Aaj Samaj (आज समाज), Supreme Court Instructions, नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने एफआईआर में देरी की स्थिति में अदालतों को सतर्क रहने की हिदायत दी है। शीर्ष कोर्ट ने कहा, जब किसी मामले में एफआईआर दर्ज होने में देरी हुई हो और उसका स्पष्टीकरण भी न दिया गया हो तो ऐसे में अदालतों को सतर्क रहने के साथ सबूतों का सावधानीपूर्वक परीक्षण भी करना चाहिए। छत्तीसगढ़ के बिलासपुर जिले में 1989 में दर्ज हत्या के एक मामले में उम्रकैद की सजा पाए दो लोगों को बरी करते हुए जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने यह टिप्पणी की। इसी के साथ पीठ ने आरोपियों को रिहा करने का आदेश दिया।
- सुप्रीम कोर्ट ने हत्या के दो कथित दोषियों को बरी किया
आरोप था कि हमलावरों ने 25 अगस्त 1989 को कथित तौर पर एक व्यक्ति की हत्या करने की कोशिश की। बिलासपुर जिले में अगले दिन इस मामले में एफआईआर दर्ज हुई। बता दें कि हीरालाल और पारसराम समेत तीन लोगों को हत्या के एक मामले में दोषी ठहराते हुए ट्रायल कोर्ट ने आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। इसके बाद हाईकोर्ट में अपील की गई तो फरवरी 2010 में छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने भी ट्रायल कोर्ट के फैसले को सही माना और आजीवन कारावास की सजा को बरकरार रखा। हाईकोर्ट के इस फैसले को आरोपियों ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी।
अब सुप्रीम कोर्ट ने दोनों आरोपियों को रिहा करने का आदेश दिया है। अदालत ने कहा कि हत्या की कोई खास वजह नहीं पता चली है। साथ ही कोर्ट ने कहा कि मामले की जांच में कई अहम बिंदुओं की जांच नहीं की गई है। साथ ही मामले के चश्मदीद गवाह ने भी अपने बयान को बदला है, ऐसे में उसकी गवाही की विश्वसनीयता सवालों के घेरे में है। कोर्ट ने कहा कि इस मामले में एफआईआर में भी देरी हुई है।
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