Aaj Samaj (आज समाज), Supreme Court On Governors, नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने विभिन्न राज्यों के राज्यपालों द्वारा विधानसभा से पारित विधेयकों पर कार्रवाई से परहेज करने और उन्हें अपनी मंजूरी देने में देरी करने पर चिंता जताई है। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की अगुवाई वाली पीठ ने सोमवार को कहा, राज्यपालों को यह समझना होगा कि वह कोई जनता द्वारा सीधे चुने गए प्रतिनिधि नहीं है। उन्हें आत्मावलोकन की जरूरत है। सभी को अंतरात्मा की तलाश कर उसकी आवाज सुननी चाहिए।
- विधेयकों को मंजूरी देने में विलंब पर सुप्रीम कोर्ट नाराज
पंजाब के राज्यपाल और राज्य सरकार के बीच है टकराव की स्थिति
दरअसल पंजाब के राज्यपाल बनवारीलाल पुरोहित और मुख्यमंत्री भगवंत मान के नेतृत्व वाली आम आदमी पार्टी (आप) की सरकार के बीच पिछले कुछ वक्त से टकराव की स्थिति है और राज्य सरकार ने राज्यपाल बनवारीलाल पुरोहित पर विधानसभा द्वारा पारित विधेयकों को मंजूरी में देरी का आरोप लगाते हुए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था। सोमवार को याचिका पर सुनवाई के दौरान राज्यपाल की ओर से शीर्ष अदालत में पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने पीठ को बताया कि गवर्नर ने उनके पास भेजे गए विधेयकों पर कार्रवाई की और पंजाब सरकार द्वारा दायर याचिका एक अनावश्यक मुकदमा है।
मामला अदालत आने से पहले ही कार्रवाई करनी चाहिए
उन्होंने कोर्ट को बताया कि राज्यपाल ने सभी सात बिलों पर फैसला ले लिया है और जल्द ही सरकार को इसकी जानकारी दे दी जाएगी। सीजेआई की अध्यक्षता वाली पीठ ने इस दौरान कहा कि राज्यपालों को मामला सुप्रीम कोर्ट आने से पहले ही कार्रवाई करनी चाहिए। इसे खत्म करना होगा कि राज्यपाल तभी काम करते हैं जब मामला सुप्रीम कोर्ट आता है। शीर्ष अदालत ने कहा कि इस मामले को शुक्रवार को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करें तथा अदालत को राज्यपाल द्वारा की गई कार्रवाई के बारे में बताएं। पीठ ने यह भी कहा कि राज्यपाल को कोई बिल सरकार को वापस भेजने का भी अधिकार है।
विधानसभा सत्र लगातार चालू रखने पर भी सवाल
कोर्ट ने पंजाब में विधानसभा सत्र लगातार चालू रखने पर भी सवाल उठाते हुए कहा कि यह संविधान में दी गई व्यवस्था नहीं है। बता दें कि राज्यपाल ने 19 अक्टूबर को मुख्यमंत्री को लिखे अपने पत्र में तीन धन विधेयकों को अपनी मंजूरी देने से इनकार कर दिया था। बनवारीलाल पुरोहित ने कहा था कि वह विधेयकों को विधानसभा में पेश करने की अनुमति देने से पहले सभी प्रस्तावित कानूनों की गुण दोष के आधार पर जांच करेंगे।
राज्यपाल ने विधानसभा के 20-21 अक्टूबर के सत्र को ‘अवैध’ तक बता दिया था और कहा था कि इस सत्र में किया गया कोई भी विधायी कार्य ‘गैर-कानूनी’ होगा। हालांकि विवाद के बीच राज्यपाल ने एक नवंबर को तीन में से दो विधेयकों को अपनी मंजूरी दे दी। इन दो विधेयकों में पंजाब माल और सेवा कर (संशोधन) विधेयक-2023 और भारतीय स्टांप (पंजाब संशोधन) विधेयक-2023 शामिल हैं। बता दें कि विधानसभा में धन विधेयक पेश करने के लिए राज्यपाल की मंजूरी की जरूरत होती है। तीसरा पंजाब राजकोषीय उत्तरदायित्व और बजट प्रबंधन (संशोधन) विधेयक-2023 है जिसे राज्यपाल ने मंजूरी देने से इनकार किया था। विधानसभा सत्र को महज तीन घंटे बाद ही अनिश्चितकाल के लिए स्थगित करना पड़ा था।
अनिश्चितकाल तक विधेयकों को रोक नहीं सकते हैं राज्यपाल
पंजाब सरकार की याचिका में कहा गया है कि राज्यपाल जिस तरह से बिलों को अपनी स्वीकृति देने में देरी करते हैं, इस तरह की ‘असंवैधानिक निष्क्रियता’ से पूरा प्रशासन एक तरह से ठप पड़ गया है। सरकार की यह भी दलील है कि राज्यपाल अनिश्चितकाल तक विधेयकों को रोक नहीं सकते हैं और संविधान के अनुच्छेद-200 के तहत प्राप्त उनकी शक्तियां सीमित है। इस अनुच्छेद में राज्यपाल की ओर से विधेयकों को रोकने या राष्ट्रपति को विचार के लिए भेजने की शक्तियां निहित हैं।
खींचतान के चलते सुप्रीम कोर्ट में लगातार मुकदमेबाजी देखी
राज्य के राज्यपालों और सरकारों के बीच खींचतान के कारण पिछले कुछ महीनों में सुप्रीम कोर्ट में लगातार मुकदमेबाजी देखी गई है। तेलंगाना राज्य ने भी पहले शीर्ष अदालत का रुख किया था और राज्य विधानमंडल द्वारा पारित दस प्रमुख विधेयकों पर अपनी सहमति देने के लिए राज्य की राज्यपाल तमिलिसाई सुंदरराजन को निर्देश देने की मांग की थी। गौरतलब है कि तमिलनाडु और केरल की भी पंजाब सरकार की राज्यपाल से तकरार को लेकर याचिकाएं शीर्ष अदालत के समक्ष लंबित हैं।
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