Aaj Samaj, (आज समाज),Supreme Court ,नई दिल्ली:
1.श्रद्धा हत्याकांड मामला:आरोपी आफ़ताब पर चलेगा हत्या और सबूतों को नष्ट करने का मुकदमा, कोर्ट ने तय किये आरोप
दिल्ली की साकेत कोर्ट ने मंगलवार को अपनी लिव-इन पार्टनर श्रद्धा वाल्कर की बेरहमी से हत्या और उसके शरीर के टुकड़े-टुकड़े करने के आरोपी आफताब अमीन पूनावाला के खिलाफ आरोप तय कर दिए है। साकेत कोर्ट ने आरोपी आफताब अमीन पूनावाला के खिलाफ हत्या (302) , और सबूत नष्ट करने (201) के मामले में आरोप तय किया। साकेत कोर्ट ने कहा कि तमाम बहस को सुनने के बाद दिल्ली पुलिस ने पर्याप्त सबूत पेश किए जिससे प्रथम दृष्टया आफताब के खिलाफ हत्या और सबूत नष्ट करने का मामला बनता है। वही आरोपी आफताब ने अपने ऊपर लगे आरोपों को स्वीकार करने से इनकार करते हुए कहा वो मुकदमे का सामना करेगा।
कोर्ट ने आफताब पर लगे आरोपों को उसे पढ़कर सुनाया। कोर्ट ने कहा कि 18 मई 2022 को अज्ञात समय पर सुबह 6:30 बजे के बाद श्रद्धा वालकर की हत्या की गई जो आईपीसी की धारा 302 के तहत दंडनीय अपराध है। 18 मई से 18 अक्टूबर के बीच साक्ष्य को मिटाने के इरादे से यह जानते हुए अपराध किया गया है उसके शरीर के टुकड़े-टुकड़े कर दिए और उसके शरीर को जगह-जगह ठिकाने लगा दिया, जिससे सबूत गायब करने का अपराध हुआ है।
अदालत ने आफताब से कहा कि – मूल रूप से आपके उपर श्रद्धा की हत्या और उसके शरीर के अंगों को छतरपुर और अन्य स्थानों पर ठिकाने लगाने का आरोप लगाया गया है। कोर्ट ने आफताब से पूछा कि क्या आप अपराध को स्वीकार करते है या ट्रायल फेस करेगा। आफताब ने अपने वकील के जरिए कोर्ट को बताया कि हम आरोप स्वीकार नहीं कर रहे हैं, हम ट्रायल का सामना करेंगे।श्रद्धा वालकर की हत्या और सबूत मिटाने को लेकर तय किए गए आरोपों पर अदालत में 1 जून को सुनवाई होगी।
गौरतलब है कि दिल्ली के महरौली इलाके में आरोपी पूनावाला ने पिछले साल 18 मई को अपनी ‘‘लिव इन पार्टनर” श्रद्धा वालकर की हत्या कर दी थी। उसने वालकर के शव के लगभग 35 टुकड़े कर उन्हें लगभग तीन सप्ताह तक 300 लीटर की क्षमता वाले फ्रिज में रखा और फिर उन्हें दिल्ली के विभिन्न हिस्सों में फेंक दिया था। लंबी जांच के बाद दिल्ली पुलिस ने इसी साल 24 जनवरी को 6,629 पन्नों का आरोप पत्र दाखिल किया था।
2.’द केरला स्टोरी’: फ़िल्म पर रोक की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचीका,15 मई को सुनवाई
फ़िल्म ‘द केरला स्टोरी’ का मामला एल बार फिर सुप्रीम कोर्ट पहुँच गया है। केरल हाई कोर्ट के फ़ैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचीका दाखिल की गई है। मंगलवार को याचिकाकर्ता के वकील कपिल सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ से याचीका पर जल्द सुनवाई की गुहार लगाई। सीजेआई ने कहा कि वो 15 मई को याचीका पर सुनवाई करेंगे।
