Aaj Samaj (आज समाज), Supreme Court Rohingya News, नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने देश की विभिन्न जेलों में बंद रोहिंग्या शरणार्थियों की रिहाई की मांग वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए केंद्र सरकार से जवाब तलब किया है। संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत दायर रिट याचिका में आरोप लगाए गए हैं कि देश भर की जेलों/हिरासत केंद्रों या किशोर गृहों में मनमाने और अवैध तरीके से रोहिंग्या शरणार्थियों को रखा गया है और उनकी रिहाई की जानी चाहिए। इस पर शीर्ष कोर्ट ने बीते कल केंद्र को नोटिस जारी कर चार हफ्ते में हलफनामा दाखिल करने को कहा है।
- सुप्रीम कोर्ट ने केेंद्र से 4 हफ्ते में मांगा जवाब
स्वतंत्र मल्टीमीडिया पत्रकार प्रियाली सूर ने याचिका दायर की है
याचिका स्वतंत्र मल्टीमीडिया पत्रकार प्रियाली सूर द्वारा दायर की गई है, जिसका प्रतिनिधित्व एडवोकेट प्रशांत भूषण और एडवोकेट चेरिल डिसूजा ने किया। याचिकाकर्ताओं ने कहा कि म्यांमार के ये शरणार्थी ऐसी स्थिति के कारण अपने देश से भाग गए हैं, जिसे संयुक्त राष्ट्र और अंतरराष्ट्रीय न्यायालय ने नरसंहार और मानवता के खिलाफ अपराध के रूप में मान्यता दी है। म्यांमार में नरसंहार का सामना करने और राज्यविहीन लोगों के रूप में हिंसा शुरू होने के बाद से रोहिंग्या शरणार्थी भारत सहित पड़ोसी देशों में भाग गए हैं। इसके आधार पर यह दलील दी गई कि उत्पीड़न की पृष्ठभूमि और भेदभाव के बावजूद रोहिंग्या भाग गए हैं।
‘अवैध अप्रवासी’ के रूप में लेबल किया गया
भारत में उन्हें आधिकारिक तौर पर ‘अवैध अप्रवासी’ के रूप में लेबल किया गया है और उन्हें अमानवीय व्यवहार और प्रतिबंधों का सामना करना पड़ता है। इनमें मनमाने ढंग से गिरफ्तारियां और गैरकानूनी हिरासत, शिविरों के बाहर आंदोलन की स्वतंत्रता पर प्रतिबंध, शिक्षा तक सीमित पहुंच, बुनियादी स्वास्थ्य देखभाल और कानूनी सेवाओं या किसी भी औपचारिक रोजगार के अवसरों तक सीमित या कोई पहुंच नहीं शामिल है। इसके अलावा, भारत में रोहिंग्या को ‘बढ़ते मुस्लिम विरोधी और शरणार्थी विरोधी जेनोफोबिया’ का सामना करना पड़ रहा है और वे लगातार हिरासत में रहने और यहां तक कि नरसंहार शासन में वापस निर्वासित होने के डर में रहते हैं, जहां से वे भाग गए थे।
निरंतर हिरासत अवैध और असंवैधानिक
याचिका में यह भी दावा किया गया है कि रोहिंग्या शरणार्थियों की निरंतर हिरासत अवैध और असंवैधानिक है, जो भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 और 14 के तहत गारंटीकृत मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है। याचिका में दूसरी मांग यह है कि यूओआई को अवैध आप्रवासी होने या विदेशी अधिनियम, 1946 के तहत किसी भी रोहिंग्या को मनमाने ढंग से हिरासत में लेने से रोका जाए। याचिका को सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस बी.आर. गवई और जस्टिस पीके मिश्रा की बेंच के सामने रखा गया। उन्होंने मामले को चार सप्ताह बाद सूचीबद्ध किया।
यह भी पढ़ें :
- Israel Palestine Conflict Update: इजरायल हमास जंग में दोनों पक्षों के 2000 से ज्यादा लोगों की मौत
- Canada Ritesh Malik: कनाडा में बने माहौल के कारण खालिस्तानी चरमपंथियों का हौसला बढ़ा
- Weather North India: हिमाचल व जम्मू-कश्मीर में बारिश और बर्फबारी, लद्दाख में एवलांच, एक सैनिक की मौत तीन लापता
Connect With Us: Twitter Facebook