हर की पौड़ी पर संन्यास की दीक्षा लिए स्वामी ब्रह्मानंद जी रहे स्वतंत्रता आंदोलन में सहयोगी

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swami brahmanand ji
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स्वामी ब्रह्मानंद जी का व्यक्तित्व महान था। उन्होंने समाज सुधार के लिए काफी कार्य किए। देश की स्वतंत्रता के लिए उन्होंने जहां स्वयं को समर्पित कर कई आंदोलनों में जेल काटी, वहीं आजादी के बाद देश की राजनीति में भी उनका भावी योगदान रहा है। स्वामी जी ने शिक्षा के क्षेत्र में बहुत ही कार्य किए। समाज के लोगों को शिक्षा की ओर ध्यान देने का आहवान किया। स्वामी ब्रह्मानंद महाराज का जन्म 4 दिसंबर 1894 को उत्तरप्रदेश के हमीरपुर जिले की राठ तहसील के बरहरा नामक गांव में साधारण किसान परिवार में हुआ था। स्वामी ब्रह्मानंद जी महाराज के पिता का नाम मातादीन लोधी तथा माता का नाम जशोदाबाई था। स्वामी ब्रह्मानंद के बचपन का नाम शिवदयाल था। स्वामी ब्रह्मानंद ने बचपन से ही समाज में फैले हुए अंधविश्वास और अशिक्षा जैसी कुरीतियों का डटकर विरोध किया। स्वामी ब्रह्मानंद जी की प्रारंभिक शिक्षा हमीरपुर में ही हुई। इसके पश्चात स्वामी ब्रह्मानंद जी ने घर पर ही रामायण, महाभारत, गीता, उपनिषद और अन्य शास्त्रों का अध्ययन किया। इसी समय से लोग उन्हें ‘स्वामी ब्रह्मानंद’ के नाम से बुलाने लगे। कहा जाता है कि बालक शिवदयाल के बारे में संतों ने भविष्यवाणी कि थी कि यह बालक या तो राजा होगा या प्रख्यात संन्यासी। बालक शिवदयाल का रुझान आध्यात्मिकता की तरफ ज्यादा होने के कारण पिता मातादीन लोधी को डर सताने लगा कि कहीं वे साधु न बन जाएं। इस डर से मातादीन लोधी ने स्वामी ब्रह्मानंद जी का विवाह 7 वर्ष की उम्र में हमीरपुर के ही गोपाल महतो की पुत्री राधाबाई से करा दिया। आगे चलकर राधाबाई ने एक पुत्र और एक पुत्री को जन्म दिया। लेकिन स्वामी जी का चित्त अब भी आध्यात्मिकता की तरफ था।

स्वामी ब्रह्मानंद जी ने 24 वर्ष की आयु में पुत्र और पत्नी का मोह त्याग गेरुए वस्त्र धारण कर परम पावन तीर्थ स्थान हरिद्वार में भगीरथी के तट पर ‘हर की पौड़ी’ पर संन्यास की दीक्षा ली। संन्यास के बाद शिवदयाल लोधी संसार में ‘स्वामी ब्रह्मानंद’ के रूप में प्रख्यात हुए। संन्यास ग्रहण करने के बाद स्वामी ब्रह्मानंद ने संपूर्ण भारत के तीर्थस्थानों का भ्रमण किया। इसी बीच उनका अनेक महान साधु-संतों से संपर्क हुआ। इसी बीच उन्हें ‘गीता रहस्य’ प्राप्त हुआ। पंजाब के भटिंडा में स्वामी ब्रह्मानंद जी की महात्मा गांधी से भेंट हुई। गांधी जी ने उनसे मिलकर कहा कि अगर आप जैसे 100 लोग आ जाएं तो स्वतंत्रता अविलंब प्राप्त की जा सकती है। ‘गीता रहस्य’ प्राप्त कर स्वामी ब्रह्मानंद ने पंजाब में अनेक हिन्दी पाठशालाएं खुलवाईं और गौवधबंदी के लिए आंदोलन चलाए। इसी बीच स्वामी जी ने अनेक सामाजिक कार्य किए। 1956 में स्वामी ब्रह्मानंद को अखिल भारतीय साधु-संतों के अधिवेशन में आजीवन सदस्य बनाया गया और उन्हें कार्यकारिणी में भी शामिल किया गया। इस अवसर पर देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद भी सम्मिलित हुए। स्वामी जी सन् 1921 में गांधी जी के संपर्क में आकर स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़े। स्वतंत्रता आंदोलन में भी स्वामी ब्रह्मानंद जी ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। 1928 में गांधी जी स्वामी ब्रह्मानंद के प्रयासों से राठ पधारे। 1930 में स्वामी जी ने नमक आंदोलन में हिस्सा लिया। इस बीच उन्हें 2 वर्ष का कारावास हुआ। उन्हें हमीरपुर, हरदोई और कानपूर की जेलों में रखा गया। उन्हें पुन: फिर जेल जाना पड़ा। स्वामी ब्रह्मानंदजी ने पूरे उत्तर भारत में अंग्रेजों के खिलाफ लोगों में अलख जगाई। स्वतंत्रता आंदोलन के समय स्वामी जी का नारा था उठो वीरो, उठो! दासता की जंजीरों को तोड़ फेंको। उखाड़ फेंको इस शासन को। एकसाथ उठो। आज भारतमाता बलिदान चाहती है। उन्होंने कहा था कि दासता के जीवन से मृत्यु कहीं श्रेयस्कर है। बरेली जेल में स्वामी ब्रह्मानंद की भेंट पं. जवाहरलाल नेहरू से हुई। जेल से छूटकर स्वामी ब्रह्मानंद शिक्षा के प्रचार में जुट गए। 1942 में स्वामी जी को पुन: भारत छोड़ो आंदोलन में जेल जाना पड़ा। स्वामी जी ने संपूर्ण बुंदेलखंड में शिक्षा की अलख जगाई। आज भी उनके नाम से हमीरपुर में डिग्री कॉलेज चल रहा है जिसकी नींव स्वामी ब्रह्मानंद जी ने 1938 में ब्रह्मानंद विद्यालय के रूप में रखी। 1966 में गौहत्या निषेध आंदोलन में स्वामी ब्रह्मानंद ने 10-12 लाख लोगों के साथ संसद के सामने आंदोलन किया। गौहत्या निषेध आंदोलन में स्वामी ब्रह्मानंद को गिरफ्तार कर तिहाड़ जेल भेज दिया गया।

