Himachal CPS Case, (आज समाज), नई दिल्ली: हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट द्वारा सीपीएस के रूप में नियुक्त विधायकों को अयोग्य ठहराए जाने से संरक्षण हटा दिया गया था। सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति पीवी संजय कुमार की पीठ ने आज हिमाचल में सत्तारूढ़ कांग्रेस सरकार की अपील पर नोटिस जारी करते हुए सीपीएस को अयोग्य ठहराए जाने पर रोक लगाने का आदेश दिया।
अगली सुनवाई तक नहीं होगी कोई कार्यवाही
मामले की अगली सुनवाई तक, पैराग्राफ 50 के अनुसार कोई और कार्यवाही नहीं होगी। बता दें कि हाई कोर्ट ने 13 नवंबर को हिमाचल प्रदेश संसदीय सचिव अधिनियम, 2006 को असंवैधानिक करार देते हुए कहा था कि यह संविधान के अनुच्छेद 164 (1-ए) का उल्लंघन करता है। कोर्ट ने कहा था कि अनुच्छेद 164 (1-ए) के अनुसार राज्य मंत्रिमंडल का आकार विधानसभा की क्षमता के 15 प्रतिशत से अधिक नहीं होना चाहिए। हाई कोर्ट का यह फैसला बीजेपी विधायकों की याचिकाओं सहित कई याचिकाओं पर आया। याचिकाओं में संबंधित कानून को लागू करने की राज्य विधानसभा की क्षमता को चुनौती दी गई थी।
प्रदान की थीं राज्य मंत्रियों के समकक्ष सुविधाएं
बता दें कि हिमाचल की सुखविंदर सिंह सुक्खू सरकार ने 6 विधायकों को सीपीएस नियुक्त कर उन्हें राज्य मंत्रियों के समकक्ष सुविधाएं प्रदान की थीं। हालांकि, हाईकोर्ट ने पाया कि राम कुमार चौधरी (दून), संजय अवस्थी (अर्की), आशीष बुटेल (पालमपुर), सुंदर सिंह ठाकुर (कुल्लू), मोहन लाल ब्राक्टा (रोहड़ू) और किशोरी लाल (बैजनाथ) की नियुक्ति अनुच्छेद 164 (1-ए) को दरकिनार करने का एक अप्रत्यक्ष प्रयास था क्योंकि प्रत्येक सीपीएस को कई विभाग आवंटित किए गए थे और कैबिनेट मंत्री के समान वे लाभ के हकदार थे।
हाईकोर्ट ने उनकी नियुक्तियों को असंवैधानिक ठहराते हुए फैसले के पैराग्राफ 50 में कहा कि हिमाचल विधान सभा सदस्य (अयोग्यता निवारण) अधिनियम के अनुसार मुख्य संसदीय सचिव/या संसदीय सचिव के पद पर ऐसी नियुक्ति को दी गई सुरक्षा अवैध और असंवैधानिक घोषित की जाती है। इस तरह की सुरक्षा का दावा अप्रासंगिक है।
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