आधुनिक पुनर्जागरण के प्रणेता थे स्वामी दयानंद सरस्वती

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dyanand ji
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कमश:
दयानंद सरस्वती जी आर्यसमाज के संस्थापक थे, जिन्हें आधुनिक पुनर्जागरण के प्रणेता भी कहा जाता है। इन्होंने भारतीय समाज में कई सुधार किेए। यही नहीं इन्होंने एक सच्चे देशभक्त की तरह अपने देश के लिए कई संघर्ष किए और स्वराज्य का संदेश दिया जिसे बाद में बाल गंगाधर तिलक ने अपनाया और स्वराज्य मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है का नारा दिया। इसके अलावा इन्होंने भारत के राजनीतिक दर्शन और संस्कृति के विकास के लिए भी काफी कोशिश की। यह एक अच्छे मार्गदर्शक भी थे और इन्होंने अपने नेक कामों से समाज को नई दिशा एवं ऊर्जा दी। स्वामी दयानंद जी के महान विचारों से भारत के महान दिग्गज लोग भी प्रभावित हुए। आपको बता दें कि स्वामी दयानंद जी ने अपना पूरा जीवन राष्ट्रहित के उत्थान में और समाज में प्रचलित अंधविश्वासों और कुरीतियों को दूर करने के लिए समर्पित कर दिया। महान समाज सुधारक स्वामी जी ने अपनी प्रभावी और ओजस्वी विचारों से समाज में नव चेतना का संचार किया। इसके साथ ही उन्होंने हिन्दू धर्म के कई अनुष्ठानों के खिलाफ भी प्रचार किया। उन अनुष्ठानो के खिलाफ प्रचार करने की कुछ मुख्य वजह थी झ्र मूर्ति पूजा, जाति भेदभाव, पशु बलि, और महिलाओं को वेदों को पढ़ने की अनुमति ना देना। महान समाज सुधारक और राजनीतिक विचार धारा के व्यक्तित्व स्वामी दयानद सरस्वती जी के उच्च विचारों और कोशिश की वजह से ही भारतीय शिक्षा प्रणाली का पुनरुद्धार हुआ, जिसमें एक ही छत के नीचे अलग-अलग स्तर और जाति के छात्रों को लाया गया, जिसे आज हम कक्षा के नाम से जानते हैं। वहीं एक स्वदेशी रुख अपना कर उन्होंने हमेशा एक नया समाज, धर्म, आर्थिक और राजनीतिक दौर की भी शुरूआत की थी। ऐसे महान व्यक्तित्व के जीवन के बारे में आज हम आपको अपने इस लेख में बताएंगे।
कैसे बदला स्वामी दयानंद सरस्वती जी का जीवन?
स्वामी दयानन्द सरस्वती का नाम मूलशंकर तिवारी था, यह एक साधारण व्यक्ति थे, जो सदैव पिता की बात का अनुसरण करते थे। जाति से ब्राह्मण होने के कारण परिवार सदैव धार्मिक अनुष्ठानों में लगा रहता था। एक बार महाशिवरात्रि के पर्व पर इनके पिता ने इनसे उपवास करके विधि विधान के साथ पूजा करने को कहा और साथ ही रात्रि जागरण व्रत का पालन करने कहा। पिता के निदेर्शानुसार मूलशंकर ने व्रत का पालन किया, पूरा दिन उपवास किया और रात्रि जागरण के लिये वे शिव मंदिर में ही पालकी लगा कर बैठ गये। अर्धरात्रि में उन्होंने मंदिर में एक दृश्य देखा, जिसमे चूहों का झुण्ड भगवान की मूर्ति को घेरे हुए हैं और सारा प्रशाद खा रहे हैं।  तब मूलशंकर जी के मन में प्रश्न उठा, यह भगवान की मूर्ति वास्तव में एक पत्थर की शिला ही हैं, जो स्वयम की रक्षा नहीं कर सकती, उससे हम क्या अपेक्षा कर सकते हैं ? उस एक घटना ने मूलशंकर के जीवन में बहुत बड़ा प्रभाव डाला और उन्होंने आत्म ज्ञान की प्राप्ति के लिए अपना घर छोड़ दिया और स्वयं को ज्ञान के जरिये मूलशंकर तिवारी से महर्षि दयानंद सरस्वती बनाया।

1857 की क्रांति में योगदान
1846 में घर से निकलने के बाद उन्होंने सबसे पहले अंग्रेजो के खिलाफ बोलना प्रारम्भ किया, उन्होंने देश भ्रमण के दौरान यह पाया, कि लोगो में भी अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ आक्रोश हैं, बस उन्हें उचित मार्गदर्शन की जरुरत है, इसलिए उन्होंने लोगो को एकत्र करने का कार्य किया। उस समय के महान वीर भी स्वामी जी से प्रभावित थे, उन में तात्या टोपे, नाना साहेब पेशवा, हाजी मुल्ला खां, बाला साहब आदि थे, इन लोगो ने स्वामी जी के अनुसार कार्य किया। लोगो को जागरूक कर सभी को सन्देश वाहक बनाया गया, जिससे आपसी रिश्ते बने और एकजुटता आये। इस कार्य के लिये उन्होंने रोटी तथा कमल योजना भी बनाई और सभी को देश की आजादी के लिए जोड़ना प्रारम्भ किया। इन्होने सबसे पहले साधू संतो को जोड़ा, जिससे उनके माध्यम से जन साधारण को आजादी के लिए प्रेरित किया जा सके। हालाँकि 1857 की क्रांति विफल रही, लेकिन स्वामी जी में निराशा के भाव नहीं थे, उन्होंने यह बात सभी को समझायी। उनका मानना था कई वर्षो की गुलामी एक संघर्ष से नही मिल सकती, इसके लिए अभी भी उतना ही समय लग सकता है, जितना अब तक गुलामी में काटा गया हैं। उन्होंने विश्वास दिलाया कि यह खुश होने का वक्त हैं, क्यूंकि आजादी की लड़ाई बड़े पैमाने पर शुरू हो गई हैं और आने वाले कल में देश आजाद हो कर रहेगा। उनके ऐसे विचारों ने लोगो के हौसलों को जगाये रखा। इस क्रांति के बाद स्वामी जी ने अपने गुरु विरजानंद के पास जाकर वैदिक ज्ञान की प्राप्ति का प्रारम्भ किया और देश में नये विचारों का संचार किया। अपने गुरु के मार्ग दर्शन पर ही स्वामी जी ने समाज उद्धार का कार्य किया।