तब स्वामी ब्रह्मानंद ने प्रण लिया कि वे अगली बार चुनाव लड़कर ही संसद में आएंगे। स्वामीजी 1967 से 1977 तक हमीरपुर से सांसद रहे। जेल से मुक्त होकर स्वामी जी ने हमीरपुर लोकसभा सीट से जनसंघ से 1967 में चुनाव लड़ा और भारी मतों से जीतकर वे संसद भवन पहुंचे। देश की संसद में स्वामी ब्रह्मानंद जी पहले वक्ता थे जिन्होंने गौवंश की रक्षा और गौवध का विरोध करते हुए संसद में करीब 1 घंटे तक अपना ऐतिहासिक भाषण दिया था। 1972 में स्वामी जी पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के आग्रह पर कांग्रेस से चुनाव जीतकर संसद पहुंचे। पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और राष्ट्रपति वीवी गिरि से स्वामी ब्रह्मानंद के काफी निकट संबंध थे। स्वामी जी की निजी संपत्ति नहीं थी। संन्यास ग्रहण करने के बाद उन्होंने पैसा न छूने का प्रण लिया था और इस प्रण का पालन मरते दम तक किया। स्वामी ब्रह्मानंद अपनी पेंशन छात्र-छात्राओं के हित में दान कर दिया करते थे। समाज सुधार और शिक्षा के प्रसार के लिए उन्होंने अपना जीवन अर्पित कर दिया। वे कहा करते थे कि मेरी निजी संपत्ति नहीं है, यह तो सब जनता की है। ‘कर्मयोगी’ शब्द का जीवंत उदाहरण यदि भारत देश में है तो स्वामी ब्रह्मानंद का नाम अग्रिम पंक्ति में लिखा है। कर्म को योग बनाने की कला अगर किसी में थी तो वो स्वामी ब्रह्मानंद जी ही थे। स्वामी जी का वैराग्य नैसर्गिक था। उनका वैराग्य स्वयं या अपने आप तक सीमित नहीं था बल्कि उनके वैराग्य का लाभ सारे समाज को मिला। हमेशा गरीबों की लड़ाई लड़ने वाले ‘बुंदेलखंड के मालवीय’ नाम से प्रख्यात, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, त्यागमूर्ति, संत प्रवर, परम पूज्य स्वामी ब्रह्मानंद जी 13 सितंबर 1984 को ब्रह्मलीन हो गए लेकिन उनका जीवन और शिक्षाएं आज भी हमें राह दिखाती हैं। आज हम त्यागमूर्ति, संत प्रवर, परम पूज्य स्वामी ब्रह्मानंद जी को उनकी 124वीं जन्म-जयंती 4 दिसंबर 2018 पर नमन करते हुए यही कह सकते हैं कि-

‘लाखों जीते, लाखों मरते, याद कहां किसी की रह जाती,
रहता नाम अमर उन्हीं का, जो दे जाते अनुपम थाती’