दरसअल केरल उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को ‘द केरल स्टोरी’ फिल्म की रिलीज पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था, जो शुक्रवार को पूरे देश के सिनेमाघरों में रिलीज हो गई थी। हालांकि, जस्टिस एन. नागेश और सोफी थॉमस की खंडपीठ ने निर्माता की दलील को रिकॉर्ड किया कि फिल्म के टीज़र को उनके सोशल मीडिया एकाउंट्स से हटा दिया जाए, जिसमें दावा किया गया था कि केरल की 32,000 से अधिक महिलाओं को आईएसआईएस में भर्ती किया गया था।
पीठ ने फिल्म के ट्रेलर को भी देखा और निष्कर्ष निकाला कि इसमें किसी विशेष समुदाय के लिए कुछ भी आपत्तिजनक नहीं है और इसने आगे कहा कि याचिकाकर्ताओं में से किसी ने भी फिल्म नहीं देखी थी और निर्माताओं ने एक डिस्क्लेमर शामिल किया था जिसमें कहा गया था कि यह घटनाओं का एक काल्पनिक संस्करण है।
न्यायमूर्ति नागेश ने अंतरिम आदेश लागू करने से इनकार करते हुए कहा, “भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के रूप में कुछ जाना जाता है। उनके पास कलात्मक स्वतंत्रता है; हमें इसे भी संतुलित करना होगा।” न्यायमूर्ति नागेश ने कहा, “क्या फिल्म में ऐसा कुछ है जो इस्लाम विरोधी है? किसी धर्म के खिलाफ कोई आरोप नहीं है, केवल आईएसआईएस संगठन के खिलाफ है।” कई फिल्मों में, हिंदू संन्यासियों को तस्करों और बलात्कारियों के रूप में चित्रित किया जाता है। कोई भी बोलता नहीं है। आपने हिंदी या मलयालम में ऐसी ही फिल्में देखी होंगी। केरल में, हम इतने धर्मनिरपेक्ष हैं।
याचिकाकर्ताओं में से एक की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे ने टिप्पणी की कि “आज फिल्म का प्रभाव आज लोगों के दिमाग पर किताबों की तुलना में बहुत अधिक है। इससे महत्वपूर्ण सार्वजनिक कानून और व्यवस्था के मुद्दे पैदा हो सकते हैं।
अदालत ने टिप्पणी की कि फिल्म ऐतिहासिक तथ्यों पर आधारित नहीं थी और केवल एक कहानी थी, जिस पर दवे ने जवाब दिया, “कृपया देखें कि कहानी का उद्देश्य क्या है। साहित्य का लक्ष्य मुस्लिम समुदाय को खलनायक के रूप में चित्रित करना है। पृथक उदाहरण नहीं हो सकते।” इसे सच दिखाया गया और फिल्म में बदल दिया गया।
” ‘द केरल स्टोरी’ फिल्म केरल में हुई सच्ची घटनाओं पर आधारित होने का दावा करती है, जहां हिंदू और ईसाई महिलाओं को “लव जिहाद” में फंसाया गया, इस्लाम में परिवर्तित किया गया, और सीरिया, इराक और अफगानिस्तान में आईएसआईएस के लिए मिशन पर भेजा गया।
3. कर्नाटक में मुस्लिम आरक्षण खत्म करने के मामले पर राजनीतिक बयानबाज़ी से सुप्रीम कोर्ट नाराज़, कहा जब मामला लंबित हो तो न दे बयान
सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक में मुसलमानों के लिए 4 प्रतिशत आरक्षण खत्म करने के कर्नाटक सरकार के कदम को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान मंगलवार को तल्ख टिप्पणी की। सुप्रीम कोर्ट ने इस मसले पर नेताओं के बयानों पर सवाल उठाते हुए हुए कहा जब मामला लंबित हो तो ऐसे बयान नहीं दिए जाने चाहिए। वही याचिकाकर्ता के वकील दुष्यंत दवे ने कहा कि हर दिन नेता/ मंत्री कहते हैं कि हमने खत्म कर दिया है। एसजी मेहता उसी पक्ष का प्रतिनिधित्व करते हैं, यह अवमानना है। एसजी तुषार मेहता ने कहा कि मैं राजनीतिक प्रतिक्रिया नहीं दे सकता।
जस्टिस जस्टिस बीवी नागरत्ना ने कहा कि अगर यह सच है तो ऐसे बयान क्यों दिए जा रहे हैं?सार्वजनिक पद पर बैठे लोगों द्वारा ऐसा नहीं किया जाना चाहिए। जब मामला लंबित हो और इस न्यायालय के समक्ष हो, तो इस तरह के बयान नहीं दिए जाने चाहिए। हालांकि एसजी के कहने पर अदालत ने सुनवाई 25 जुलाई तक टाल दी है।
सुप्रीम कोर्ट में कर्नाटक सरकार के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई कर रहा है, जिसमें श्रेणी 2 बी के तहत मुसलमानों को प्रदान किए गए लगभग तीन दशक पुराने 4% ओबीसी आरक्षण को रद्द कर दिया गया था।
कर्नाटक सरकार ने 4% आरक्षण को समाप्त कर दिया और इसे वीरशैव-लिंगायतों और वोक्कालिगाओं के बीच समान रूप से 2% पर वितरित कर दिया। पिछली सुनवाई में वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने वोक्कालिगा और लिंगायत समूहों की ओर से तर्क दिया कि मुद्दा केवल आरक्षण को रद्द करने का नहीं है बल्कि एक अलग समुदाय को आरक्षण आवंटित करने का भी है। उन्होंने दावा किया कि जीओ पर अंतरिम रोक लगाने से लिंगायतों और वोक्कालिगाओं पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।
इससे पहले अदालत ने कहा था कि राज्य में मुस्लिम लंबे समय से इस आरक्षण का लाभ उठा रहे थे और कोटा खत्म करने का आदेश प्रथम दृष्टया गलत धारणाओं पर आधारित था। राज्य सरकार को फटकार लगाते हुए कोर्ट ने कहा था कि आपके फैसले की बुनियाद ‘त्रुटिपूर्ण और अस्थिर’ लगती है।
दरसअल बेल्लारी के रहने वाले एक मुस्लिम व्यक्ति के राज्य सरकार के मुस्लिम कोटा खत्म करने के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है।
4.शराब घोटाले से जुड़े मनी लांड्रिग मामले में दिल्ली हाईकोर्ट ने पी शरथ चंद्र रेड्डी को दी जमानत*
बीमार और अशक्त लोगों को पर्याप्त और प्रभावी उपचार का अधिकार है, इसी आधार परउच्च न्यायालय ने दिल्ली आबकारी घोटाले से संबंधित मनी लॉन्ड्रिंग मामले में व्यवसायी पी सरथ चंद्र रेड्डी को जमानत दे दी। दिल्ली हाईकोर्ट के जस्टिस न्यायमूर्ति दिनेश कुमार शर्मा ने कहा कि हालांकि जेल में आरोपी को “अच्छा बुनियादी उपचार” दिया जा सकता है, लेकिन अदालत विशेष उपचार और निगरानी की उम्मीद नहीं कर सकती है, जो कि वर्तमान मामले में आवश्यक है।
अदालत ने स्पष्ट किया कि यह आदेश आरोपी की चिकित्सीय स्थिति को देखते हुए मामले के गुण-दोष पर विचार किए बिना पारित किया गया और उसे अनुमति के बिना यात्रा नहीं करने या सबूतों के साथ छेड़छाड़ नहीं करने को कहा।
