Aaj Samaj (आज समाज), Supreme Court Judgement, नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया। इसके मुताबिक हिंदू विवाह कानून में जिस विवाह को कानूनी मान्यता न मिली हो, उससे पैदा हुए बच्चों की भी माता-पिता की पैतृक में संपत्ति में हिस्सेदारी होगी। यानी अमान्य विवाह से पैदा हुए बच्चों को भी मां-पिता की वैध संतान का दर्जा मिलेगा और इस तरह वे उनकी पैतृक संपत्ति का हकदार होंगे। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली तीन जजों की पीठ ने 11 साल बाद एक मामले का निपटारा करते हुए यह नई व्यवस्था दी।
- 11 साल बाद मामले का निपटारा कर दी नई व्यवस्था
दो-जजों की पीठ के फैसले के खिलाफ याचिका पर सुनवाई
पीठ ने साफ किया कि अवैध और शून्य विवाह से पैदा हुए बच्चों को भी माता-पिता की पैतृक संपत्ति में हक मिले। यानी ऐसे बच्चों को भी वैध कानूनी वारिसों के साथ हिस्सा मिले। सीजेआई चंद्रचूड़, जस्टिस जे.बी. पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ रेवनासिद्दप्पा बनाम मल्लिकार्जुन (2011) मामले में दो-जजों की पीठ के फैसले के खिलाफ दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी।
दो-जजों के फैसले में कहा गया था कि शून्य/अमान्य विवाह से पैदा हुए बच्चे अपने माता-पिता की संपत्ति, चाहे वह स्वअर्जित हो या पैतृक, उसमें उत्तराधिकार के हकदार हैं। इस मामले में मुद्दा हिंदू विवाह अधिनियम-1955 की धारा 16 की व्याख्या से संबंधित है, जो अमान्य विवाह से पैदा हुए बच्चों को वैधता प्रदान करता है। हालांकि, धारा 16(3) में यह भी कहा गया है कि ऐसे बच्चे केवल अपने माता-पिता की संपत्ति के हकदार हैं और अन्य सहदायिक शेयरों पर उनका कोई अधिकार नहीं होगा।
इस संदर्भ में प्राथमिक मुद्दा यह था कि हिंदू मिताक्षरा कानून द्वारा शासित हिंदू अविभाजित परिवार में संपत्ति को माता-पिता की कब माना जा सकता है। इसके जवाब में पीठ ने बताया कि हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 6 के मुताबिक हिंदू मिताक्षरा संपत्ति में सहदायिकों के हित को उस संपत्ति के हिस्से के रूप में परिभाषित किया गया है, जो उनकी मौत के वक्त संपत्ति का विभाजन होने पर उन्हें आवंटित किया गया होता. न्यायालय ने माना है कि अमान्य विवाह से पैदा हुए बच्चे ऐसी संपत्ति के हकदार हैं, जो उनके माता-पिता की मृत्यु पर काल्पनिक विभाजन पर हस्तांतरित होगी।
बदलते समाज में कानून स्थिर नहीं रह सकते
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, हर समाज में वैधता के नियम बदल रहे हैं। जो पूर्व में अवैध था हो सकता है वह आज वैध हो जाए। अवैधता की अवधारणा सामाजिक सहमति से पैदा होती है, जिसमें कई सामाजिक संगठन अहम भूमिका निभाते हैं। ऐसे में बदलते हुए समाज में कानून स्थिर नहीं रह सकते।’ हिंदू विवाह अधिनियम के तहत एक शून्य या अमान्य शादी में दोनों पक्षों को पति-पत्नी का दर्जा नहीं दिया जाता है। केवल मान्य शादी में ही पति-पत्नी का दर्जा मिल सकता है।
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