विश्व स्वास्थ्य दिवस इस साल हम कोरोना वायरस के काले साये में मनाने जा रहे है। पूरी दुनिया इस समय कोरोना के संक्रमण से जूझ रही है। और हम चाहकर भी इसका कोई उपचार अब तक नहीं खोज पाए है। विश्व स्वास्थ दिवस हर साल सात अप्रैल को मनाते है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के तत्वावधान में यह दिवस लोगों में स्वास्थ्य के प्रति जागरूक बढ़ाने के लिए मनाते है। यूँ देखा जाये तो यह दिवस रश्मि दिवस से आगे नहीं बढ़ पाया है। चुनौतियां आने पर हम हाथ मलते रह जाते है। इनमें कोरोना भी एक चुनौती है जिसका पूरी दुनिया के देश इस समय मुकाबला कर रहे है। स्वास्थ्य रक्षा इस समय सबसे बड़ी चुनौती है। और हम चाहकर भी अपने स्वास्थ्य को माकूल नहीं रख पाए है। कोई न कोई बीमारी हमें लगी रहती है। चाहे डायबिटीज हो या प्रदूषण जनित बीमारिया अथवा नशे और अन्य बीमारिया। हम अभी तक इनसे निजात नहीं पा सके है। विश्व इस समय साफ साफ तीन धड़ों में बंटा हुआ है। पहला धड़ा विकसित, दूसरा विकासशील और तीसरा धड़ा गरीब देशों का है। यह ध्यान देने वाली बात है की कोरोना जैसी बीमारी किसी गरीब देश से न निकल कर चीन जैसे विकसित देश से निकल कर समूचे संसार में फैली है। यह बेहद चिंतनीय है जिस पर दुनिया को मंथन करने की महती जरूरत है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के तत्वावधान में हर साल विश्व स्वास्थ्य दिवस 7 अप्रैल को मनाया जाता है। इसका मकसद दुनिया भर में लोगों को स्वास्थ्य के प्रति जागरूक करना और जनहित को ध्यान में रखते हुए सरकार को स्वास्थ्य नीतियों के निर्माण के लिए प्रेरित करना है। इसका मुख्य उद्देश्य दुनिया भर के लोगों के स्वास्थ्य के स्तर ऊंचा को उठाना है। हर इंसान का स्वास्थ्य अच्छा हो और बीमार होने पर हर व्यक्ति को अच्छे इलाज की सुविधा मिल सके। दुनियाभर में पोलियो, रक्ताल्पता, नेत्रहीनता, कुष्ठ, टीबी, मलेरिया और एड्स जैसी भयानक बीमारियों की रोकथाम हो सके और मरीजों को समुचित इलाज की सुविधा मिल सके और समाज को बीमारियों के प्रति जागरूक बनाया जाए और उनको स्वस्थ वातावरण बना कर स्वस्थ रहना सिखाया जाए ।
भारत में आम तौर पर लोगों में स्वास्थ्य चेतना का अभाव है। शारीरिक स्वास्थ्य के प्रति भी लोग तभी चिंतित होते हैं जब कोई रोग उन्हें ग्रस लेता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि निष्क्रियता कई गंभीर बीमारियों को जन्म देती है। विश्व लगातार बढ़ रही निष्क्रियता नामक महामारी का शिकार हो रहा है आरामदेह जीवनशैली से जुड़ी बीमारियाँ, जैसे हृदय रोग और डायबीटीज, अब तक संपन्न देशों की बीमारियाँ मानी जाती थीं लेकिन संगठन का कहना है कि अब विकासशील देश भी अब इसके शिकार हो रहे हैं। विश्व भर में इन बीमारियों से हर वर्ष दो करोड़ लोगों की मौत होती है और इनमें से अस्सी प्रतिशत गरीब देशों से हैं संगठन का कहना है कि इस तरह की बीमारियाँ दौड़-भाग से रोकी जा सकती हैं । संगठन का कहना है कि विश्व के पचासी प्रतिशत लोग निष्क्रिय जीवनशैली बिता रहे हैं और विश्व के दो-तिहाई बच्चे भी पूरी तरह से सक्रिय नहीं हैं और इससे उनके भविष्य पर भी बुरा असर पड़ेगा । संगठन का कहना है कि साधारण व्यायाम जैसे पैदल चलना, नृत्य करना और यहाँ तक की सीढ़ियाँ चढ़ना भी सेहत को ठीक रख सकता है । शोध बताते हैं कि खानपान में साधारण परिवर्तन और हल्के व्यायामों से आंतों के कैंसर के खतरे को सत्तर प्रतिशत और डायबिटीज को साठ प्रतिशत कम किया जा सकता है ।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, स्वास्थ्य सिर्फ रोग या दुर्बलता की अनुपस्थिति ही नहीं बल्कि एक पूर्ण शारीरिक, मानसिक और सामाजिक खुशहाली की स्थिति है। स्वस्थ लोग रोजमर्रा की गतिविधियों से निपटने के लिए और किसी भी परिवेश के मुताबिक अपना अनुकूलन करने में सक्षम होते हैं। रोग की अनुपस्थिति एक वांछनीय स्थिति है लेकिन यह स्वास्थ्य को पूर्णतया परिभाषित नहीं करता है। यह स्वास्थ्य के लिए एक कसौटी नहीं है और इसे अकेले स्वास्थ्य निर्माण के लिए पर्याप्त भी नहीं माना जा सकता है। लेकिन स्वस्थ होने का वास्तविक अर्थ अपने आप पर ध्यान केंद्रित करते हुए जीवन जीने के स्वस्थ तरीकों को अपनाया जाना है।
जीवन में स्वास्थ्य ही अनमोल धन है। शारीरिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति ही जीवन के विभिन्न क्षेत्रो में सफलता अर्जित कर सकते है। स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मन का निवास होता है। व्यक्ति की सबसे बड़ी दौलत उसका शरीर और उसका स्वास्थ्य होता है। जीवन में स्वास्थ्य का मूल्य समझ कर ही विश्व स्वास्थ्य संगठन की स्थापना की गई थी। अतः प्रत्येक व्यक्ति को अपने स्वास्थ्य के प्रति सदैव सजग रहना चाहिए ।
-बाल मुकुन्द ओझा