-वास्तविक समय के समीप)
दिल्ली +10मिनट——— जोधपुर -6 मिनट
जयपुर +5 मिनट—— अहमदाबाद-8 मिनट
कोटा +5 मिनट———— मुंबई-7 मिनट
लखनऊ +25 मिनट——–बीकानेर-5 मिनट
कोलकाता +54—–जैसलमेर -15 मिनट
नोट– दिन और रात्रि के चौघड़िया का आरंभ क्रमशः सूर्योदय और सूर्यास्त से होता है।
प्रत्येक चौघड़िए की अवधि डेढ़ घंटा होती है।
चर में चक्र चलाइये , उद्वेगे थलगार ।
शुभ में स्त्री श्रृंगार करे,लाभ में करो व्यापार ॥
रोग में रोगी स्नान करे ,काल करो भण्डार ।
अमृत में काम सभी करो , सहाय करो कर्तार ॥
अर्थात- चर में वाहन,मशीन आदि कार्य करें ।
उद्वेग में भूमि सम्बंधित एवं स्थायी कार्य करें ।
शुभ में स्त्री श्रृंगार ,सगाई व चूड़ा पहनना आदि कार्य करें ।
लाभ में व्यापार करें ।
रोग में जब रोगी रोग मुक्त हो जाय तो स्नान करें ।
काल में धन संग्रह करने पर धन वृद्धि होती है ।
अमृत में सभी शुभ कार्य करें ।
?दिशा शूल ज्ञान————-दक्षिण
परिहार-: आवश्यकतानुसार यदि यात्रा करनी हो तो घी अथवा केशर खाके यात्रा कर सकते है l
इस मंत्र का उच्चारण करें-:
शीघ्र गौतम गच्छत्वं ग्रामेषु नगरेषु च l
भोजनं वसनं यानं मार्गं मे परिकल्पय: ll
? अग्नि वास ज्ञान -:
यात्रा विवाह व्रत गोचरेषु,
चोलोपनिताद्यखिलव्रतेषु ।
दुर्गाविधानेषु सुत प्रसूतौ,
नैवाग्नि चक्रं परिचिन्तनियं ।। महारुद्र व्रतेSमायां ग्रसतेन्द्वर्कास्त राहुणाम्
नित्यनैमित्यके कार्ये अग्निचक्रं न दर्शायेत् ।।
15 + 2 + 5 + 1 = 23 ÷ 4 = 3 शेष
मृत्यु लोक पर अग्नि वास हवन के लिए शुभ कारक है l
*** ग्रह मुख आहुति ज्ञान ***
सूर्य नक्षत्र से अगले 3 नक्षत्र गणना के आधार पर क्रमानुसार सूर्य , बुध , शुक्र , शनि , चन्द्र , मंगल , गुरु , राहु केतु आहुति जानें । शुभ ग्रह की आहुति हवनादि कृत्य शुभपद होता है
मंगल ग्रह मुखहुति
शिव वास एवं फल -:
17 + 17 + 5 = 39 ÷ 7 = 4 शेष
सभायां =संताप कारक
भद्रा वास एवं फल -:
स्वर्गे भद्रा धनं धान्यं ,पाताले च धनागम:।
मृत्युलोके यदा भद्रा सर्वकार्य विनाशिनी।।
रात्रि 19:57 से प्रारम्भ
मृत्यु लोक = सर्वकार्य विनाशिनी
*** विशेष जानकारी ***
* विश्व समता दिवस
* गुरु अर्जुनदेव पुण्य दिवस
*** शुभ विचार ***
अध्वा जरा मनुष्याणां वाजिनां बंधनं जरा ।
अमैथुनं जरा स्त्रीणां वस्त्राणामातपं जरा ।।
।। चा o नी o।।
सतत भ्रमण करना व्यक्ति को बूढ़ा बना देता है. यदि घोड़े को हरदम बांध कर रखते है तो वह बूढा हो जाता है. यदि स्त्री उसके पति के साथ प्रणय नहीं करती हो तो बुढी हो जाती है. धुप में रखने से कपडे पुराने हो जाते है.
*** सुभाषितानि ***
गीता -: श्रद्धात्रयविभागयोग अo-17
श्रद्धया परया तप्तं तपस्तत्त्रिविधं नरैः।,
अफलाकाङ्क्षिभिर्युक्तैः सात्त्विकं परिचक्षते॥,
फल को न चाहने वाले योगी पुरुषों द्वारा परम श्रद्धा से किए हुए उस पूर्वोक्त तीन प्रकार के तप को सात्त्विक कहते हैं॥,17॥,
*** आपका दिन मंगलमय हो ***
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आचार्य नीरज पाराशर (वृन्दावन)
(व्याकरण,ज्योतिष,एवं पुराणाचार्य)
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