Supreme Court Deadline For President, (आज समाज), नई दिल्ली: तमिलनाडु सरकार और राज्यपाल के मामले में ऐतिहासिक फैसला सुनाने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रपति के लिए भी राज्यपालों द्वारा भेजे गए बिलों पर तीन महीने के भीतर फैसला लेने की समय सीमा तय कर दी है। शीर्ष अदालत ने कहा है कि राज्यपाल की ओर से भेजे गए विधेयक पर राष्ट्रपति को तीन माह के अंदर फैसला लेना अनिवार्य होगा।
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तमिलनाडु के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने यह कहा था
तमिलनाडु के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि राज्यपाल को विधानसभा द्वारा भेजे गए विधेयक पर हर हालत में एक महीने में फैसला लेना होगा। इसी फैसले के दौरान शीर्ष कोर्ट ने राज्यपालों द्वारा राष्ट्रपति को भेजे गए बिल पर भी स्थिति स्पष्ट की है। 11 अप्रैल को यह आदेश सार्वजनिक किया गया।
8 अप्रैल को तमिलनाडु राज्यपाल के अधिकार की सीमा तय की
सुप्रीम कोर्ट ने 8 अप्रैल को तमिलनाडु के राज्यपाल और वहां की सरकार के मामले पर राज्यपाल के अधिकार की सीमा तय की थी। कोर्ट ने तमिलनाडु सरकार के 10 जरूरी बिलों को राज्यपाल द्वारा रोके जाने को अवैध बताते हुए कहा था कि गवर्नर के पास कोई वीटो पॉवर नहीं है। राज्यपाल का यह मनमाना कदम है कोर्ट ने कहा था कि विधानसभा से पास विधेयक पर राज्यपाल एक माह में निर्णय लें।
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शुक्रवार रात को वेबसाइट पर अपलोड किया आदेश
सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर शुक्रवार रात को अपलोड किए गए आदेश में शीर्ष अदालत ने संविधान के अनुच्छेद 201 का हवाला देते हुए कहा है कि राज्यपालों की तरफ से भेजे बिल के मामले में राष्ट्रपति के पास पूर्ण वीटो अथवा पॉकेट वीटो के राइट्स नहीं है। कोर्ट ने कहा है कि राष्ट्रपति के फैसले की न्यायिक समीक्षा की जा सकती है और बिल की संवैधानिकता का फैसला न्यायपालिका करेगी।
जानें कोर्ट ने अपने आदेश में क्या कहा
सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि अनुच्छेद 201 में प्रावधान है कि जब किसी विधेयक को विधानसभा पारित कर दे तो इसके बाद उस बिल को राज्यपाल के पास भेजा जाए। इसके बाद राज्यपाल उसे विचार के लिए राष्ट्रपति के पास भेज दें। ऐसी स्थिति में राष्ट्रपति को बिल पर अपनी स्वीकृति देनी होगी अथवा उन्हें बताना होगा कि वह स्वीकृति नहीं दे रहे हैं।
बिल की कानूनी जांच करने का अधिकार
कोर्ट ने कहा कि आर्टिकल 201 के तहत राष्ट्रपति के फैसले की न्यायिक समीक्षा की जा सकती है। यदि बिल में केंद्र सरकार के फैसले को प्राथमिकता दी गई हो, तो कोर्ट मनमानी अथवा दुर्भावना के आधार पर विधेयक की समीक्षा करेगा शीर्ष कोर्ट ने कहा, बिल में प्रदेश कैबिनेट को प्रायरिटी दी गई हो और राज्यपाल ने विधेयक को मंत्रिपरिषद की मदद व सलाह के विपरीत अगर फैसला किया हो तो अदालत के पास बिल की कानूनी जांच करने का अधिकार होगा।
रोकनी होगी बार-बार बिल लौटाने की प्रक्रिया
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राष्ट्रपति किसी बिल को प्रदेश विधानसभा को संशोधन अथवा पुनर्विचार के लिए वापस भेजते हैं और विधानसभा उसे फिर से पारित करती है, तो राष्ट्रपति को उस बिल पर अंतिम फैसला लेना होगा और बार-बार बिल को लौटाने की प्रक्रिया उन्हें रोकनी होगी।
देरी हुई तो राष्ट्रपति को बताना होगा कारण
अदालत ने यह भी साफ किया कि जब कोई समय-सीमा तय हो, तो सही टाइम लाइन के अंदर फैसला करना चाहिए। राष्ट्रपति को बिल मिलने के 3 महीने के भीतर फैसला लेने में अगर देरी होती है, इसका कारण बताना होगा।
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