Aaj Samaj, (आज समाज),Delhi Court, नई दिल्ली:
9.कॉन्सेचुअल सेक्स- रेप नहीं हो सकता’ यह कहते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट ने 67 वर्षीय अभियुक्त को कर दिया आरोप मुक्त*
बंबई उच्च न्यायालय ने एक वरिष्ठ नागरिक को 2015 में एक 61 वर्षीय महिला द्वारा उसके खिलाफ दर्ज कराए गए बलात्कार के मामले से आरोप मुक्त कर दिया है, यह देखते हुए कि वे सहमति से संबंध में थे और शारीरिक संबंध जबरदस्ती नहीं बनाए गए थे।
न्यायमूर्ति भारती डांगरे की एकल पीठ ने 4 मई को अपने आदेश में कहा कि शिकायतकर्ता और 67 वर्षीय आरोपी 2005 से एक साथ थे और संबंध दो वयस्कों के बीच था जो कुछ चल रहा था उसके परिणाम समझने में वो दोनों सक्षम थे।
पुणे पुलिस में 2015 में दर्ज एक प्राथमिकी में शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया था कि आरोपी ने 2005 के बाद से शादी का झांसा देकर कई बार उसके साथ शारीरिक संबंध बनाए। उस व्यक्ति पर बलात्कार, छेड़छाड़ और आपराधिक धमकी के लिए भारतीय दंड संहिता की विभिन्न धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया था।
उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में कहा कि शिकायत दर्ज होने के समय दोनों ने 2005 से 2015 तक आपसी सहमति से संबंध बनाए थे। प्राथमिकी दर्ज कराते समय शिकायतकर्ता की उम्र 54 वर्ष थी और आरोपी की उम्र 60 वर्ष थी।
अदालत ने कहा, “यह दो वयस्कों के बीच का रिश्ता था, जो अपने कार्यों के परिणाम को समझने में सक्षम था, और किसी भी तरह की कल्पना से यह अनुमान नहीं लगाया जा सकता था कि शारीरिक संबंध महिला की सहमति के बिना या उसकी इच्छा के विरुद्ध था।”
पीठ ने आगे कहा कि महिला अच्छी तरह से जानती थी कि पुरुष पहले से ही शादीशुदा था और उसने इसके बावजूद रिश्ता जारी रखा था। इसमें कहा गया है कि जब महिला की मर्जी के खिलाफ और उसकी सहमति के बिना कोई कृत्य किया जाता है तो उसे बलात्कार का अपराध माना जाता है। वर्तमान मामले में, आरोपी और महिला के बीच संबंध एक दशक तक जारी रहा और यह आसानी से अनुमान लगाया जा सकता है कि यह “आपसी सहमति” थी।
“यह अनुमान लगाने का कोई कारण नहीं है कि साझा किया गया रिश्ता ज़बरदस्ती था। यह ऐसा मामला भी नहीं है जहां एक युवक शादी का झांसा देकर किसी युवती को शारीरिक संबंध बनाने के लिए फुसलाता है।
इस मामले में यह भी आया है कि शिकायतकर्ता महिला अपने पहले पति से अलग हो गई थी और बाद में दूसरी शादी कर ली लेकिन एक दुर्घटना में अपने दूसरे पति को खो दिया।
शिकायतकर्ता पुणे के एक स्कूल में प्रधानाध्यापक के रूप में काम करता थी जहाँ और आरोपी स्कूल की प्रबंधन संस्था का अध्यक्ष था। शिकायत के अनुसार, व्यक्ति, जो पहले से ही शादीशुदा था, ने दावा किया कि वह नाखुश था और उसने शिकायत कर्ता से शादी करने की इच्छा व्यक्त की थी।
10.अक्ल दाढ़ न होना नाबालिग होने का पुख्ता सबूत नहीं, कोर्ट ने बरी कर दिया POCSO का आरोपी*
बॉम्बे हाईकोर्ट ने पोक्सो एक्ट के तहत दोषी ठहराए गए आरोपी को दोष मुक्त कर दिया है। हाई कोर्ट ने कहा कि केवल अकल दाढ़ का न होना एक पीड़िता की उम्र साबित करने के लिए पुख्ता सबूत नहीं है।
आरोपी महरबान हसन बाबू खान ने निचली अदालत के आदेश को चुनौती देते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की थी। बाबू खान को नाबालिग से बलात्कार का आरोपी सिद्ध करते हुए दोषी ठहराया गया था।
बॉम्बे हाईकोर्ट की जस्टिस अनुजा प्रभुदेसाई ने कहा कि रायगढ़ जिले की स्पेशल कोर्ट ने 18 दिसंबर 2019 को बाबू खान को पोक्सो एक्ट में दोषी ठहराने के लिए एक दंत चिकित्सक की गवाही को पर्याप्त साक्ष्य मान लिया था। जिसने पीड़िता की उम्र का आकलन करने के लिए क्लीनिकल और रेडियोग्राफिक जांच की थी।