प्रवर्तन निदेशालय का प्रतिनिधित्व कर रहे अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एस वी राजू ने कहा कि किसी आरोपी को बीमार या अशक्त होने के आधार पर जमानत पर स्वीकार करने का कानून अच्छी तरह से व्यवस्थित है और यदि अदालत वर्तमान में मेडिकल रिकॉर्ड से संतुष्ट है तो एक उचित आदेश पारित किया जा सकता है। मामला।
रेड्डी की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता विकास पाहवा ने कहा कि मेडिकल रिकॉर्ड से पता चलता है कि वह “बीमार और दुर्बल” हैं और धन शोधन निवारण अधिनियम की धारा 45 के तहत जमानत के हकदार थे।
इसने स्पष्ट किया कि आदेश याचिकाकर्ता की चिकित्सा स्थिति को देखते हुए पारित किया गया था और इसलिए इसे मिसाल के तौर पर नहीं लिया जाएगा।
अदालत ने रेड्डी को अपना पासपोर्ट सरेंडर करने, जब भी कहा जाए जांच अधिकारी के सामने पेश होने और अपने मोबाइल फोन को काम करने की स्थिति में रखने के लिए भी कहा। अरबिंदो फार्मा के पूर्णकालिक निदेशक और प्रमोटर रेड्डी को ईडी ने पिछले साल नवंबर में गिरफ्तार किया था।
5.दिल्ली के एलजी की दरख्वास्त मेट्रोपोलिटिन मैजिस्ट्रेट ने की खारिज, मुकदमे का सामना करना पड़ेगा*
अहमदाबाद के मेट्रोपॉलिटन मैजिस्ट्रेट ने दिल्ली के उपराज्यपाल विनय कुमार सक्सेना को एक आपराधिक मुकदमे में प्रतिरक्षा देने से इंकार दिया। दिल्ली के एलजी ने प्रतिवेदन दिया था कि वो इस समय राष्ट्रपति के प्रतिनिधि के तौर पर दिल्ली के उप राज्यपाल हैं, इसलिए उन्हें मुकदमे का सामना कर से प्रतिरक्षा दी जाए।
अतिरिक्त महानगर न्यायाधीश पीएन गोस्वामी ने दिल्ली के उप राज्यपाल की ओर से भेजी गई अर्जी खारिज कर दी और मुकदमे का सामना करने का आदेश दिया है।
दिल्ली के एलजी विनय सक्सेना, भाजपा के दो विधायक अमित पी शाह और अमित डी ठाकर, और एक कांग्रेस नेता रोहित एन पटेल 2002 में महात्मा गांधी द्वारा स्थापित साबरमती आश्रम में मेधा पाटकर पर हमला करने के आरोपों का सामना कर रहे हैं। साबरमती पुलिस थाने में सक्सेना और तीन अन्य पर ग़ैरक़ानूनी तरीके से जमा होने, हमला करने, गलत तरीके से रोकने, आपराधिक धमकी देने समेत अन्य आरोप लगाते हुए प्राथमिकी दर्ज की गई थी।
इसी साल मार्च में, दिल्ली के एल-जी ने एक आवेदन दायर किया था जिसमें अदालत से अनुरोध किया गया था कि जब तक वह अपने वर्तमान पद पर बने रहेंगे, तब तक उनकी सुनवाई स्थगित रहेगी। सक्सेना ने तर्क दिया कि उनके खिलाफ आपराधिक कार्यवाही तब तक जारी नहीं रखी जा सकती जब तक कि वह संविधान के अनुच्छेद 361 के अनुसार एलजी के पद पर बने रहते हैं। संविधान के भाग -2 में कहा गया है, “राष्ट्रपति या किसी राज्य के राज्यपाल के खिलाफ उनके कार्यकाल के दौरान किसी भी अदालत में कोई भी आपराधिक कार्यवाही शुरू या जारी नहीं रखी जाएगी।” सक्सेना ने कहा कि कि संवैधानिक प्रावधान के मद्देनजर, उनके खिलाफ कार्यवाही “अलगाव या आस्थगन में” तब तक होनी चाहिए जब तक कि वह “न्याय के हित में” अपने वर्तमान पद पर बने रहें।
