Supreme Court Reprimand: डार्विन व आइंस्टीन को गलत साबित करने फटकार

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Supreme Court Reprimand
सुप्रीम कोर्ट।

Aaj Samaj (आज समाज), Supreme Court Reprimand, नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट में एक अजीबोगरीब याचिका दाखिल हुई जिस पर न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया की पीठ ने याचिकाकर्ता को फटकार लगाई है। दरअसल, याचिकाकर्ता डार्विन और आइंस्टीन की थ्योरी की चुनौती देने के लिए शुक्रवार को शीर्ष अदालत पहुंच गया था, जिस पर पीठ ने सुनवाई से इनकार करते हुए कहा, हम यहां न्यूटन या आइंस्टीन को गलत साबित करने के लिए नहीं बैठे हैं। बेहतर होगा कि याचिकाकर्ता अपना सिद्धांत खुद प्रतिपादित करें।

  • बेहतर होगा, याचिकाकर्ता अपना सिद्धांत खुद प्रतिपादित करें : कोर्ट

याचिकाकर्ता ने  सुधार के लिए की थी दखल की मांग

याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका में कहा था कि डार्विन के ‘थ्योरी आफ एवोल्यूशन’ और आइंस्टीन के ‘थ्योरी आफ रिलेटिविटी’ का सूत्र गलत है और इसमें सुधार के लिए कोर्ट को दखल देना चाहिए। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने उसे लताड़ लगाई। कहा कि बेहतर होगा, आप अपनी थ्योरी खुद ही बना लें।

याचिकाकर्ता का तर्क

याचिकाकर्ता ने कोर्ट में व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होकर तर्क देते हुए कहा, मैंने अपने स्कूल के समय और कॉलेज के समय में पढ़ाई की है और आज मैं कहता हूं कि मैंने जो कुछ भी पढ़ा वह गलत था। इस पर, न्यायमूर्ति कौल ने जवाब दिया कि तो आप सुधर जाइए आपका सिद्धांत, इसमें सुप्रीम कोर्ट को क्या करना चाहिए। आप कहते हैं कि आपने स्कूल में कुछ पढ़ा, आप विज्ञान के छात्र थे। अब आप कहते हैं कि वे सिद्धांत गलत हैं। यदि आप मानते हैं कि वे सिद्धांत गलत थे, तो सुप्रीम कोर्ट का इससे कोई लेना-देना नहीं है। इसमें अनुच्छेद 32 के तहत आपके मौलिक अधिकार का उल्लंघन क्या है? कोर्ट ने कहा कि यदि यह उनका विश्वास है तो वह अपने विश्वास का प्रचार कर सकते हैं।

अनुच्छेद 32 के तहत नहीं हो सकती रिट याचिका

पीठ ने कहा कि वैज्ञानिक मान्यताओं को चुनौती देने के लिए भारतीय संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत कोई रिट याचिका नहीं हो सकती है। बता दें कि अंग्रेजी प्रकृतिवादी डार्विन द्वारा प्रस्तावित विकास का सिद्धांत बताता है कि सभी जीवित प्राणी प्राकृतिक वरण से विकसित हुए हैं। आइंस्टीन का प्रसिद्ध समीकरण ई=एमसी2 कहता है कि ऊर्जा और द्रव्यमान (पदार्थ) विनिमेय हैं।

एक और अजीबोगरीब याचिका खारिज

सुप्रीम कोर्ट में शुक्रवार को एक और याचिका आई थी। इस याचिका में जस्टिस देवेन्द्र कुमार उपाध्याय के बॉम्बे हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस के रूप में दोबारा शपथ दिलाने की मांग की गई थी। वजह बताई गई कि गवर्नर के ‘मैं’ बोले जाने के बाद शपथ लेते हुए जस्टिस उपाध्याय ने ‘मैं’ शब्द नहीं बोला था। चीफ जस्टिस ने याचिकाकर्ता पर 25000 का जुमार्ना लगा कर, याचिका खारिज कर दी।

केरल में बंदी हाथियों को लेकर भी दायर की गई थी याचिका

सीजेआई की पीठ के समक्ष इसी सप्ताह मंगलवार को केरल में बंदी हाथियों की मौत से जुड़ी एक अंतरिम याचिका पहुंची। सीजेआई ने इस पर भी सुनवाई करने से इनकार कर दिया। साथ ही कहा कि ध्यान खींचने वाले हजार मुद्दे अहम हो सकते हैं लेकिन जिनसे सुप्रीम कोर्ट का काम ठप हो जाए, हम उनकी सुनवाई नहीं कर सकते।

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