पहले 57 राष्ट्रीय खेल संघों पर दिल्ली हाई कोर्ट की तलवार और फिर कोविड-19 की पटखनी….इन दोनों बातों ने भारतीय खेलों को हाशिए पर धकेल दिया है। इस सबके बीच भारतीय खेल प्राधिकरण इस पूरे मामले को पटरी पर लाने का ज़िम्मा ज़रूर सौंपा गया है लेकिन उसके पास कई ऐसे अधिकार नहीं हैं जो राष्ट्रीय फेडरेशनों के पास हैं जिसका नुकसान खिलाड़ियों को हो रहा है, जो ओलिम्पिक की तैयारी कर रहे हैं, उनको हो रहा है या जो ओलिम्पिक के लिए क्वॉलीफाई करने के लिए जीतोड़ मेहनत कर भी कर रहे हैं, उनका हो रहा है।
मुककेबाज़ों का कैम्प एनआईएस पटियाला में लगना था लेकिन पंजाब सरकार ने 14 दिन के क्वारंटाइन की शर्त रख दी है। बैडमिंटन एसोसिएशन ऑफ इंडिया को तो हैदराबाद में बैडमिंटन कैम्प को आयोजित करने के लिए तेलंगाना सरकार से अनुमति ही नहीं मिली जबकि यह तथ्य सर्वविदित है कि गोपीचंद एकेडमी नैशनल कैम्प के लिए परफैक्ट है और हैदराबाद एक तरह से भारतीय बैडमिंटन की नर्सरी के रूप में उभरकर आया है। कैम्प समय पर शुरू न होने का ही नतीजा है कि दुनिया के नम्बर एक खिलाड़ी रह चुके किदाम्बी श्रीकांत हैदराबाद से 270 किलोमीटर दूर अपने होम टाउन गुंटूर में प्रैक्टिस कर रहे हैं। बाकी खिलाड़ी लम्बे समय से ऑनलाइन ट्रेनिंग पर निर्भर हैं। इन खिलाड़ियों को प्रैक्टिस के दौरान कड़ा प्रतिद्वंद्वी नहीं मिल पाने से सिवाए फिटनेस के कुछ भी हासिल नहीं हो पा रहा। सम्भव है कि प्रकाश पादुकोण सेंटर ऑफ एक्सलेंस बैंगलुरु में कैम्प शुरू कर सकता है।
ओलिम्पिक या ओलिम्पिक क्वॉलिफाइंग मुक़ाबलों की तैयारी कर रहे तकनीबन 15 मुक्केबाज़ों को पटियाला में क्वॉरंटाइन किए जाने से इनकी तैयारी बुरी तरह प्रभावित हुई है। इन खिलाड़ियों को एनआईएस के बाहर साई हॉस्टल में क्वॉरनटाइन किया हुआ है। इन सबके कोविड टेस्ट के लिए सैम्पल लिए गए हैं। मगर दल के तीन मुक्केबाजों पर क्वॉरनटाइन का उल्लंघन करते हुए अभ्यास करने का आरोप है। साई इस मामले की जांच कर रही है। फिलहाल कैम्प में एशियाई खेलों के चैम्पियन और वर्ल्ड चैम्पियनशिप के सिल्वर मेडलिस्ट अमित पंघाल, कॉमनवेल्थ गेम्स के चैम्पियन विकास कृष्ण और वर्ल्ड चैम्पियनशिप की ब्रॉन्ज़ मेडलिस्ट सिमरनजीत कौर भी कैम्प में पहुंच चुकी हैं। वहीं ओलिम्पिक की तैयारी कर रही बॉक्सर लवलीना बोरोगोहेन इसलिए नैशनल कैम्प में समय पर नहीं आ पाएंगी क्योंकि सर्बानंदा सोनोवाल की असम सरकार ने राज्य में कोविड-19 को लेकर कड़े प्रतिबंध लागू किए हैं। ये स्थिति तब है जबकि सोनोवाल खुद केंद्र में खेल मंत्री रह चुके हैं।
बैडमिंटन, कुश्ती और तैराकी के कैम्प अभी तक शुरू नहीं हो पाए हैं। हालांकि साई इन कैम्पों को शुरू करने के प्रति गम्भीर है। तैराक इतने परेशान हैं कि उन्हें अपना करियर ही खत्म होता दिख रहा है। पिछले दिनों भारत के स्टार तैराक वीरधवल खाड़े ने यहां तक कह दिया कि अगर पूल नहीं खुले तो वह रिटायरमेंट लेने पर विचार कर सकते हैं। जाने माने कोच निहार अमीन ने इस बारे में सरकार से दखल देने की अपील की। यहां गौरतलब है कि छह भारतीय तैराक ओलिम्पिक का बी क्वॉलिफाइंग स्तर हासिल कर चुके हैं जबकि खाड़े, साजन प्रकाश