सक्सेना ने यह भी तर्क दिया कि दिल्ली एलजी की स्थिति राज्य और केंद्र शासित प्रदेश के राज्यपालों से अधिक है क्योंकि “राज्य के राज्यपाल को केंद्र सरकार द्वारा चुना जाता है और भारत के राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किया जाता है।”
इस बीच, पाटकर ने आवेदन का विरोध करते हुए आरोप लगाया कि दिल्ली एलजी का पद भारत के राष्ट्रपति का केवल एक “एजेंट” है और इसलिए वह प्रतिरक्षा का दावा नहीं कर सकता है। उसने यह भी आरोप लगाया है कि राज्य सरकार आवेदन पर कोई जवाब न देकर सक्सेना की “अप्रत्यक्ष रूप से” मदद कर रही थी।
65 वर्षीय सक्सेना मई 2022 में दिल्ली एल जी बने। इससे पहले, वह 2015 से खादी और ग्रामोद्योग आयोग (केवीआईसी) के अध्यक्ष के रूप में काम कर रहे थे। वह एक एनजीओ-नेशनल काउंसिल फॉर सिविल लिबर्टीज (एनसीसीएल) भी चलाते हैं। सरदार सरोवर परियोजना को लेकर मेधा पाटकर और सक्सेना के बीच अनबन रही है और दोनों ने एक दूसरे के खिलाफ कानूनी मामला दायर किया है।
6।सुप्रीम कोर्ट में गुजरात के जजों के प्रमोशन के मामले पर जज और वकील में गरमा-गरम बहस*
राहुल गांधी को सजा सुनाने वाले जज को प्रमोशन दिए जाने का मामला अभी तक गूंज रहा है। इस मामले की संवेदनशीलता को इसी बात से समझा जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट एक जज और वकील में गरमागरम बहस भी हो गई।
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एमआर शाह की बेंच के सामने जिला जज पद के एक प्रत्याशी ने हाल ही में जारी प्रमोशन लिस्ट को चुनौती देते हुए याचिका डाली गई थी। याचिकाकर्ता की ओर से वकील दुष्यंत दबे बहस कर रहे थे।
वकील दुष्यंत दवे ने सुनवाई के दौरान बेंच से सवाल किया कि इस मामले को तत्काल निपटाने की कोशिश क्यों की जा रही है। जबकि मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली एक अन्य बेंच ऑल इंडिया जजेज एसोसिएशन के मामले की सुनवाई कर रही है। इस याचिका में जिसमें प्रमोशन, शर्तें और नियुक्तियां जैसे सभी तथ्य शामिल है।
दुष्यंत दवे ने जोर देकर कहा, ‘लॉर्डशिप इस मामले को निपटाने की जल्दी में क्यों है, जब कि यही मामला सीजेआई की अध्यक्षतावाली पीठ इसी विषय पर सुनवाई कर रही है? दुष्यंत दवे यहीं पर नहीं रुके उन्होंने कहा कि ‘मैं इसपर गंभीरता से आपत्ति जता रहा हूं।’
दुष्यंत दवे के इस तरह के व्यवहार पर इस पर जस्टिस एमआर शाह ने कहा, ‘करियर के अंत में मुझे आपके बारे में कुछ कहने के लिए मजबूर न करें। मेरिट पर बात करें।’
इस पर दवे फिर कहा कि ‘माई लॉर्ड मुझे धमकी न दें। मैं अपनी बात रख रहा हूं।’ जस्टिस एमआर शाह 15 मई को रिटायर होने वाले हैं।
बहरहाल, कुछ देर की गरमागरम बहस के बाद जस्टिस एमआर शाह ने याचिका पर निर्णय सुरक्षित रखने का ऐलान किया और बहस खत्म हुई।