दंत चिकित्सक ने कोर्ट में कहा ने कहा था कि उन्हें अकल दाढ़ यानी तीसरी दाढ़ नहीं मिली थी। इस आधार पर उन्होंने पीड़िता की उम्र लगभग 15 से 17 साल बताई थी। हालांकि, जब क्रॉस एग्जामिनेशन किया गया तो उन्होंने यह कबूल किया कि 18 साल की उम्र के बाद किसी भी समय अकल दाढ़ निकल सकती है।
जस्टिस प्रभुदेसाई ने मोदी के चिकित्सा न्यायशास्त्र का जिक्र करते हुए कहा, दूसरी दाढ़ 12 से 14 साल के बीच निकलती है जबकि तीसरी दाढ़ (अकल दाढ़) 17 से 25 साल के बीच निकलती है। अकल दाड़ का निकलना ज्यादा से ज्यादा यह संकेत दे सकता है कि व्यक्ति की आयु 17 वर्ष या उससे अधिक है लेकिन अकल दाढ़ का न निकलना या न होना यह साबित नहीं करता है कि व्यक्ति की आयु 18 वर्ष से कम है।
इस लेकर फैसला सुनाते हुए जस्टिस प्रभुदेसाई ने कहा कि अभियोजन पक्ष ने पीड़िता की उम्र साबित करने के लिए गवाहों की जांच नहीं की और इस तरह यह अप्रमाणित रहा। इसलिए सजा को रद्द करते हुए बाबू खान को बरी कर दिया गया।
आरोपी बाबू खान ने दावा किया कि वह पीड़िता से शादी करना चाहता था और उत्तर प्रदेश से लौटने के बाद उसने उसका पता लगाने की कोशिश की लेकिन वह नहीं मिली और अचानक उसे पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। उसने कहा कि वह उस लड़की से शादी करना चाहता है और उसके बच्चे की देखभाल भी करना चाहता है।
11.मणिपुर हिंसाः सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से मांगी स्टेटस रिपोर्ट राहत कैंपों में पर्याप्त दवा और भोजन मुहैया कराने के निर्देश*
मैती समुदाय को जनजाति में शामिल किए जाने के मणिपुर हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ भड़के दंगों राहत-बचाव और पुनर्वास पर सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से स्टेटस रिपोर्ट मांगी है। मणिपुर हिंसा के बाद दाखिल याचिका पर सुनवाई करते हुए सीजेआई की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा है कि किसी भी समुदाय को जनजाति के रूप में पहचान दिलाने का अधिकार केवल राष्ट्रपति के पास है। हाईकोर्ट के पास नहीं। मामले की सुनवाई 17 मई को दोबारा होगी।
मामले की सुनवाई कर रहे सीजेआई डीवाईचंद्रचूड़, जस्टिस नरसिम्हा और जस्टिस जेबी परदीवाला की पीठ ने कहा कि समय सबसे बड़ी जरूरत भोजन के साथ पर्याप्त राहत शिविरों को स्थापित किया जाए। राज्य के सभी पूजा स्थलों की सुरक्षा बढ़ाई जाए। राहत शिविरों में भोजन और दवाओं के जरूरी इंतजाम हो। विस्थापितों के पुनर्वास का काम तेज किया जाए।
इससे पहले सोलीसिटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट को बताया कि राज्य सरकार हालात सामान्य बनाने के लिए जरूरी कदम उठा रही है। 52 कंपनी सीएएफ और 101 कंपनी असम राइफल की लगाई गई हैं। सभी जनजाति-समुदायों की शांति समिति की बैठकें की जा रही हैं।एक सीनियर पुलिस अफसर को राज्य में सिक्योरिटी एडवाइजर नियुक्त किया गया है और संवेदनशील इलाकों में लगातार फ्लैगमार्च किए जा रहे हैं।
सोलीसीटिर जनरल ने यह जानकारी दी कि पिछले दो दिन से राज्य में हिंसा की कोई वारदात नहीं हुई है। इसलिए कर्फ्यू में ढील भी दी गई है। उपद्रवी तत्वों पर निगरानी के लिए हेलिकॉप्टर और ड्रोंस की मदद ली जा रही है। सोलीसिटर जनरल तुषार मेहता ने यह भी कहा कि राहत शिविर लगाए गए हैं और आवश्यक चीजें मुहैया करवाई जा रही हैं।
दरअसल, मैती समुदाय को जनजाति में शामिल किए जाने के विरोध में मणिपुर में हिंसा भड़क उठी थी। कई लोग इस हिंसा का शिकार हुए और कई धार्मिक स्थलों को में तोड़फोड़ और आगजनी की गई थी। हालात तनावपूर्ण लेकिन नियंत्रण में बताए जा रहे हैं।
यह भी पढ़ें : Delhi Court: दिल्ली शराब घोटालाः मनी लांड्रिंग के दो आरोपियों को दिल्ली की एक अदालत ने दे दी जमानत
यह भी पढ़ें :Deputy CM Dushyant Chautala ने मिर्जापुर बाछौद हवाई पट्टी पर ली अधिकारियों की बैठक