और श्रीहरि नटराज ए क्वॉलिफिकेशन हासिल करने का माद्दा रखते हैं। इस सारी समस्या का हल यही है कि सरकार श्रीलंका, न्यूज़ीलैंड और ऑस्ट्रेलिया जैसे उन देशों में इनकी तैयारी का बंदोबस्त करे जहां कोविड-19 पर काफी हद तक काबू पाया जा सका है। अगर यह अनुमति ऑस्ट्रेलिया से मिल जाती है तो और भी अच्छा है क्योंकि वहां स्विमिंग का कल्चर है और भारतीय तैराकों को वहां अच्छा खासा कॉम्पिटिशन और एक्सपोज़र मिल जाएगा। हालांकि भारतीय शूटर्स के लिए अच्छी खबर यह है कि कर्णी सिंह शूटिंग रेंज को खोल दिया गया है। ओलिम्पिक के लिए क्वॉलीफाई कर चुके 15 निशानेबाज़ों के लिए यह अच्छी खबर है।
वहीं टेबल टेनिस खिलाड़ियों को उम्मीद है कि आईटीटीएफ और आईटीएफआई अपने कैलेंजर सम्भवत: जल्दी ही जारी कर देगी। उसके बाद से खासकर साई के सोनीपत और कोलकाता केंद्रों में इस खेल को लेकर काम में तेज़ी आएगी। कॉन्टैक्ट स्पोर्ट्स के अंतर्गत आने वाले खेल कुश्ती में स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया ने डमीं के इस्तेमाल से अभ्यास शुरू करने की बात कही है। अगर एक्सपर्ट्स से राय ली गई होती तो ऐसा बचकाना निर्णय न लेना पड़ता क्योंकि कुश्ती में आम तौर पर डमीं का इस्तेमाल कुश्ती शुरू करने वाले ट्रेनीज़ करते हैं। एक अंतरराष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी को सही अभ्यास अपने स्पेयरिंग पार्टनर और कोच की देखरेख में ही मिल सकता है।
सरकार ने खेलों में स्थिति को सामान्य करने के लिए नेहरु स्टेडियम और ध्यानचंद स्टेडियम में तीरंदाज़ी, टेनिस, टेबल टेनिस और बैडमिंटन जैसे नॉन कॉन्टैक्ट गेम्स की ट्रेनिंग के लिए दरवाजे खोल दिए हैं लेकिन खिलाड़ियों में कोविड-19 को लेकर इस कदर डर बैठा हुआ है कि यहां आने वाले लोगों की संख्या इतनी कम है कि उन्हें उंगलियों पर गिना जा सकता है।
भारत में खेलों की क्या विचित्र स्थिति बन गई है कि खेल संघों पर बैन के बाद खेलों का भाग्य वो लोग करने लगे हैं जिन्हें इसकी बारीकी से कोई जानकारी नहीं है। श के खेल मंत्री किरण रिजिजू इस मौजूदा स्थिति से बेहद आहत हैं। पिछले दिनों एनएसएफ के प्रतिनिधियों से उन्होंने अपने दिल के उद्गार व्यक्त करते हुए कहा था कि इस बारे में अगर वह कोई टिप्पणी करते हैं तो इसे माननीय न्यायालय की अवमानना माना जाता है इसलिए वह इस पूरे मामले में मौन हैं लेकिन साथ ही उन्होंने यह ज़रूर कहा कि जब उन्होंने कार्यभार सम्भाला था तो उन्होंने यही कहा था कि देश में खेलों को सरकार नहीं चला रही। ये काम आईओए और नैशनल स्पोर्ट्स फेडरेशनों का है और हम माननीय कोर्ट से यही कहेंगे कि स्पोर्ट्स पॉलिसी बनाना सरकार का काम है, कोर्ट का नहीं और उसके क्रियान्वयन का काम खेल संघों और भारतीय ओलिम्पिक संघ का है।
भारतीय खिलाड़ियों के कैम्प को लेकर राज्य सरकारों के रवैये से एक गतिरोध की स्थिति पैदा हुई है। अगर केंद्र सरकार द्वारा नैशनल कैम्प के खिलाड़ियों का कोविड टेस्ट नेगेटिव आता है तो उनके लिए तीन-चार दिन से ज़्यादा का क्वारंटाइन नहीं होना चाहिए जिससे उनकी तैयारियों पर बुरा असर न पड़े।
-मनोज जोशी
(लेखक वरिष्ठ खेल पत्रकार और टीवी कमेंटेटर हैं)