7 *इमरान खान गिरफ्तार, पूरे पाकिस्तान में इमरजेंसी के हालात, मुल्क में विद्रोह फैलाने के जुर्म में हुई गिरफ्तारी, कोर्ट ने सरकार को किया तलब*
पाकिस्तान में एक बड़ी घटना हुई है। रेंजर्स ने पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान को इस्लामाबाद हाईकोर्ट के परिसर से गिरफ्तार कर लिया। इमरान खान की गिरफ्तारी पर इस्लामाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस आमिर फारुख ने सख्त रुख अख्तियार करते हुए सरकार और इस्लामाबाद के आईजी को तलब किया है।
सितंबर 2014 में तत्कालीन नवाज शरीफ सरकार के खिलाफ हल्ला बोलने, पाकिस्तान की संसद पर हमला करने और जनता में विद्रोह फैलाने की एफआईआर पर लगभग 9 साल बाद कार्रवाई करते हुए इस्लामाबाद की पुलिस ने इमरान खान को गिरफ्तार कर लिया है। इमरान खान को गिरफ्तार कर एनएबी (नेशनल एकाउंटेबिलिटी ब्यूरो) के मुख्यालय ले जाया गया है। इमरान खान की गिरफ्तारी इस्लामाबाद हाईकोर्ट परिसर से की गई। इमरान खान की गिरफ्तारी पर इस्लामाबाद हाईकोर्ट ने सरकार और इस्लामाबाद के आईजी को नोटिस जारी कर तलब कर लिया है।
इमरान खान की गिरफ्तारी की पुष्टि करते हुए इस्लामाबादा के आईजी ने कहा कि इमरान खान को कादिर ट्रस्ट मामले में गिरफ्तार किया गया है।
आईजी इस्लामाबाद ने कहा, “स्थिति सामान्य है। धारा 144 लागू है और उल्लंघन के परिणामस्वरूप पुलिस कार्रवाई होगी।”
उधर इस्लामाबाद उच्च न्यायालय (IHC) के सीजे आमिर फारूक ने इस घटना का संज्ञान लिया है और आईजी इस्लामाबाद,सेक्रेटरी इंटरनल अफेयर और अतिरिक्त अटॉर्नी जनरल को तलब किया है।
न्यायमूर्ति फारूक ने पूछा है कि इस गिरफ्तारी के पीछे कौन है और इमरान को किस मामले में गिरफ्तार किया गया है, इसकी तुरंत जानकारी दी जाए। जस्टिस फारुख ने कहा कि इस मामले में कार्रवाई की जाएगी,भले ही मंत्रियों के खिलाफ कार्रवाई क्यों न करनी पड़े।
शुरुआती रिपोर्ट्स के मुताबिक, इमरान को रावलपिंडी में नेशनल अकाउंटेबिलिटी ब्यूरो (एनएबी) के दफ्तर ले जाया गया है।
पूर्व प्रधान मंत्री को IHC के परिसर के भीतर से गिरफ्तार किया गया था, जहां वह विद्रोह भड़काने से संबंधित मामलों की सुनवाई के लिए उपस्थित हुए थे। यह मामला 1 सितंबर 2014 का है। इमरान खान और मौलाना ताहिर उल कादरी ने एक जलसे को खिताब किया और मुल्क में विद्रोह के लिए पब्लिक को उकसाया था। नतीजतन पहले तत्कालीन पीएम शहबाज शरीफ के आवास पर भीड़ ने हमला किया और दीवार तोड़ कर उनके लॉन तक भीड़ पहुंच गई। इसी तरह पार्लियामेंट की सुरक्षा में तैनात सुरक्षाबलों से झड़प के बाद इमरान खान के समर्थक परिसर के अंदर तक पहुंच चुके थे।
इसी मामले की सुनवाई के लिए इमरान खान अदालत आए थे उन्हें कोर्ट रूम पहुंचने से पहले ही रेजंर्स ने गिरफ्तार कर लिया। इमरान खान की गिरफ्तारी के बाद इस्लामाबाद समेत पाकिस्तान के कई बड़े शहरों में बवाल शुरू हो चुका है।
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