Aaj Samaj (आज समाज), Supreme Court Order, नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ राजद्रोह कानून को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अब सुनवाई करेगी। 152 साल पुराने इस कानून को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर बीते कल सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने भारतीय दंड संहिता की धारा 124ए को चुनौती देने वाली याचिकाओं को 5 जजों की संवैधानिक बेंच को ट्रांसफर कर दिया।
केंद्र ने किया था सुनवाई टालने का अनुरोध
केंद्र सरकार ने हालांकि नए बिल का हवाला देकर कोर्ट से सुनवाई टालने का अनुरोध किया। इस पर सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा कि भले ही नया विधेयक कानून बन जाए, लेकिन नए कानून का पिछले मामलों पर कोई असर नहीं पड़ेगा। सुप्रीम कोर्ट ने रजिस्ट्री को निर्देश दिया कि वह सभी दस्तावेज सीजेआई के सामने रखे, ताकि बेंच बनाने के लिए फैसला किया जा सके। सीजेआई ने कहा, अदालत ऐसे कानूनों के इस्तेमाल को लेकर चिंतित है। इसका इस्तेमाल बढ़ई को लकड़ी का एक टुकड़ा काटने के लिए आरी देने जैसा है, जो उसका इस्तेमाल पूरे जंगल को काटने के लिए करता है। उन्होंने कहा, राजद्रोह कानून को चुनौती देने के लिए बड़ी बेंच को भेजने की जरूरत है, क्योंकि 1962 के केदार नाथ सिंह मामले में पांच जजों की पीठ ने इस प्रावधान को बरकरार रखा था।
औपनिवेशिक शासन में बिना वारंट गिरफ्तारी नहीं
चीफ जस्टिस ने कहा कि केदारनाथ का फैसला तत्कालीन मौलिक अधिकारों की संकीर्ण समझ से किया था। साथ ही केदारनाथ ने उस समय के संवैधानिक कानून की समझ से केवल अनुच्छेद 19 को देखते हुए इस मुद्दे की जांच की थी कि मौलिक अधिकार अलग-अलग हिस्सों में बंटे होते हैं। सीजेआई ने अपराध की प्रकृति का पता चलने पर कहा कि औपनिवेशिक शासन में इसमें बिना वारंट के गिरफ्तारी नहीं हो सकती थी, लेकिन हमने ही इसे गंभीर अपराध बना दिया। 1962 में केदार नाथ सिंह बनाम बिहार केस में पांच जजों की बेंच ने राजद्रोह के अपराध की वैधता को बरकरार रखते हुए कहा था कि एक अच्छा कानून बना हुआ है और इस पर किसी पुनर्विचार की जरूरत नहीं है।
इन्होंने दायर की थी याचिका
एडिटर्स गिल्ड आफ इंडिया, टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा समेत पांच पक्षों की तरफ से राजद्रोह कानून को चुनौती देने वाली याचिका दायर की गई थी। मामले में याचिकाकर्ताओं का कहना है कि आज के समय में इस कानून की जरूरत नहीं है। बता दें कि इससे पहले एक मई को केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा था कि राजद्रोह को अपराध बनाने वाली आईपीसी की धारा 124ए की समीक्षा की जा रही है। इसके बाद कोर्ट ने सुनवाई स्थगित कर दी थी।
124ए को हटाने का कोई वैलिड रीजन नहीं
विधि आयोग ने 2 जून को सरकार को सौंपी अपनी रिपोर्ट में कहा था कि भारतीय दंड संहिता की धारा 124ए को आईपीसी में बनाए रखने की आवश्यकता है। इसे हटाने का कोई वैलिड रीजन नहीं है। हालांकि, कानून के उपयोग को लेकर ज्यादा स्पष्टता बनी रहे इसके लिए कुछ संशोधन किए जा सकते हैं। अंग्रेजों के जमाने के कानून खत्म करने के लिए मानसून सेशन के आखिरी दिन 11 अगस्त को केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने बिल लोकसभा में पेश किया। सबसे बड़ा बदलाव राजद्रोह कानून को लेकर है, जिसे नए स्वरूप में लाया जाएगा।
केस दर्ज करने व कार्रवाई पर लगाई है रोक
सुप्रीम कोर्ट ने 2022 में एक आदेश दिया है कि जब तक आईपीसी की धारा 124ए की री-एग्जामिन प्रोसेस पूरी नहीं हो जाती, तब तक इसके तहत कोई केस दर्ज नहीं होगा। कोर्ट ने पहले से दर्ज मामलों में भी कार्रवाई पर रोक लगा दी थी। कोर्ट ने यह भी कहा था कि इस धारा में जेल में बंद आरोपी भी जमानत के लिए अपील कर सकते हैं।
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